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BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनाव से 8 महीने पहले बीजेपी ने अपने विधायकों को बड़ा टास्क दे दिया। 1, 2 नहीं 3 बार चुनाव जीत चुके विधायकों को अब अपने दिल पर पत्थर रखना है और अपने ही क्षेत्र की जनता से ब्रेकअप करना है। इस बार जनता और जनप्रतिनिधि का रिश्ता तोड़ने का काम पार्टी नहीं करेगी। बल्कि जनप्रतिनिधि यानी कि विधायक खुद मतदाता और अपने रिश्तों का दि एंड करेंगे। वजह है बीजेपी का मिशन 200।
बीजेपी का मिशन 200 पार
पिछले चुनाव में 121 सीट गंवाने वाली बीजेपी के घाव अब तक हरे हैं, जिन पर मरहम तब ही लगेगा जब 2023 के चुनाव में पार्टी दमदार वापसी करेगी। बीजेपी 200 से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है, उसके लिए कुछ सख्त फैसले लेने जरूरी हैं। अब जरा सोचिए जिस क्षेत्र में विधायक 56 इंच का सीना चौड़ा करके घूमते रहे। अफसर से लेकर आम जनता तक को ये जताने से नहीं चूके कि सूबे का सम्राट कोई भी हो इस क्षेत्र में तो उनका ही राज है। अब उन्हीं लोगों के बीच सिर झुकाकर ये ऐलान करना होगा कि हम राजपाट छोड़ रहे हैं। हारी हुई सीटों में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने यही बड़ा प्लान तैयार किया है।
गुजरात मॉडल को फॉलो करेगी बीजेपी
2018 में हार का दर्द झेल चुकी बीजेपी अब किसी कीमत पर उन नतीजों को दोहराना नहीं चाहते। इसके लिए भले ही अपने पुराने साथियों की कुर्बानी ही क्यों ना देनी पड़े। बीजेपी का मकसद 200 सीटों पर जीत हासिल करना है और अब वो सख्त फैसले लेने से पीछे हटने वाली नहीं है। इस जीत की खातिर मध्यप्रदेश में भी बीजेपी गुजरात मॉडल तो फॉलो करेगी ही उससे भी एक कदम आगे बढ़कर अपने ही विधायकों को रुसवा करने से भी बाज नहीं आएगी।
एंटीइंकंबेंसी खत्म होनी चाहिए
इस पूरी कवायद के पीछे बीजेपी का मकसद सिर्फ एक है। किसी भी तरह एंटीइंकंबेंसी खत्म होनी चाहिए। यानी जनता का गुस्सा वोट करते समय ईवीएम के सामने उतरे। उससे पहले ही ऐसी तिकड़म भिड़ा ली जाए कि वोटिंग से पहले ही जनता की नाराजगी काफूर हो जाए। गुजरात चुनाव से पहले पूरा कैबिनेट बदलकर नए सीएम और मंत्री बनाए गए। चुनाव से पहले जनता की नाराजगी खत्म करने और सत्ता विरोधी लहर को कमजोर करने का ये बीजेपी का पहला एक्सपेरिमेंट था जिसकी कामयाबी पर कोई सवाल नहीं उठाए जा सकते। उसी तर्ज पर बीजेपी मध्यप्रदेश में भी कुछ प्रयोग कर सकती है। फिलहाल जिस तरह के प्रयोग की अटकलें उससे हो सकता है बीजेपी का भला हो जाए लेकिन विधायकों को यकीनन वो प्रयोग नागवार गुजरेगा।
बीजेपी ने 13 सीटों पर बढ़ाया फोकस
इस बार बीजेपी की चुनावी रणनीति के निशाने पर कांग्रेस से ज्यादा मतदाताओं की भावनाएं हैं जिन्हें किसी भी तरह कैश कराने का प्लान है। नाराजगी है तो उसे मिटाना है और प्यार है तो उसे बनाए रखना है। नाराजगी मिटाने के लिए वो विधायक कुर्बान होंगे जो जनता को 5 साल में खुश नहीं रख पाए। इसके अलावा जहां बीजेपी लगातार हार का मुंह देख रही है उन सीटों के लिए माइक्रोलेवल की प्लानिंग की जाएगी। वोट ज्यादा, लेकिन सीटें कम। 2018 के विधानसभा चुनाव में ये दर्द झेल चुकी बीजेपी अब बेहद सतर्क है। पार्टी ने उन 13 सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है, जहां जीत-हार का अंतर 1300 वोटों से कम था।
बीजेपी का अनोखा प्लान
टिकट के दावेदार हर व्यक्ति से बीजेपी संगठन एक ही सवाल पूछने वाला है कि क्या आप 51 फीसदी वोट ला सकते हैं। अगर जवाब हां हुआ तो भी टिकट मिलने की कोई गारंटी नहीं है। 3-3 इंटरनल सर्वे के बाद भी बीजेपी बूथ और मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेगी। अगर उनका जवाब भी दावेदार के जवाब की तरह हां ही हुआ तब ही टिकट देने का फैसला होगा। इस चुनाव में बीजेपी वो बिल्ली है जो पिछली बार दूध से जली थी सो अब छाछ भी फूंककर पीना है। भले ही अपने रूठ जाएं या जुदा हो जाएं। बीजेपी हर रिस्क लेने को तैयार है, लेकिन एंटीइंकंबेंसी का सामना करने को तैयार नहीं है। इससे निपटने का बीजेपी ने बड़ा ही अनोखा प्लान तैयार किया है। कार्यकर्ताओं के रैंडम फीडबैक के बाद जिन नेताओं की जमीनी रिपोर्ट खराब होगी वो चुनाव से 2 महीने पहले खुद लोगों के बीच ये ऐलान करेंगे कि वो चुनाव नहीं लड़ने वाले। विधायक की फजीहत जरूर होगी, लेकिन इस फॉर्मूले को जनता की नाराजगी कम करने में कारगर माना जा रहा है। पार्टी ये भी मानकर चल रही कि जिनके टिकट कटेंगे उनमें से महज 5 फीसदी बागी होकर पार्टी बदलने का फैसला करेंगे।
हारी हुई सीटों पर जीत की रणनीति
2018 में 7 सीटों पर हार-जीत का अंतर नोटा को मिले वोटों से भी कम था, यानी यहां नोटा को ये वोट नहीं मिलते तो वर्ष 2018 में बीजेपी को कुल 116 सीटें मिल जाती और बीजेपी की सरकार बन जाती। इन 13 सीटों में से जीत वाली सीटों पर वोट बढ़ाने और हारी हुई सीट पर जीत की रणनीति तैयार की जा रही है। जौरा, बीना, कोलारस, इंदौर-5, थांदला, नागौद सीटें ऐसी रहीं, जहां बीजेपी की जीत का अंतर 1300 से भी कम वोटों का था। इन सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के साथ जीत का अंतर बड़ा करने की चुनौती को लेकर पार्टी तैयारी कर रही है। कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां हार-जीत का अंतर हजार से भी कम था। जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही चुनौती है।
2018 में इन सीटों पर कम अंतर से जीती बीजेपी
विधानसभा सीट |
चुनौती कांग्रेस के सामने भी कम नहीं है।
2018 में इन सीटों पर बेहद कम अंतर से जीती कांग्रेस
विधानसभा सीट |
इन सीटों पर बीजेपी का ध्यान तो है लेकिन जिला प्रभारियों का तालमेल भारी पड़ रहा है। यहां आपसी कलह नहीं थमी तो बीजेपी को मनमाफिक नतीजे नहीं मिल सकते।
मिशन 200 पार में आपसी कलह सबसे बड़ी रुकावट
मध्यप्रदेश में मजबूत रोडों का जाल बुन चुकी बीजेपी ने जीत का रोडमैप भी तगड़ा तैयार किया है, लेकिन ये तब ही काम आएगा जब इस पर अमल करने वाले प्रभारी और कार्यकर्ता एक होंगे। गुजरात की तर्ज पर सख्ती दिखाकर बीजेपी 3 बार के विधायकों तक का टिकट काट सकती है। लोगों की नाराजगी दूर कर सकती है, लेकिन कार्यकर्ता की नाराजगी से पार पाना, 2 दशक से प्रदेश पर राज कर रही पार्टी के लिए मुश्किल नजर आ रहा है। जिसे दूर करने के लिए बैठकों पर बैठकें तो हो रही हैं लेकिन कामयाबी अभी भी कोसों दूर नजर आ रही है। मिशन-2023 और अबकी बार 200 पार का नारा पूरा करने में यही आपसी कलह बीजेपी के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट बनती दिखाई दे रही है।