भोपाल के पेरेंट्स ने DEO, कमिश्नर से लेकर पीएस तक की SPS की शिकायत, रसूख के चलते कार्रवाई नहीं कर पाए अफसर, तब कोर्ट पहुंचा मामला

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Atul Tiwari
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भोपाल के पेरेंट्स ने  DEO, कमिश्नर से लेकर पीएस तक की SPS की शिकायत, रसूख के चलते कार्रवाई नहीं कर पाए अफसर, तब कोर्ट पहुंचा मामला

राहुल शर्मा, BHOPAL. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद भोपाल के सागर पब्लिक स्कूल यानी SPS ने 118 बच्चों से वसूली गई 20 लाख 67 हजार अवैध फीस वापस लौटा दी। द सूत्र यह पहले ही बता चुका है कि कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर सागर ग्रुप ने कोर्ट में माफी भी मांगी। कोर्ट के फैसले से साबित हुआ कि सही हमेशा सही ही होता है, उसके आगे किसी का रसूख या पॉवर नहीं चल सकता। कोर्ट के निर्णय के बाद बच्चों को जो राहत मिली, वह सरकारी सिस्टम पर तमाचा है। दरअसल, सागर पब्लिक स्कूल की इस अवैध वसूली को लेकर पेरेंट्स ने जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ, लोक शिक्षण संचालनालय यानी डीपीआई के कमिश्नर और स्कूल शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव यानी पीएस को शिकायत की, पर सागर ग्रुप के रसूख के चलते कोई अधिकारी नियम कानून होते हुए भी कार्रवाई नहीं कर पाया। लगा कि पेरेंट्स थक हारकर बैठ जाएंगे और अपने साथ हुए अन्याय को लेकर कुछ नहीं करेंगे, पर माई पेरेंट्स एसोसिएशन ना डरा, न झुका। मामले को हाईकोर्ट लेकर पहुंचे और न्याय मिलने तक लड़ते रहे। 



शिकायत से लेकर आरटीआई तक लगाई पर जवाब नहीं मिला



स्कूल की फीस संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए मध्यप्रदेश निजी विद्यालय फीस विनियम अधिनियम 2017 मध्यप्रदेश में 2020 से लागू है। फीस संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए जिला और प्रदेश समिति है। जिला समिति के अध्यक्ष कलेक्टर और सचिव जिला शिक्षा अधिकारी होते हैं। वहीं जिला समिति द्वारा कार्रवाई नहीं करने या की गई कार्रवाई से संतुष्ट नहीं होने पर इसकी शिकायत प्रदेश समिति को की जा सकती है, जिसके अध्यक्ष संचालक स्कूल शिक्षा है। सागर पब्लिक स्कूल मामले में पेरेंट्स ने फीस अधिनियम के तहत दोनो कमेटियों को शिकायत की। बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाए, ​पर शिकायत दफ्तर में धूल खाती रही। पेरेंट्स ने शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई यह जानने के लिए आरटीआई तक लगाई, पर आज तक उसका जवाब नहीं आया। 



रसूख के आगे सिस्टम का इस कदर लाचार होना शर्मनाक...



जिम्मेदार 1 : नितिन सक्सेना, जिला शिक्षा अधिकारी




  • आपकी समस्या का समाधान करने ले रहे वेतन : 1 लाख 20 हजार रुपए से ज्यादा प्रति माह


  • कब की शिकायत : 17 अगस्त 2020 और 4 दिसंबर 2020

  • क्या थी जिम्मेदारी : फीस अधिनियम की धारा 9 की उपधारा 1 और 7 के अनुसार यदि स्कूल पर कार्रवाई करते हुए बढ़ी हुई फीस स्टूडेंट को वापस करवाना थी। 

  • पेरेंट्स को क्या मिला जवाब : पेरेंट्स शैलेष बावा ने बताया कि डीईओ हमेशा ही शिकायतों पर कार्रवाई की बात को टालते रहे। हर बार सिर्फ एक ही जवाब नोटिस भेजा है, पर नोटिस के बाद क्या जवाब आया, क्या कार्रवाई हुई ये कभी नहीं बताया।  

  • गैर जिम्मेदाराना रवैया : डीईओ नितिन सक्सेना गोलमोल जवाब देते रहे। उन्होंने कहा कि हमें जो शिकायत की थी, उसका निराकरण हो गया। जब पूछा कि फिर पेरेंट्स हाईकोर्ट क्यों गए, तो डीईओ इसका जवाब ठीक से नहीं दे पाए।



  • जिम्मेदार 2 : अभय वर्मा, कमिश्नर, लोक शिक्षण संचालनालय




    • आपकी समस्या का समाधान करने ले रहे वेतन : 1 लाख 70 हजार रुपए से ज्यादा प्रति माह


  • कब की शिकायत : 14 दिसंबर 2020

  • क्या थी जिम्मेदारी : फीस अधिनियम के तहत मामला राज्य कमेटी के संज्ञान में लेकर पेरेंट्स को न्याय दिलवाना था। संबंधित स्कूल पर 2 से 6 लाख रूपए तक का जुर्माना भी लगा सकते थे।  

  • पेरेंट्स को क्या मिला जवाब : पेरेंट्स शैलेष बावा ने बताया कि कमीश्नर से हर बार यह जवाब मिला कि हमने स्कूल वालों को बुलवाया है, जल्द समाधान करवा देंगे, पर ये समाधान कभी हुआ नहीं।   

  • गैर जिम्मेदाराना रवैया : कमीश्नर अभय वर्मा को इस संबंध में कॉल किया। रिसीव नहीं करने पर व्हॉट्सएप पर मैसेज भी किया, उन्होंने मैसेज को पढ़ भी लिया पर कोई रिप्लाई नहीं दिया। 



  • जिम्मेदार 3 : रश्मि अरुण समी प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा




    • आपकी समस्या का समाधान करने ले रहे वेतन : 2 लाख 20 हजार रुपए से ज्यादा प्रति माह


  • कब की शिकायत : दिसंबर 2020 

  • क्या थी जिम्मेदारी : फीस अधिनियम के तहत जिला कमेटी और राज्य कमेटी द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने पर संबंधित अधिकारियों पर एक्शन लेना था। 

  • पेरेंट्स को क्या मिला जवाब : पेरेंट्स शैलेष बावा ने बताया कि जब वे पीएस के पास शिकायत लेकर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि सुविधाएं चाहिए तो पैसा तो देना पड़ेगा, यदि आप पैसा नहीं दे सकते तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं।   

  • गैर जिम्मेदाराना रवैया : प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा रश्मी अरूण समी को इस संबंध में कॉल किया। रिसीव नहीं करने पर व्हॉट्सएप पर मैसेज भी किया, पर कोई रिप्लाई नहीं आया। 



  •  फिर कोई मामला कोर्ट ना पहुंचे, इसलिए पोर्टल ही कर दिया बंद



    सूबे के प्राइवेट स्कूल संचालकों को ट्यूशन फीस के नाम पर छात्रों से वसूली जाने वाली राशि का मदवार ब्योरा स्कूल शिक्षा विभाग (School Education Department) के एजुकेशन पोर्टल (educationportal.mp.gov.in) पर अपलोड करना अनिवार्य है। 19 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों के बारे में यह निर्देश जागृति पालक संघ (Jagrati Palak Sangh) की याचिका पर दिया था। सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का पालन भी नहीं करवा सकी। पालक संघ के महासचिव प्रबोध पांडे का सीधा आरोप है कि एसपीएस की तरह ही एजुकेशन पोर्टल से बढ़ी हुई फीस की डिटेल लेकर अन्य पेंरेट्स शिकायत न करने लगे या कोर्ट की शरण में न चले जाए, इसके लिए उन्होंने पोर्टल ही बंद कर दिया। 



    जनवरी 2022 से एजुकेशन पोर्टल पर नहीं दिख रहा फीस का ब्योरा 



    एजुकेशन पोर्टल पर मध्यप्रदेश निजी विद्यालय विनियमन क्रियान्वयन प्रणाली का एक विकल्प है। इसे क्लीक करने पर निजी स्कूलों की फीस का ब्यौरा मिलना था। इससे फायदा यह होता कि एडमीशन के समय ही पेरेंट्स यह देख पाते कि कौन सा स्कूल कितनी फीस ले रहा है। उस सुविधानुसार पेरेंट्स अपने बच्चे का एडमीशन कराते और यदि पोर्टल पर दर्ज फीस से ज्यादा स्कूल वसूली करता तो उसकी शिकायत अधिकारियों से की जा सकती थी, पर निजी स्कूलों को सिस्टम के संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण कोई नहीं हो सकता कि जनवरी 2022 से यह बंद कर दिया गया। अब आप मध्यप्रदेश निजी विद्यालय विनियमन क्रियान्वयन प्रणाली वाले विकल्प पर क्लिक करेंगे तो इसमें एरर ही आएगा।    



    लाखों की सैलरी ले रहे अधिकारी तो क्यों कोर्ट जाए एक आम व्यक्ति



    स्कूल पेरेंट्स को लूट ना सकें, इसके लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई है। वह कार्रवाई कर सके, इसके लिए कानून के रूप में उन्हें अधिकार भी दिए गए हैं। इसके बावजूद सिस्टम के नाकारेपन का खामियाजा पेरेंट्स को भुगतना पड़ता है और फिर हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ती है। कोर्ट में भी न्याय पाना इतना आसान नहीं है। समय के साथ इसमें बहुत अधिक पैसा भी खर्च होता है। एक आम पेरेंट्स के लिए यह आसान नहीं। ऐसे में सवाल तो यही खड़ा होता है कि आपके और हमारे टैक्स के पैसों से लाखों की तन्ख्वाह लेने वाले ये अधिकारी आंख बंद कर क्यों बैठे रहते हैं। शिकायत होने पर भी यह सिस्टम अंधा, गूंगा और बेहरा क्यों हो जाता है। सवाल यह भी है कि एसपीएस मामले में कोर्ट के निर्णय के बाद सिस्टम को जो तमाचा लगा है, क्या वह अब सुधरेगा?



    अन्य बच्चों को न्याय मिलेगा, इसकी उम्मीद कम ही है



    हाईकोर्ट ने एसपीएस मामले में 118 बच्चों की फीस वापस करवाई, जबकि एसपीएस की ही अन्य ब्रांच में करीब 20 हजार बच्चे हैं। इसके अलावा प्रदेश में और भी कई स्कूल है जिन्होंने कोरोनाकाल में जमकर फीस वसूल की। फीस अधिनियम की धारा 9 की उपधारा 2 डीईओ को यह अधिकार देती हैं कि वह ऐसे मामलों का स्वयं संज्ञान लेकर उसका निराकरण करें...पर ऐसे अधिकारी पेरेंट्स और बच्चों की समस्या छोड़ किन कामों में व्यस्त रहते हैं यह तो वही जाने...पर हकीकत तो यही है कि फिलहाल तो सिस्टम है वह प्रदेश के सभी पेरेंट्स को न्याय दिला पाए इसकी उम्मीद कम ही है।


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