MP में कलेक्टर साहब को किसका इंतजार, रेत को लेकर कौनसे बीजेपी नेता भिड़े और बीजेपी-कांग्रेस के चक्कर क्यों काट रहे रिटायर्ड अफसर?

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Harish Divekar
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MP में कलेक्टर साहब को किसका इंतजार, रेत को लेकर कौनसे बीजेपी नेता भिड़े और बीजेपी-कांग्रेस के चक्कर क्यों काट रहे रिटायर्ड अफसर?

BHOPAL. 'बादलों से काट-काट के, कागजों पर नाम जोड़ना, ये मुझे क्या हो गया', फिल्म सत्या का भूपेंद्र का ये गाना लाजवाब है, लेकिन गाने का आधा हिस्सा इस समय मौसम पर फिट है। बादलों से कट-कट के आती धूप घर के अंदर से उमंग जगाती है तो बाहर निकलते ही कुछ बुदबुदाने पर मजबूर कर देती है। मान लीजिए साहब, तपिश झेलने का मौसम आपका स्वागत कर रहा है। प्रधानमंत्री वंदे भारत को हरी झंडी दिखाने में जुटे हुए हैं। इस बार मध्यप्रदेश, राजस्थान के बाद तेलंगाना की बारी थी। यूपी में बाबा आदित्यनाथ का 'मिट्टी में मिला दूंगा' जमकर वायरल है। माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और एक शूटर एनकाउंटर में मार दिए गए। बड़ी बात तो ये कि बेटा तभी मारा गया, जब बाप की पेशी थी। जनाजे में बेटे को ना तो बाप का कांधा मिला, ना मां की नम आंखों से विदाई। बाबा ने बता दिया कि अपराधियों का यही नामो-निशां होगा। इधर, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल बोल गए कि बीजेपी के कई बड़े नेताओं की बेटियों ने मुस्लिमों से शादी की है। वो करें तो लव, बाकी लोग करें तो जिहाद। भूपेश को इससे काफी कुछ हासिल होने की उम्मीद थी, पड़ताल की तो पता चला कि किसी बड़े नेता की बेटी ने ऐसा कुछ नहीं किया। चुनावी माहौल में किसी बात से माइलेज ना मिले तो बयान फिर किस काम का। मध्यप्रदेश में भी कई खबरें पकीं, कई आदेश इधर से उधर हुए, आप तो सीधे अंदरखाने चले आइए...





कलेक्टर साहब की बीवी को बुलाओ





नर्मदा नदी से लगे एक जिले के कर्मचारी-अधिकारी ऊपर वाले से अरदास लगा रहे हैं कि कलेक्टर साहब की बीवी लौटकर आ जाए। बताया जा रहा है कि मैडम को छोटे जिले में रहना पसंद नहीं है, इसलिए वे कलेक्टर साहब को छोड़कर दिल्ली चली गई हैं। उनका कहना है कि जब बड़े जिले में पोस्टिंग हो जाए तो बता देना वापस आ जाऊंगी। खैर, ये कलेक्टर साहब का व्यक्तिगत मामला है, हम इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते, लेकिन मैडम के दिल्ली जाने का असर अधिनस्थ अधिकारी-कर्मचारियों पर पड़ रहा है। साहब ने अपना सारा गुस्सा इन लोगों पर निकाल रखा है। अजीबो-गरीब फरमान जारी कर प्रताड़ित कर रहे हैं। साहब की प्रताड़ना से बचने के लिए अब सब लोग बोलने लगे हैं कि कोई साहब की बीवी को जल्दी बुलवा दे, तो हमारी जान बच जाए।





देख रहे हैं जामवाल जी





अब कहा जा सकता है वाकई बीजेपी बदल रही है। जिन पदाधिकारियों पर संगठन को गढ़ने और मजबूत करने की जिम्मेदारी है। उन लोगों को छपास का रोग लग गया है। संघ से प्रदेश संगठन में आए एक पदाधिकारी का नाम इनमें सबसे ऊपर आ रहा है। हद तो जब हो गई जब सावित्री फुले की पुण्यतिथि कार्यक्रम में फोटो फ्रेम में आने के लिए इन महाशय ने दौड़ लगा दी। संगठन के अहम पदाधिकारी की फोटो सेशन के लिए ये बेचैनी चर्चा का विषय बनी हुई है। कुछ ऐसा ही हाल मीडिया विभाग के एक बड़े पदाधिकारी का है। इन साहब ने अपनी बैठक का खुद ही प्रेस नोट जारी कर दिया। जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। मीडिया विभाग का काम संगठन के कामों को हाइलाइट करना है, लेकिन यहां हर कोई अपनी लाइन बड़ी करने में लगा हुआ है। संगठन के बड़े पदाधिकारी जब खुद ही छपास के रोग से पीड़ित हैं तो ऐसे में मीडिया विभाग पर कौन अंकुश लगा सकता है।





सरदार ने मार लिया मैदान





कांग्रेस से बीजेपी में आए सरदार जी ने आखिरकार मैदान मार ही लिया। इसमें सरदार जी की मेहनत से ज्यादा प्रवक्ताओं की अरुचि की अहम भूमिका है। दरअसल, अधिकांश प्रवक्ता और पदाधिकारी अपनी टिकट की जुगाड़ में लगे रहते हैं, ऐसे में उन्हें पार्टी के मुद्दों को उठाने और विपक्ष को काउंटर करने का समय नहीं मिलता। खाली मैदान देख सरदार जी अकेले बल्लेबाजी कर रहे हैं। विपक्ष की हर गतिविधि पर पैनी नजर रखकर तत्काल वार-पलटवार कर सरदार अपना परचम फहरा रहे हैं। इतना ही नहीं आप पार्टी से आई नेहा बग्गा भी दक्षता से पार्टी की बात रखने में बीजेपी के मूल पदाधिकारियों से आगे दिखाई देती हैं। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का ये हाल है कि कांग्रेस और आप से बीजेपी में आए लोगों के भरोसे बीजेपी का मीडिया चल रहा है।





रेत से तेल निकालने में भिड़े बीजेपी नेता





रेत कारोबार में घाटा क्या हुआ भाई जैसे 2 बीजेपी नेताओं के बीच दीवार खड़ी हो गई। दोनों एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए। बीजेपी कार्यालय के बाहर ही हिसाब-किताब को लेकर दोनों नेता लड़ लिए। मामला ग्वालियर संभाग के एक जिले का है, इसमें एक जिलाध्यक्ष हैं तो दूसरे युवा नेता हैं। जिलाध्यक्ष को नरेन्द्र सिंह तोमर का आदमी माना जाता है तो युवा नेता के चाचाजी जज हैं, उनकी महाराज के यहां भी पैठ हैा। खैर जो भी हो सरकार अपनी है तो धंधा करना तो बनता ही है फिर भले ही रेत से तेल क्यों नहीं निकालना पड़े, लेकिन बात जब तक बंद कमरे में थी ठीक था, लेकिन जिला बीजेपी कार्यालय के बाहर ही रेत की कमाई को लेकर होने वाली तू-तू मैं-मैं कैडर बेस पार्टी की रीति-नीति की धज्जियां उड़ा रही है, तो हमारा लिखना तो बनता ही है।





खाने से चूक जाएं बोलने से नहीं चूकेंगे





कांग्रेस नेता अरुण यादव के बारे में ये कहावत मशहूर है कि वे खाने से एक बार चूक जाएं, लेकिन बोलने से नहीं चूकेंगे। सालों पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके यादव एक बार फिर मेन स्ट्रीम लाइन में आना चाहते हैं। इसके लिए वो साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति अपनाए हुए हैं, लेकिन भारी-भरकम नेता कमलनाथ के आगे उनके दांव-पेंच नहीं चल पा रहे। इसलिए यादव अब कमलनाथ के साथ ही कदमताल करके अपनी लाइन बड़ी करना चाहते हैं। हाल ही में यादव समाज के एक कार्यक्रम में अरुण ने कमलनाथ की मौजूदगी में कहा कि समाज को उसकी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। यादव का इशारा कमलनाथ समझें या ना समझें, लेकिन वहां मौजूद नेता जरूर एक-दूसरे से बात करते नजर आए कि अरुण यादव की दिल की बात जुबां पर आ ही गई। बहरहाल, अब आने वाला समय बताएगा कि हिस्सेदारी में उनका नंबर कहां आता है।





नाम सुशासन, काम कुशासन





सरकार के लिए थिंक टैंक का काम करने वाले संस्थान में कुशासन चल रहा है। हालात ये है कि संघ की सिफारिश पर आए साहब अपना रुतबा दिखाने के फेर में मनमानी कर रहे हैं। सालों से चली आ रही व्यवस्था को बिना किसी ठोस कारण के बदलने का जुनून साहब पर सवार हैं। इसके चलते साहब ने एग्जीक्यूटिव बॉडी में संस्थान के सलाहकारों के पदों का डाइंग कैडर घोषित करने का निर्णय ले लिया। सीएम की अध्यक्षता वाली जनरल बॉडी से सहमति लिए बगैर प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञापन भी जारी कर दिए। साहब पिछले कुछ समय से जनरल बॉडी की मीटिंग भी टाल रहे हैं, जिससे मामला पुराना हो जाएगा तो इस फैसले पर मुहर लगवाना आसान होगा। मजेदार बात ये है कि इस खेल की भनक अब तक ना तो सीएम को लगी और ना ही उनके आंख-नाक कान को।





बीजेपी-कांग्रेस के चक्कर काट रहे रिटायर्ड अफसर





प्रदेश में अहम पदों पर रहकर नौकरी करने वाले आईएएस-आईपीएस अफसरों को अब राजनीति भा रही है। रिटायर होने के बाद अफसरों ने अपनी-अपनी विचारधारा के हिसाब से पार्टी कार्यालय के चक्कर लगाना शुरू कर दिए हैं। आप कभी बीजेपी-कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय जाएंगे तो नेताओं के बीच ये रिटायर्ड अफसर विचरण करते मिल जाएंगे। इसमें हाल ही में भोपाल कमिश्नर से रिटायर्ड हुए साहब भी शामिल हैं। कांग्रेस में तो रिटायर्ड अफसरों को तवज्जो अच्छे से मिल जाती है, लेकिन बीजेपी में रिटायर्ड अफसरों को चप्पलें घिसने के बाद उतना रिस्पॉन्स नहीं मिल पाता। कांग्रेस के 2018 के वचन पत्र में रिटायर्ड अफसरों की बड़ी भूमिका थी, लेकिन बीजेपी में किसी एक प्रकोष्ठ में जगह मिल जाए ये ही बड़ी बात होगी।





डॉ. साहब बढ़ा रहे मर्ज





नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह आए दिन कोई ना कोई विवादास्पद बयान देकर कमलनाथ को परेशानी में डाल रहे हैं। हाल ही में रानी कमलापति को लेकर दिए गए बयान को बीजेपी ने लपक लिया है। पूरी बीजेपी आदिवासियों का अपमान बताते हुए हमलावर हो गई है। इस मामले में कांग्रेस में चर्चा है कि अपने डॉ. साहब इलाज करने की बजाय मर्ज बढ़ा रहे हैं।





शोभा की एंट्री से कहीं खुशी कहीं गम





चुनाव नजदीक आते ही शोभा ओझा ने पूरी धमक के साथ पीसीसी में एंट्री मार दी है। शोभा के लिए कमरा सजाया जा रहा है। शोभा की एंट्री से पीसीसी मे कहीं खुशी कहीं गम वाली फीलिंग देखने में आ रही है। दरअसल, कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद शोभा ओझा प्रदेश की राजनीति से गायब हो गई थीं। उसके बाद उनके समर्थक प्रवक्ताओं को हाशिए पर डाल दिया गया था। अब जब उनकी वापसी हुई है तो उनके समर्थक भी वापसी की उम्मीद में चहक रहे हैं।



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