अगले साल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिए वास्तु सुधारने पर बीजेपी और कांग्रेस का ध्यान, नेता नहीं छोड़ना चाहते कोई कसर

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Rahul Garhwal
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अगले साल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिए वास्तु सुधारने पर बीजेपी और कांग्रेस का ध्यान, नेता नहीं छोड़ना चाहते कोई कसर

हरीश दिवेकर, BHOPAL. 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस-बीजेपी रणनीति के स्तर पर माथापच्ची तो कर ही रही हैं। इस बार धर्म, कर्म, वास्तु, ज्योतिष किसी भी चीज का सहारा लेने से गुरेज करने वाली नहीं हैं। फिलहाल तो जितना फोकस अपनी रणनीति बनाने पर है उतना ही ध्यान अपना-अपना वास्तु सुधारने पर है। कमलनाथ अपने ही ऑफिस के मेन गेट से जाने से कतराने लगे हैं तो बीजेपी नए ऑफिस में जाने को लेकिन अपनों की नाराजगी से घिरी हुई है।





2023 की जंग जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर





चुनाव में पॉलीटिकल पार्टीज की जीत-हार का फैसला उनकी फुलप्रूफ स्ट्रेटजी करती है। कार्यकर्ताओं की मेहनत करती है या फिर जनता का भरोसा करता है। ये सारे फैक्टर जरूरी होंगे लेकिन इससे पहले दोनों ही दल वास्तु को लेकर परेशान हैं। ये सही है कि 2023 की जंग जीतने के लिए कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं लेकिन इसमें किसी एंगल से कोई कमी न रह जाए ये फिक्र भी पूरी है। इसमें वास्तुदोष भी शामिल है। इसे अंधविश्वास कह लीजिए या आस्था कह लीजिए कांग्रेस खुलकर तो बीजेपी दबी-छुपी बातों के सहारे वास्तु के मामले में उलझी हुई है। कांग्रेस ने तो अपनी पुरानी जीत का जिम्मा भी काफी हद तक वास्तु को दे ही दिया है। बीजेपी अब नई बिल्डिंग पर दांव लगाकर नए रण में उतरने की तैयारी में है।





बीजेपी के सारे ऑपरेशन्स पुराने आरटीओ भवन से हो रहे संचालित





बीजेपी का प्रदेश मुख्यालय पहले से ही हर लिहाज से भव्य था लेकिन अब उससे भी भव्य भवन तैयार किया जा रहा है। नई 10 मंजिला इमारत होगी। जिस पर ऐसे इंतजाम होंगे कि हेलीकॉप्टर भी बेधड़क उसकी मजबूत छत पर लैंड कर सकें। जो लोग भोपाल से वाकिफ हैं वो जानते होंगे कि बीजेपी मुख्यालय के सामने आरटीओ का ऑफिस था। आरटीओ ऑफिस के सामने मानसरोवर बिल्डिंग है। ये पूरा इलाका या तो अस्त व्यस्त रहा है या शहर की गहमागहमी से दूर सन्नाटा ही पसरा दिखाई दिया है। अब आरटीओ की इसी बिल्डिंग से बीजेपी चुनावी तैयारियों में जुटने वाली है। बीजेपी मुख्यालय को तोड़कर नए सिरे से बनवाने के लिए अभी बीजेपी मुख्यालय खाली हो रहा है। जब तक नया भवन बनकर तैयार नहीं होता तब तक सारे ऑपरेशन्स पुराने आरटीओ भवन से संचालित होंगे।





बीजेपी कार्यालय की बिल्डिंग को लेकर उठापटक





बीजेपी के वर्तमान प्रदेश कार्यालय ने 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल में आकार लिया। तब हबीबगंज यानी आज का रानी कमलापति रेलवे स्टेशन इलाका विस्तार ले रहा था। बीजेपी के नेताओं को भरोसा था ये क्षेत्र भविष्य में राजधानी का कोर एरिया होगा। यही बात ध्यान में रखते हुए करीब ढाई एकड़ का भूखंड पार्टी दफ्तर के लिए आरक्षित किया गया था। यहां 20 हजार वर्ग फीट की बिल्डिंग बनाई गई। करीब 27 हजार वर्ग फीट पर कमर्शियल स्पेस है। हालांकि अभी भी ऑफिस परिसर में पार्किंग की बड़ी समस्या है। नई बिल्डिंग में बेसमेंट में पार्किंग होगी और अन्य फ्लोर पर अलग-अलग काम होंगे।





कांग्रेस कार्यालय में कई बदलाव





बिल्डिंग को लेकर उठापटक बीजेपी में जारी है तो कांग्रेस भी पीछे नहीं है। एक बार जीत के बाद कॉन्फिडेंस में आई कांग्रेस को अपनी रणनीति  के साथ-साथ वास्तुविदों पर भी पूरा भरोसा है। जिनकी सलाह पर पहले भी कांग्रेस कार्यालय में कई बदलाव किए गए। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिला। उस वास्तु में कुछ कमी रह गई शायद जिसकी वजह से सरकार टिक न सकी। लिहाजा अब नए सिरे से वास्तु के अनुसार काम हो रहा है।





सरकार और वास्तु की पुरानी कहानी





सरकार और वास्तु की कहानी कोई नई बात नहीं है। राजशाही जितनी बुलंद रही है वास्तु पर भरोसा भी उतना ही गहरा रहा है। एमपी की विधानसभा पर तो वास्तुदोष होने के इल्जाम लगते ही रहे हैं अब कांग्रेस भी इसी डर से घिरी हुई है। बीजेपी कार्यकर्ता भी दबी जुबान में वास्तु दोष की बात करने लगे हैं। वैसे तो बीजेपी को भरोसा है कि चुनाव से पहले वो अपनी जगह पर दोबारा वापसी कर ही लेगी लेकिन वो वास्तु पार्टी को जंचेगा या नहीं ये कहना तो मुश्किल है। मुखालफत की एक बड़ी वजह ये भी है। इधर 15 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस भी वास्तु के भरोसे ही सत्ता में वापसी का जरिया खंगाल रही है।





कांग्रेस कार्यालय के मेन गेट से एंट्री नहीं ले रहे कमलनाथ





खबर है प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ ने मेन डोर से कांग्रेस कार्यालय में एंट्री लेना बंद कर दिया है। बताया जा रहा है कि कुछ वास्तुविदों की राय पर ऐसा फैसला किया गया है। याद हो कि 2018 के चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने ऑफिस में वास्तु दोष निवारण करवाया था। उस वक्त वास्तुविदों ने दफ्तर के 3 वॉशरूम को वास्तु के लिहाज से खतरा बताया था जिन्हें बिना देर किए तुड़वा दिया गया। इसके बाद सत्ता में वापसी का श्रेय पार्टी के इसी बदले हुए वास्तु को दिया गया। अब एक बार फिर कांग्रेस में वास्तु के लिहाज से बदलाव जारी हैं। वास्तुविदों की सलाह पर बेसमेंट का कचरा हटा दिया गया है ताकि पॉजीटिव एनर्जी का संचार हो। अब प्रकोष्ठों के हिसाब से बेसमेंट में नया कंस्ट्रक्शन हो रहा है। हर कक्ष का वास्तु भी सोच समझ कर किया जाएगा। कांग्रेसियों का मानना है कि वास्तुविदों की सलाह पर काम करने का फायदा पिछले विधानसभा चुनाव में भी मिला था।





कांग्रेस में तेजी से हो रहा वास्तु का पालन





कांग्रेस में वास्तु का पालन तेजी से हो रहा है जबकि बीजेपी फिलहाल वास्तु का नाम नहीं ले रही। लेकिन भवन को तोड़कर बनाने की जल्दबाजी से कई नेता नाराज हैं जिसमें रघुनंदन शर्मा भी एक है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिख भवन न तोड़े जाने से जुड़ी कई दलीलें दी हैं। अपनी तहरीर में उन्होंने संगठन का हवाला दिया है, पुराने नेताओं का जिक्र किया है। इसके साथ ही ये भी लिखा है कि ये भवन पार्टी के लिए कितना शुभ रहा है। कांग्रेस का हवाला देते हुए रघुनंदन शर्मा ने ये भी लिखा कि नए भवन के लिए कांग्रेस ने पुराना ऑफिस ध्वस्त नहीं किया। बीजेपी को भी पुराना ऑफिस ध्वस्त करने की जगह नई जगह नया भवन बनाना चाहिए। रघुनंदन शर्मा की तरह और भी कई नेता नए भवन के पक्ष में नहीं है लेकिन खुलकर बोलने की हिम्मत जुटा पाना सबके लिए मुश्किल है। इस वास्तु परिर्वतन का मध्यप्रदेश के चुनाव पर क्या असर पड़ता है ये देखना भी दिलचस्प होगा।





वास्तु को लेकर रिस्क नहीं





वैसे पॉलीटिकल पार्टीज माने या न माने वास्तु को लेकर वो कभी रिस्क मोल नहीं लेतीं। मध्यप्रदेश विधानसभा भी इसका बड़ा सबूत है। जिस पर वास्तु दोष के इल्जाम लगते रहे हैं और कई बार बदलाव की कोशिश भी की गई। कांग्रेस तो अपनी रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने के साथ वास्तु पर भी पुरा ध्यान दे रही है। हालांकि बीजेपी रिस्क लेने को पूरी तरह तैयार है। क्या ये वाकई रिस्क है या गुपचुप पूजा-पाठ के साथ दोषों को दूर करने की कवायद होगी। ऐसे खुलासे वक्त गुजरने के साथ पूरे होते जाएंगे।



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