राहुल गांधी से कांग्रेस, आदिवासी की मौत से कांग्रेस और जयस; लाड़ली बहन और भगवा से बीजेपी माहौल बनाने में जुटी

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Sanjay gupta
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राहुल गांधी से कांग्रेस, आदिवासी की मौत से कांग्रेस और जयस; लाड़ली बहन और भगवा से बीजेपी माहौल बनाने में जुटी

संजय गुप्ता, INDORE. विधानसभा चुनाव में सत्ता के गलियारे मालवा-निमाड़ की 66 सीटों पर भी हाल ही में हुई 3 अहम घटनाएं असर डालने वाली हैं। पहली राष्ट्रीय स्तर की घटना राहुल गांधी को 2 साल की सजा और लोकसभा सदस्यता जाना… दूसरी घटना महू में आदिवासी की मौत,  इसी से जुड़ी एक और घटना जो ज्यादा उठी नहीं, देपालपुर में दलित किसान की पिटाई से मौत और तीसरी घटना लाड़ली बहना योजना का लॉन्च होना। कुछ घटनाओं का राजनीतिक लाभ कांग्रेस लेने की कोशिश करेगी तो किसी में जयस का दखल बढ़ेगा और कहीं पर बीजेपी। इनका असर किस तरह होगा, इन्हें समझते हैं।



राहुल गांधी की राजनीतिक शहादत



आपको खुदा का वास्ता… एक बार मेरी बात सुन लीजिए। ये फिल्म और आम चर्चाओं के बीच डायलॉग सुना होगा, लेकिन फिलहाल कांग्रेस में अब नया डायलॉग चल रहा है… आपको खुदा का वास्ता, कृपया राहुल गांधी के लिए एकजुट हो जाइए। कांग्रेस यानी गांधी परिवार, जब इस परिवार पर विपत्ति आई है तो कांग्रेस के एकजुट होने का इतिहास रहा है और राहुल गांधी की राजनीतिक शहादत को अगले विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस भुनाने में जुट गई है। आम भारतीय मतदाताओं का भी जनमानस रहा है कि जो पीड़ित है उसका साथ दो, जिसे राजनीति में सहानुभूति लहर कहते हैं जो बार-बार चुनाव में दिखी है। मालवा-निमाड़ की 66 सीटें सत्ता का गलियारा रहा है, ऐसे में कांग्रेस कैसे इस मुद्दे पर एकजुट होती है, ये सबसे अहम साबित होगा, लेकिन ये तब जब कांग्रेस नवंबर में वोटिंग होने तक इस मुद्दे को भुना पाए तो। पीसीसी चीफ कमलनाथ से बेहतर मध्यप्रदेश में गांधी परिवार और उनसे जुड़ी कांग्रेसियों की भावना को कोई नहीं समझ सकता है, अब वे कैसे इसे भुनाते हैं ये सबसे अहम होगा, लेकिन उन्हें इस मुद्दे से कांग्रेस को एकजुट करके का तगड़ा मुद्दा मिला है। ये घटना फिलहाल राजनीतिक लिहाज से कांग्रेस के पक्ष में जाती दिख रही है।



महू में आदिवासी युवक की मौत



महू में पहले आदिवासी युवती की हत्या और बवाल के बाद युवक की पुलिस गोलीबारी में मौत। इस घटना को कांग्रेस ने तत्काल लपका है, क्योंकि मालवा-निमाड़ में प्रदेश की 47 में से 22 आदिवासी सीट इसी बेल्ट में हैं। झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी जैसे जिले में पूरी सीट एसटी की हैं और बीते चुनाव में कांग्रेस ने अलीराजपुर, झाबुआ में पूरी सीटें जीती थीं। धार आदिवासी जिले में 7 में से 5 सीटें आदिवासी की थीं और इसमें से कांग्रेस ने सभी पर कब्जा जमाया था। ये वही सेक्टर है जिस पर हाल के समय बीजेपी ने केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर सबसे ज्यादा फोकस किया है। आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू किया, लेकिन एक घटना कहीं उनकी पूरी मेहनत पर पानी नहीं फेर दे? बीजेपी ने इसके डैमेज कंट्रोल के लिए स्थानीय विधायक, मंत्री उषा ठाकुर और राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार को चुप करा दिया, जिस पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीजेपी और संगठन के लिए ये घटना मालवा-निमाड़ के लिए सबसे अहम है। वहीं कांग्रेस के लिए इसका पूरा फायदा उठाने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा जयस है। जयस चुनाव तक इस पूरे मामले को जमकर भुनाने में जुट गई है। जयस का पूरा फोकस इसी बात पर है कि वो आदिवासी सीट के साथ ही उनके द्वारा प्रभावित होने वाली मालवा-निमाड़ की 10 सीटों पर भी अपना जोर दिखाकर अगले चुनाव में किंगमेकर की भूमिका में आ सके। कांग्रेस कैसे जयस का तोड़ ढूंढती है ये अहम होने जा रहा है।



इस दबी घटना पर कांग्रेसियों को सुध ही नहीं पड़ी



इसी के साथ एक और घटना हुई। देपालपुर में दलित किसान मायाराम की दबंगों द्वारा हुई पिटाई से मौत, लेकिन इस मामले को महू की घटना के चलते राजनीतिक तूल नहीं मिला। खुद देपालपुर कांग्रेस विधायक विशाल पटेल ही चुप्पी साधे बैठे रहे, जिस पर कांग्रेस की बैठक में आदिवासी मोर्चा नेता ने ही सवाल खड़े कर दिए। सांवेर एससी सीट है, लेकिन यहां से दावेदारी कर रही रानी बौरासी ने भी इसे लेकर कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं दिखाई। ये बीजेपी के लिए प्लस प्वांइट रहा। एससी की मालवा-निमाड़ में 9 सीटें हैं।



बीजेपी लाड़ली बहना से जोश में है, लेकिन ये दोधारी तलवार



बीजेपी, शासन की लाड़ली बहना योजना से जोश में है। इसे लेकर गेम चेंजर की बात कही जा रही है, लेकिन फिलहाल पहले चरण में जिस तरह से लाइन लगी और केवाईसी को लेकर परेशानी आई, फॉर्म खत्म हुए, इससे एक डर ये है कि धूप में घंटों लाइन में लगने जैसी घटनाएं, योजना क्रियान्वयन की समस्याएं, महिलाओं को गुस्से में नहीं भर दें, महिला गुस्से में तो पूरा परिवार भी गुस्से में आएगा। उधर इस योजना को लेकर जानकारों का कहना है कि फायदा 30-40 फीसदी को, लेकिन योजना में कटने वाले ज्यादा, तो ऐसा ना हो कुछ तो पक्ष में सरकार कर ले, लेकिन अधिकांश नाराज होकर बैठ जाएं कि हमें योजना से बाहर क्यों कर दिया। ऐसे में ये दोधारी तलवार होने वाली है।



बीजेपी के लिए सरकारी योजना, भगवामय माहौल सबसे अहम



बीजेपी के लिए 2 सबसे बड़े रास्ते राजनीतिक रूप से अहम हैं। सरकारी योजनाओं के जरिए मतदाताओं को लुभाना जैसे लाड़ली बहना, फिर इधर युवाओं के लिए युवा नीति घोषणा जिसमें परीक्षा शुल्क में राहत के साथ 8 हजार स्टायफंड वाली घोषणा है। ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर सरकार चुनाव के पहले कोई दांव खेल सकती है। बीजेपी के पास सत्ता में होने का ये लाभ है कि वो किसी भी समय कोई बड़ी गेम चेंजर घोषणा कर सकती है और अमल में भी ला सकती है। उधर जिस तरह से बीजेपी के हमेशा से गढ़ रहे मालवा-निमाड़ को पार्टी भगवामय माहौल में ढाल रही है, वो सबसे बड़ा राजनीतिक प्रभाव छोड़ने वाली है। शहरों में भगवा झंडों की मांग बढ़ रही है और कथाएं हो रही रही हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी सक्रिय होते जा रहे हैं। उनका हनुमान चालीसा का आयोजन खासी चर्चा में रहा है। ऐसे में उनके हाथ खुलने का सभी इंतजार कर रहे हैं।



राजनीतिक प्रभाव में कांग्रेस आगे



फिलहाल राजनीतिक प्रभाव से बात करें तो कांग्रेस ने बीजेपी से लीड ली हुई है, हालांकि बात 19-20 की ही है। किसी पार्टी को भी मालवा-निमाड़ में क्लीयर बढ़त नहीं दिख रही है, लेकिन यदि बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस बीते चुनाव वाली स्थिति भी बनाती है तो ये उसके लिए भारी बढ़त वाली स्थिति ही रहेगी, क्योंकि 66 में से 57 सीट जीतने वाली बीजेपी यदि बीते चुनाव 2018 की तरह 30 के आसपास सिमटती है, तो उसके पास अन्य जगह के गड्ढे भरने का रास्ता बंद हो जाएगा।


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