BHOPAL. फिल्म कितनी हिट होगी या फ्लॉप होगी, इसका अंदाजा उसका ट्रेलर देखकर ही हो जाता है। उसी तर्ज पर मध्यप्रदेश का चुनावी ट्रेलर भी ये इशारे कर रहा है कि किस पार्टी के पास अपनी फिल्म को संभालने का कितना वक्त है। ये ट्रेलर पिछले साल दिखाई दिया। जिसे देखकर ये कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की फिल्म कुछ हिट हो सकती है जबकि बीजेपी की फिल्म पिट सकती है। खासतौर से ग्वालियर चंबल, विंध्य और महाकौशल के क्षेत्रों में। दावा इसलिए नहीं किया जा सकता कि अब भी चुनाव में कम से कम 7 महीने का वक्त है। इस दरम्यान जिस दल का प्रमोशन दमदार होगा, उसी की पिक्चर भी हिट होगी। इसी मंशा के साथ बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। महिला मतदाताओं के बीच नंबर बढ़ाने के लिए कांग्रेस बीजेपी दोनों ने बड़ा दांव खेला है।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव
मध्यप्रदेश का चुनावी ट्रेलर था नगरीय निकाय चुनाव। जो कई बार टलते हुए बमुश्किल पिछले साल हो सके। जो नतीजे आए उसका अंदाजा शायद ना बीजेपी को था और ना कांग्रेस को। कांग्रेस की झोली में वो सीटें गिर गईं, जहां उसने जीत के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था। बीजेपी का हाल भी कमोबेश यही था क्योंकि उसके हाथ से वो सीटें निकल गईं, जिसके बारे में उसने भी नहीं सोचा था। 2018 में जिस क्षेत्र ने बीजेपी को दिल खोलकर वोट दिए। उस क्षेत्र की नाराजगी भी नगरीय निकाय चुनाव में नजर आई। बागियों के लिए मशहूर ग्वालियर चंबल का मतदाता ही बागी हो गया। महाकौशल का महाफैसला भी बीजेपी के मनमुताबिक नहीं रहा।
नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी बुरा हाल
- रीवा और सिंगरौली में बीजेपी की हार
लाड़ली बहना योजना बड़ा चुनावी दांव
अब अगर ये कहें कि नगरीय निकाय और विधानसभा के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और मतदाता का मूड भी। तो, ये खुद का दिल बहलाने वाला ख्याल ही होगा। अगर इस चुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण ना होते तो नतीजों से इतनी खलबली भी ना होती। बल्कि ये कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों के आधार पर अंडरकरंट को समझना ज्यादा आसान हो सकता है। जो फिलहाल बीजेपी की तरफ जाता बिल्कुल नहीं दिखाई देता। इन नतीजों से सबक लेकर बीजेपी ने बहुत तेजी से ऐसी योजनाएं उछालनी शुरू कर दी हैं जो मतदाताओं की नाराजगी दूर कर सकें। लाड़ली बहना भी इसकी एक बानगी है। जो बीजेपी का बड़ा चुनावी दांव मानी जा रही है।
बीजेपी और कांग्रेस ने शुरू किया घोषणाओं का गेम
अब आप ये सोच सकते हैं कि नगरीय निकाय चुनाव के इतने महीने गुजरने के बाद भला हम उसके नतीजों पर बातचीत क्यों कर रहे हैं। ये बात इसलिए जरूरी है कि प्रदेश की सियासत अब उस जगह आकर खड़ी हो चुकी है जो नगरीय निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव का मिड प्वॉइंट कहा जा सकता है। नगरीय निकाय के नतीजे से अब तक बीजेपी-कांग्रेस जितना सफर तय कर चुकी है उतना ही रास्ता अभी विधानसभा चुनाव तक तय भी करना है। बीजेपी लाख ये कहती रहे कि 2018 के नतीजों के साथ एंटीइन्कंबेंसी खत्म हो गई, लेकिन नगरीय निकाय के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। सरकार से नाराजगी अब भी कायम है जिससे निपटना है। कांग्रेस की जीत के लिए कहा जा रहा है कि ये तो तुक्का भिड़ गया। अब कांग्रेस को भी ये साबित करना है कि 2018 की जीत या नगरीय निकाय के नतीजे तुक्के से या इत्तेफाकन उसकी झोली में नहीं गिरे। अपनी-अपनी जीत पक्की करने के लिए दोनों दलों ने घोषणाओं का गेम शुरू कर दिया है। वार-पलटवार के दौर के बीच बीजेपी ने लाड़ली बहना योजना और महिला कर्मचारियों के लिए 7 दिन की एक्स्ट्रा सीएल का ऐलान किया, जो गेम चेंजर मानी जा रही है। तो वहीं कमलनाथ ने हर महिला को 1500 रुपए और 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने की घोषणा कर दी।
जिन अंचलों में बीजेपी को नगरीय निकाय चुनाव में नाउम्मीदी मिली। उन अंचलों का विधानसभा चुनाव का गणित भी समझ लें।
अंचलवार सीटों का गणित
- ग्वालियर चंबल में 34 सीटें
ऐसे में कोई भी पार्टी इन सीटों को दरकिनार करने का रिस्क नहीं लेंगी। बचे हुए समय में दोनों ही दल ज्यादा से ज्यादा नुकसान की भरपाई कर जीत की प्लानिंग में जुटे हैं।
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बीजेपी की विकास यात्रा
बीजेपी की विकास यात्रा पूरे प्रदेश में हुई। अगर ये कहें कि ग्रामीण इलाकों तक में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए ही बीजेपी ने ये यात्रा शुरू की थी तो कुछ गलत नहीं होगा। यात्रा की प्लानिंग की पृष्ठभूमि में कहीं ना कहीं नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे भी मिल ही जाएंगे। विकास यात्रा के अलावा मिशन आकांक्षा अलग से जारी है। ये मिशन उन सीटों पर है जहां बीजेपी को बहुत कम अंतर से पिछले चुनाव में हार मिली थी। क्या इत्तेफाक है कि इन सीटों में अधिकांश उन्हीं 3 अंचलों की है, जहां नगरीय निकाय चुनाव में हार मिली।
बीजेपी का मिशन आकांक्षा
आलोट, भिंड, लहार, गोहद, ग्वालियर पूर्व, श्योपुर, सबलगढ़, सुमावली, मुरैना, छतरपुर, बिजावर, पथरिया, दमोह, गुनौर, चित्रकूट, रैगांव, सतना, सिंहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बड़वारा, बरगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पश्चिम, शहपुरा, डिंडोरी, बिछिया, निवास, बैहर, लांजी, वारासिवनी, कटंगी, बरघाट, लखनादौन, गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पांढुर्णा, मुलताई, बैतूल, दिमनी, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा, सेंवड़ा, करेरा, चाचौड़ा, राघोगढ़, चंदेरी, देवरी और बंडा ऐसी ही सीटें हैं जहां बीजेपी का मिशन आकांक्षा जारी है। 2018 में इन सीटों पर कम अंतर से हार और नगरीय निकाय चुनाव में भी मनमाफिक नतीजे ना मिलना क्या इस बात का इशारा है कि यहां एंटीइन्कंबेंसी बढ़ी है, जिसे खत्म करने के लिए ही बीजेपी को आकांक्षा भरा मिशन चलाना पड़ा।
कांग्रेस के लिए चुनौती
कांग्रेस के लिए चुनौती है कि वो मतदाताओं के भरोसे को बनाकर रख सके। ताकि आने वाले चुनाव में कामयाबी की कहानी फिर दोहराना आसान हो। इन सब कोशिशों के बीच महिलाओं से जुड़ी घोषणा भी कुछ ना कुछ असर जरूर डालेंगी।
किसकी प्लानिंग होगी कामयाब?
जीत के लिए बीजेपी हर दांव चलने की कोशिश में है। एक तरफ आदिवासियों को रिझाने की कोशिश है तो महिला और युवा वोटर्स को लुभाने का काम भी जारी है। कांग्रेस भी इन तबकों के पास बीजेपी की नाकामियां गिनवाने पहुंच रही है। दोनों की अपनी-अपनी स्पेशल रणनीति है। अब किसकी चुनावी प्लानिंग कामयाब होती है और किसे सत्ता से दूर होना पड़ता है इसका फैसला बस 7 महीने दूर है।