Indore.ये उन दिनों की बात है जब इंदौर जिला पंचायत (Jila Panchayat) चुनाव में पंद्रह सदस्य चुने जाते थे। बहुमत इकतरफा आ जाए तो अध्यक्ष चुनने में किसी को परेशानी नहीं होती थी लेकिन स्कोर 8-7 हो जाए तो फिर दगाबाजी, खरीद-फरोख्त, हिसाब-किताब, दलबदल जैसी तमाम शंकाएं जन्म ले लेती हैं।
ऐसा ही कुछ हुआ था 2004 के चुनाव में। तब पंद्रह में से भाजपा (BJP) ने आठ और कांग्रेस (Congress) ने सात सीटें जीती थीं। अध्यक्ष का पद एससी महिला के लिए आरक्षित हुआ था। रोचक बात यह है कि दोनों ही तरफ से सिर्फ एक-एक ही महिला इस वर्ग में जीत पाईं थीं। भाजपा से राधा वर्मा (भाजपा नेता जगमोहन वर्मा की पत्नी) और कांग्रेस से योगिता चौधरी। आंकड़े भाजपा के पक्ष में थे। राधा वर्मा का अध्यक्ष बनना तय लग रहा था इसके बावजूद शंका, हलचल और चर्चा तो थी कि कहानी बदलेगी... योगिता चौधरी भी जीत सकती हैं। भाजपा अतिरिक्त सावधान थी क्योंकि कुछ होता तो खोना उसी को था। डर इसलिए ज्यादा लग रहा था क्योंकि योगिता चौधरी के लिए तब कांग्रेस के तेजतर्रार नेता प्रेमचंद गुड्डू (Prem chand Guddu) समर्थन जुटाने में लगे थे। इससे हुआ यह कि भाजपाई खुद ही एक-दूसरे को शंका से देखने लगे। हालांकि भाजपा की तरफ से तब के विधायक प्रकाश सोनकर (Prakash Sonkar ) ने मोर्चा संभाल रखा था क्योंकि वर्मा उनके खास समर्थक थे।
वादे टूटे, दिल टूटे
गुड्डू की सक्रियता और तिकड़म से वाकिब भाजपा एक वोट की भी जोखिम लेना नहीं चाहती थी। जिन वोटों पर उसे शंका थी, उन पर निगरानी बढ़ाई गई। कस्में-वादों का दौर चला। पार्टी में इतना घोर अविश्वास पसर गया था कि एक-दो सदस्यों ने वरिष्ठ नेताओं से कह दिया था कि अगर हम पर शंका है तो हमसे वोट की अथॉरिटी ले लो और किसी से भी डलवा दो। हालांकि ऐसा नहीं किया गया लेकिन धड़कनें सभी की बढ़ी हुई थीं ।
पलट गई बाजी
वोटिंग के बाद जब परिणाम आए तो भाजपा भौंचक रह गई। नतीजा उलट गया था। कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी योगिता चौधरी को आठ और भाजपा की राधा वर्मा को सात वोट मिले। बहुमत होने के बाद भी भाजपा हार गई थी। इसके बाद वहां भयानक तनाव फैल गया। घर के भेदी की तलाश शुरू हो गई ।
उपाध्यक्ष भाजपा जीती तो आपस में मार-पिटाई हो गई
शंका-कुशंकाओं सी घिरी भाजपा ने उपाध्यक्ष का चुनाव 8-7 के घोषित स्कोर पर जीत लिया लेकिन इसमें खुशी के बजाए वहां मार-पिटाई की नौबत आ गई। दरअसल उपाध्यक्ष का चुनाव जीते प्रहलाद ठाकुर पर ही यह आरोप लगने लग गए थे कि अध्यक्ष उन्होंने कांग्रेस का जितवा दिया और खुद को उपाध्यक्ष का उम्मीदवार बनाया तो खुद का वोट खुद को दे दिया। उपाध्यक्ष का दावेदार आपको नहीं बनाते तो हो सकता है वो भी कांग्रेस का ही बनता क्योंकि तब आप उसे ही वोट देते। इस आरोप के बाद मारपीट की नौबत आ गई। ठाकुर सफाई देते रहे कि बरसों से पार्टी की सेवा कर रहा हूं, गद्दारी नहीं करूंगा लेकिन उनके उपाध्यक्ष जीत जाने के बाद उनके तर्कों पर किसी को भरोसा नहीं हुआ।
एक और सदस्य पर था शक
ठाकुर के अलावा दिनेश मल्हार पर भी पार्टी ने तब शक किया था । दरअसल जगमोहन वर्मा और मल्हार की कोई पुरानी अदावत थी। श्रीमती वर्मा के चुनाव हारने को पार्टी का एक तबका मल्हार द्वारा हिसाब चुकता करने की तरह प्रचारित किया गया। हालांकि मल्हार ने अदावत कुबूल की लेकिन अपना वोट इतनी पारदर्शिता से दिया था कि उन पर लगे आरोप खारिज हो गए। पूरे घटनाक्रम के बाद ठाकुर कांग्रेस में ही चले गए और अपने आप कांग्रेस का उपाध्यक्ष भी बन गया । हालांकि आज 18 साल भी यह राज नहीं खुल पाया कि पार्टी से दगाबाजी किसने की थी।