मालवा-निमाड़ में बीजेपी खोए जनाधार तो कांग्रेस 2018 की सीटों को हासिल करने की फिराक में, बीजेपी संगठन मजबूत; कांग्रेस छिन्न-भिन्न

author-image
Arvind Tiwari
एडिट
New Update
मालवा-निमाड़ में बीजेपी खोए जनाधार तो कांग्रेस 2018 की सीटों को हासिल करने की फिराक में, बीजेपी संगठन मजबूत; कांग्रेस छिन्न-भिन्न

BHOPAL. मालवा-निमाड़ यानी मध्यप्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु, सालों का अनुभव यह रहा है कि मध्यप्रदेश की सत्ता का फैसला यहीं से होता है। यहां जो जीता, वही सिकंदर। 2018 में मालवा-निमाड़ की सीटों पर मिली बढ़त के कारण ही कमलनाथ 15 साल का वनवास खत्म कर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल हुए थे। इसके 15 साल पहले जब साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया था, तब यहां बीजेपी के लिए क्लीन स्वीप जैसी स्थिति बनी थी।



35 कांग्रेस और बीजेपी के पास 28 सीटें



मालवा निमाड़ यानी इंदौर-उज्जैन संभाग। 15 जिले और 66 सीट इस क्षेत्र में हैं। इनमें से 35 अभी कांग्रेस के पास हैं। बीजेपी यहां अभी केवल 28 सीटों पर ही सीमित है, जबकि 3 निर्दलीयों के खाते में गईं थी। प्रदेश में 2020 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद इस क्षेत्र में भी समीकरण बदले। कांग्रेस 35 से 30 पर आ गई और बीजेपी 33 पर पहुंच गई। प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर आदिवासियों की भूमिका निर्णायक है। 66 में से 22 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और वैसे यह क्षेत्र बीजेपी के लिए ज्यादा फायदे का रहा है। जनसंघ, जनता पार्टी और फिर बीजेपी के दौर में ज्यादातर मौकों पर इस क्षेत्र ने इन्हीं का साथ दिया। इस क्षेत्र ने प्रदेश को 4 मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी और वीरेंद्र कुमार सखलेचा दिए।



बीजेपी-कांग्रेस दोनों की निगाहें मालवा-निमाड़ पर



भारतीय जनता पार्टी जहां मालवा-निमाड़ में अपने खोए जनाधार को वापस हासिल करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रही है, वहीं कांग्रेस की कोशिश यह है कि 2018 में यहां जितनी सीटें उसे मिली हैं, उनमें और इजाफा हो। दोनों दलों का फोकस इसी क्षेत्र पर है। बीजेपी को 2018 में यहां इस लिहाज से करारी शिकस्त खाना पड़ी थी कि 2013 में जहां उसे 56 सीटें मिली थी, वहीं 2018 में यह आंकड़ा 28 पर आकर टिक गया था, यानी सीधा आधी सीटों का नुकसान। खरगोन में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था तो धार में उसे सिर्फ 1 सीट मिली थी। झाबुआ अलीराजपुर की 5 में से केवल एक सीट बीजेपी को मिली थी। बड़वानी में भी वह 1 सीट पर जीत हासिल कर पाई थी।



2018 में कांग्रेस की स्थिति अच्छी



इससे इतर, कांग्रेस 2013 के नतीजों की तुलना में 2018 में बहुत अच्छी स्थिति में रही थी। धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी और खरगोन के साथ ही उज्जैन, देवास, शाजापुर जिलों की सीटों पर भी कांग्रेस का प्रदर्शन पहले से बेहतर रहा था। पार्टी ने अभी इसी क्षेत्र में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है और एक-एक सीट की मॉनिटरिंग खुद कमलनाथ कर रहे हैं। अलग-अलग एजेंसियों से सर्वे करवाए जा रहे हैं और कुछ सीटें तो ऐसी चिह्नित कर ली गई हैं, जिन पर उम्मीदवारों की घोषणा काफी पहले करने की स्थिति बन सकती है। कांग्रेस उन सीटों पर भी बहुत ध्यान दे रही हैं, जहां उसे लगातार शिकस्त मिल रही है।



चेहरे बदलेगी बीजेपी, कांग्रेस में भी बदलेंगे समीकरण



मालवा-निमाड़ में बीजेपी इस बार आधी से ज्यादा सीटों पर नए चेहरों को मौका दे सकती है। पार्टी के वे विधायक जो 2 या 3 चुनाव जीत चुके हैं, उनकी मैदानी स्थिति को लेकर अलग-अलग स्तर पर पड़ताल चल रही है। निजी के साथ ही सरकारी एजेंसियां भी इस काम में लगी हैं। पार्टी इस बार मालवा निमाड़ में पारस जैन, रंजना बघेल, अंतर सिंह आर्य, नागर सिंह चौहान, दिलीप परिहार, सुलोचना पटेल, नीना वर्मा, देवेंद्र वर्मा जैसे दिग्गजों को उम्मीदवारी से वंचित कर सकती है। आदिवासी सीटों पर पार्टी नए चेहरों को मौका दे सकती है। इसके लिए अलग टीम मैदान संभाले हुए है।



नए चेहरों को मौका देगी कांग्रेस



कांग्रेस के वर्तमान विधायकों के टिकट में ज्यादा बदलाव की संभावना तो कम है, लेकिन जिन सीटों पर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है, वहां इस बार नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। वे सीटें जो कांग्रेस 2018 में बहुत कम अंतर से हारी थीं, उन पर पार्टी का विशेष फोकस है। यहां जीत की सर्वाधिक संभावना वाले चेहरों से कमलनाथ लगातार संवाद भी कर रहे हैं। पार्टी का प्रयास यह भी है कि यदि एक सीट पर दो या ज्यादा लोगों की दावेदारी है, तो उनके बीच तालमेल स्थापित करवाया जाए, ताकि किसी एक को मौका दिए जाने की स्थिति में दूसरा बगावती तेवर ना अपनाए।



50-50 पर हैं दोनों दल



चुनाव के करीब 8 महीने पहले की स्थिति और दोनों दलों की मैदानी कवायद पर यदि हम गौर करें तो दोनों दल 50-50 पर हैं। बीजेपी के पास मजबूत संगठन है, जो बूथ स्तर से भी नीचे पन्ना प्रभारी और अब तो अर्ध पन्ना प्रभारी के स्तर पर काम कर रहा है। सरकार की विभिन्न योजनाओं को संगठन के माध्यम से धरातल पर लाने में पार्टी कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। संगठन के जिम्मेदार लोग मैदान संभाल चुके हैं और डे-टु-डे की मॉनिटरिंग हो रही है।



कांग्रेस का संगठन छिन्न-भिन्न



कांग्रेस का संगठन तो छिन्न-भिन्न है, लेकिन मैदान कार्यकर्ता बहुत उत्साह में हैं। पिछले चुनाव में जीत के बाद जिस तरह से कांग्रेस को सरकार से बाहर होना पड़ा, उसकी कार्यकर्ता के मन में बहुत पीड़ा है। यही पीड़ा उसे सक्रिय किए हुए है। बीजेपी सरकार को लेकर जो नाराजगी है, उसे भी कांग्रेस भुनाने में लगी है। आदिवासी क्षेत्रों में जयस की बहुत सक्रियता है, पर इसका ज्यादा नुकसान बीजेपी को होता दिख रहा है। पिछले चुनाव में भी जयस एक तरह से कांग्रेस के मददगार की भूमिका में ही था। जिला और ब्लॉक स्तर पर कमजोर संगठन का नुकसान कांग्रेस को होना तय है।

 


MP Assembly Election 2023 एमपी में किसकी बनेगी सरकार एमपी विधानसभा चुनाव 2023 Scindia-Chambal and JYAS will decide the results in MP Assembly Election MP-2023 गर्भ में सरकार-किसकी होगी जय-जयकार एमपी में सिंधिया-चंबल और जयस तय करेंगे नतीजे एमपी में बीजेपी की चुनौती एमपी में कांग्रेस की चुनौती Whose government will be formed in MP