BHOPAL. मध्यप्रेदश में मालवा और निमाड़ की अहमियत किसी से छिपी नहीं है। ये वो इलाके हैं जो जिसके सिर पर चाहें ताज सजा दें और जिसका चाहें उसका राज पाट मिटा दें। जो इस पर यकीन नहीं करते वे बीते 2 चुनाव के नतीजे देखकर मालवा-निमाड़ की ताकत पर यकीन कर सकते हैं। वैसे बीजेपी और कांग्रेस में मालवा-निमाड़ की ताकत पर कोई संदेह नहीं है। इसलिए तो ये दोनों दल कमर कसकर मालवा में जीत के लिए ताकत लगा रहे हैं। बीजेपी की खातिर यहां संघ एक्टिव बताया जा रहा है। तो कांग्रेस ने यहीं पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को फोकस में रखा था। हालांकि अब चिंता ये है कि एक नया खिलाड़ी यहां दोनों दलों का गणित खराब करने आ रहा है।
मालवा-निमाड़ के पास सत्ता की चाबी
कांग्रेस-बीजेपी दोनों मालवा-निमाड़ में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की जुगत भिड़ाने में जुटी हुई हैं। वजह है मालवा-निमाड़ के पास उस चाबी का होना जो सत्ता के दरवाजे खोल देती है। यही अंचल मेहरबान रहा तो बीजेपी अब तक सत्ता पर काबिज रही। पिछले चुनाव में इसी अंचल ने बीजेपी को धोखा दिया और बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई। इस बार दोनों दल किसी भी हालत में इस अंचल की ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करना चाहते हैं, लेकिन दोनों का खेल खराब करने के लिए यहां जयस भी कमर कस रहा है।
2 के बीच में तीसरे की एंट्री!
मालवा-निमाड़ में जयस तकरीबन डेढ़ दर्जन आदिवासी आरक्षित सीटों पर एक्टिव है। यही वजह है कि बीजेपी का 2018 में खेल बिगड़ गया था। गौरतलब है कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र में अच्छी-खासी आदिवासियों की संख्या है और जयस की बात करें तो ये मुख्य रूप से आदिवासियों का संगठन है और 2018 के मुकाबले 2023 आते-आते जयस पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है। इसी के चलते अभी हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में जयस के कई प्रत्याशी चुनाव जीते थे तो इसलिए आने वाले विधानसभा चुनाव में जयस खासकर मालवा-निमाड़ में गेम चेंजर साबित हो सकता है। चूंकि मालवा-निमाड़ को सत्ता की राह कहा जाता है। इसलिए जयस राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों का खेल भी बिगाड़ सकता है।
2018 विधानसभा चुनाव के नतीजे
बात करें साल 2018 के विधानसभा चुनावों की तो मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से कांग्रेस ने 35 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भारतीय जनता पार्टी के केवल 28 प्रत्याशी ही जीतकर विधानसभा पहुंचे सके थे। यही वो परिणाम था जिसने कांग्रेस के 15 साल का वनवास खत्म कर पार्टी को सत्ता की चाबी सौंपी थी। कांग्रेस के लिए ये परिणाम इसलिए भी उत्साहजनक थे, क्योंकि 2013 के विधानसभा चुनाव में स्थितियां बिल्कुल उलट थीं। बीजेपी ने इस इलाके में एकतरफा जीत हासिल करते हुए 57 सीटों पर अपना झंडा बुलंद किया था। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही हासिल हो सकी थीं। हालांकि 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद मालवा-निमाड़ सीटों के लिहाज से बीजेपी के लिए फायदे वाला रहा। 66 सीटों में से अब बीजेपी के पास 33 और कांग्रेस के पास 30 सीटें हैं। 3 निर्दलीय विधायक हैं।
कांग्रेस की प्लानिंग पक्की, बीजेपी को किसने संभाला?
मालवा का क्षेत्र किसी लिहाज से कम नहीं है। विधानसभा की सबसे ज्यादा सीटें इसी अंचल में हैं। 66 सीटों में से 22 सीटें आदिवासियों के खाते की हैं। धार्मिक दृष्टि से भी मालवा को कम नहीं आंका जा सकता। कहा जाए तो मालवा में हर वो मसाला मौजूद है। जो सत्ता की शानदार ग्रेवी तैयार करता है। पिछले चुनाव में इस ग्रेवी का प्याला कांग्रेस के हाथ लगा था, मगर स्वाद बीजेपी को मिला। लेकिन इस बार कांग्रेस की प्लानिंग पक्की है और बीजेपी की सांसें थमी हुई हैं जिसके लिए फिलहाल ऑक्सीजन मास्क बनने का जिम्मा संघ ने संभाल लिया है।
मिशन मालवा के लिए बीजेपी और कांग्रेस की प्लानिंग
मालवा को लेकर दोनों पार्टियां अपने-अपने लेवल पर तगड़ी प्लानिंग करने में जुटी हैं। अगर जयस मैदान में उतरने से पहले कांग्रेस से हाथ मिला लेती है तो कांग्रेस का पलड़ा वैसे ही भारी हो जाएगा। हालांकि मालवा के लिए बीजेपी कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। बीजेपी के बैक सपोर्ट में संघ तनकर खड़ा हो चुका है। कुछ ही दिन पहल संघ प्रमुख मोहन भागवत यहां से दौरा करके लौटे हैं। सिर्फ मालवा की चिंता का आलम ये है कि संघ प्रमुख 17 दिन में 2 बार यहां का दौरा कर चुके हैं। आदिवासी सीटों के लिए बीजेपी ने सौगातों का पिटारा पहले ही खोल दिया है। जो सौगातें आदिवासी अंचलों को दी गई हैं वो मालवा की 22 सीटों पर भी सीधा असर डालेंगी।
बीजेपी के लिए संघ एक्टिव, कांग्रेस के दिग्गजों की खास तैयारी
बीजेपी के लिए संघ एक्टिव है तो कांग्रेस के दोनों दिग्गज मालवा के लिए खास तैयारी कर रहे हैं। मालवा ने कांग्रेस को जीत के बाद भी ऐसा झटका दिया कि जीती जिताई सत्ता हाथ से निकल गई। अब कांग्रेस का फोकस मालवा की हारी हुई सीटों पर है। खबर तो ये भी है कि मालवा के सिर्फ 3 विधायकों को छोड़कर कांग्रेस बाकी सबका टिकट भी कन्फर्म कर चुकी है। इसके अलावा 5 पॉइंट का खास प्रोग्राम भी तैयार किया है।
कांग्रेस का 5 पॉइंट प्रोग्राम
- कांग्रेस स्थानीय मुद्दों की पहचान कर घोषणा पत्र तैयार करेगी।
कांग्रेस के लिए मुश्किल हालात
जिन सीटों पर ज्यादा अहम मुद्दे होंगे, उन सीटों के लिए ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस अलग से घोषणा पत्र ला सकती है। सारी कवायद का सबब ये है कि सत्ता की चाबी वाला अंचल हाथ से फिसल न जाए। मालवा ने नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों में बीजेपी का साथ निभाया। पंचायत चुनाव में जयस को भी बराबर रिस्पॉन्स मिला है, लेकिन कांग्रेस के लिए हालात मुश्किल नजर आते हैं।
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किसे मिलेगी सत्ता की चाबी?
कांग्रेस के लिए मालवा इसलिए मुश्किल है क्योंकि कई मोर्चों पर जंग जीतनी है। कुछ पुराने नेताओं से भितरघात का डर है। तुलसी सिलावट के पार्टी बदलने से एक बड़ा और आरक्षित वर्ग का नेता कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है। दल बदलने वाले इन नेताओं के समर्थकों ने पारा तो बीजेपी का भी बढ़ा रखा है, जिसकी वजह से बीजेपी अपने ही कार्यकर्ताओं के बीच चल रही जंग से परेशान है। जयस जितनी ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी उतना ही ज्यादा दोनों पार्टियों का टेंशन बढ़ाएगी। ऐसे में अब बीजेपी संघ के सहारे नजर आती है तो वहीं कांग्रेस अपनी फाइव प्वांइट प्लानिंग के भरोसे है। सत्ता की चाबी कौन हथिया पाता है, ये देखना दिलचस्प होगा।