कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में बीजेपी के लिए जीत की राह आसान नहीं, कांग्रेस की है परंपरागत सीट

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Vivek Sharma
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कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में बीजेपी के लिए जीत की राह आसान नहीं, कांग्रेस की है परंपरागत सीट

CHHINDWARA. राजनीतिक रुप से मध्यप्रदेश का एक सशक्त जिला है छिंदवाड़ा। इसके नाम के पीछे भी एक अनोखी कहानी है। छिंद याने खजूर जैसे दिखने वाले पेड़ और वाड़ा मतलब की जगह। इसलिए इस जगह का नाम छिंदवाड़ा पड़ा, तो वहीं दूसरी कहानी है कि शेरों की आबादी होने के चलते इसका नाम सिंहवाड़ा था जो बाद में बदलकर छिंदवाड़ा हो गया। कहानी पुराने समय में नाम को लेकर जो भी रही हो लेकिन अभी राजनीतिक रुप से छिंदवाड़ा प्रदेश ही नहीं देश में चर्चाओं में बना रहता है।





राजनीतिक मिजाज





 छिंदवाड़ा को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है। वर्तमान में छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से कमलनाथ विधायक हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के दीपक सक्सेना ने जीत दर्ज की थी लेकिन कमलनाथ को सीएम बनाने के लिए दीपक सक्सेना ने सीट छोड़ दी और 2019 में हुए उपचुनाव में कमलनाथ छिंदवाड़ा से विधायक चुने गए। उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी विवेक बंटी साहू को करीब 26 हजार वोटों से हराया था। छिंदवाड़ा विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी से जीत दर्ज कराती आई है। 2003 से 2018 तक हुए चार विधानसभा चुनावों को देखे तो दो बार बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह और दो बार कांग्रेस के दीपक सक्सेना ने जीत दर्ज की है।





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राजनीतिक समीकरण 





 यहां कमलनाथ के सामने सभी समीकरण छोटे साबित हो जाते हैं। हालांकि कमलनाथ को एक बार इस सीट से हार का सामना करना पड़ा था। 1997 में लोकसभा के उपचुनाव में दिवंगत बीजेपी नेता सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को पटखनी दे दी थी। इस इलाके से एक बार हार का मुंह देखने के बाद कमलनाथ यहां से दोबारा कभी नहीं हारे। साल 2019 में मोदी लहर में जब प्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया, विवेक तन्खा, दिग्विजय सिंह तक चुनाव हार गए थे। उसमें भी कांग्रेस के लिए राहतभरी खबर छिंदवाड़ा से आई थी जहां से प्रदेश के एकमात्र कांग्रेस सांसद नकुलनाथ जीते थे। कहा जाता है कि नुकलनाथ की ये जीत कमलनाथ की छवि के चलते हुई थी।





जातिगत समीकरण 





 छिंदवाड़ा विधानसभा शहरी सीट है। यहां पंवार जाति के वोट ज्यादा हैं लेकिन चुनाव में जातिगत समीकरण का कोई असर नजर नहीं आता कैंडिडेट के प्रति एंटी इनकमबेंसी का फैक्टर हावी हो जाता है। यहीं वजह है कि चौधरी चंद्रभान सिंह और दीपक सक्सेना बारी-बारी से जीत दर्ज करते रहे हैं।





मुद्दे 





 छिंदवाड़ा मॉडल को कांग्रेस देशभर में प्रचारित करती आई है। यहां मेडिकल कॉलेज हैं, रोजगार की भी कोई बड़ी समस्या यहां नहीं है। सड़कों की हालत भी ठीक है। यहां जब हमने मुद्दे जानने चाहे तो स्थानीय मुद्दों की जगह देश और प्रदेश के मुद्दे राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बताए जिसके चलते कई बार माहौल गर्मा भी गया। छिंदवाड़ा सीट पर बीजेपी मेहनत कर रही है। लेकिन कमलनाथ की छवि और काम करने के तरीके से वोटर का झुकाव कांग्रेस की तरफ नजर आता है। आम आदमी भी समस्या नहीं बता पाएं। 2023 में भी बीजेपी विवेक बंटी साहू को ही प्रत्याशी बना सकती है।





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