BHOPAL. कहते हैं किसी के भी दिल में उतरने का रास्ता पेट से होकर जाता है। मैदान सियासत का हो या खेल का। दोनों में डटे रहने की ताकत भी खाने से ही मिलती है। रणनीतियां तो उसके बाद रंग लाती हैं और ये मूल मंत्र अब बीजेपी समझ चुकी है। जो मतदाता के दिल में उतरने के लिए पेट से ही रास्ता बनाएगी। पहले मतदाता की भूख को जीतेगी उसके बाद अपनी वोटों की भूख मिटाएगी। प्लानिंग तो कुछ ऐसी ही है। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी से जूझ रही बीजेपी अब दाल, चावल, सब्जी-पूड़ी और एक मीठे के दम पर वोटर्स के साथ रिश्तों में मिठास घोलने की प्लानिंग में जुट गई है।
बीजेपी को भोज सियासत का सहारा
चुनावी सीजन में अब बीजेपी को भोज सियासत का सहारा लेना पड़ रहा है। वैसे तो नेताओं के बीच लंच या डिनर पॉलीटिक्स आम बात है, लेकिन इस बार बड़े पैमाने पर भोज सियासत की प्लानिंग है। जिसमें 100-200 लोग नहीं बल्कि प्रदेशभर के 13 लाख लोगों को भोज कराने की रणनीति तैयार की गई है। हर बूथ, तहसील, ब्लॉक और जिले के स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी की शिकार बीजेपी ने ये तरीका चुना है। जिसके तहत हर बूथ पर 20 नए लोगों को खाना खिलाना है। दिलचस्प बात ये है कि इस भोज का खर्च स्थानीय जनप्रतिनिधि और पार्टी के दूसरे नेताओं को उठाना है। हारी हुई सीटों पर टिकट के दावेदारों की जेब पर ये बोझ डाला गया है, लेकिन इनमें से कोई भी अपनी पसंद से या अपनी मर्जी से मैन्यू नहीं बदल सकता है।
मैन्यू में क्या है?
हर बूथ पर दाल, चावल, सब्जी, पूड़ी एक मीठा और आम का पना रखने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही ये सख्त निर्देश हैं कि कोई भी सामान प्लास्टिक का ना रखा जाए। पूरे प्रदेश में 64 हजार 100 बूथ हैं। हर बूथ पर 20 लोग कम से कम इस दावत का हिस्सा बनाए जाना जरूरी है। जिसके बाद प्रदेशभर की मिलाकर ये संख्या 12 लाख 82 हजार हो जाएगी।
भोज... बीजेपी के लिए मजबूरी से कम नहीं!
इस भोज को प्रीति भोज मत समझिए। भोज की इस थाली में सत्ता का नमक है, कूटनीति के मसाले हैं, राजनीति का आटा मढ़ा है और योजनाओं की मिठास घोलने की कोशिश की गई है। वैसे सियासी दावतों का दस्तूर बहुत पुराना है, लेकिन इस बार ये दावतें बीजेपी के लिए मजबूरी से कम नहीं हैं। निचले स्तर तक नाराज कार्यकर्ताओं की कमी पूरी करने के लिए सियासी थाली सजाई गई है। रही सही कसर पुराने जमाने के खेलों से पूरी होगी। आईपीएल और फुटबॉल लीग के जमाने में बीजेपी सितोलिया, खोखो, रस्सी खींच जैसे खेलों से मतदाता का दिल जीतने की कोशिश में जुटी है। सुनने में ये प्लानिंग मजेदार लगती है, लेकिन पर्दे के पीछे इसे पूरे अनुशासन के साथ करने की रूपरेखा तैयार की गई है।
बूथ मजबूत करने की प्लानिंग
हर बूथ पर सियासी बूथ के अलावा ग्रामीण स्तर पर देशी खेलों के आयोजन के निर्देश भी जारी किए गए हैं। कबड्डी, सितोलिया, रस्सी खींच, खोखो और रस्सी कूद जैसे खेलों के जरिए गांव-गांव के मतदाताओं को जोड़ा जाना है। अब सवाल हो सकता है कि आखिर खेल खिलाकर और खाना खिलाकर बीजेपी कैसे अपना बूथ मजबूत कर सकेगी। इसका जवाब बीजेपी की प्लानिंग में छुपा है। जिस जगह खेल या दावतों का आयोजन होगा वो सारी जगह बीजेपी के झंडों से पटी होगी। ताकि हर निवाले के साथ मतदाता को ये अहसास हो सके कि उसने बीजेपी का नमक खाया है और खेल खेलते समय जीत की ट्रॉफी हाथ आए तो ये याद रखे कि वोट के रूप में उसे किसे ट्रांसफर करना है। इसके साथ ही महापुरुषों से जुड़ी खास तारीखों को यादगार बनाने का भी पूरा प्लान है।
बीजेपी के कार्यकर्ता नाराज
ये प्लानिंग पार्टी ने ऐसे समय में की है जब कार्यकर्ता की नाराजगी बहुत ज्यादा है। जमीनी स्तर पर भी बीजेपी मतदाता के गुस्से का शिकार है। एंटीइनकंबेंसी से निपटने का फिलहाल कोई और रास्ता नहीं सूझा तो दावत और देशी खेलों में ऑप्शन तलाशे जा रहे हैं, लेकिन इस देशी टेक्नीक को फिलहाल पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। जो पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं, सत्ता संगठन में तालमेल का कारगर तरीका नहीं ढूंढ सकी है। वो कम से कम खर्च वाले इस तरीके से ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं से तो कनेक्ट कर ही सकती है। हालांकि कांग्रेस को बीजेपी की इस दावत और देसी खेलों की रणनीति में कोई दम नजर नहीं आता है। कांग्रेस के मुताबिक जिस प्रदेश में लोग रोजगार का और विकास का इंतजार कर रहे हैं, वहां ये दावत और खेल महज दिखावा भर है।
भोज को बड़ा इवेंट बनाने की तैयारी
इस दावत को कांग्रेस आम पैंतरा समझकर नजरअंदाज कर सकती है, लेकिन बीजेपी ने इसे सोशल मीडिया इंवेंट बनाने की भी तैयारी कर ली है। हर बूथ पर सख्त निर्देश हैं कि दावतों और खेलों के पर्याप्त और सही फोटो खींचे जाएं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी उसकी रिपोर्टिंग भरपूर होनी चाहिए। डिजिटली स्ट्रॉन्ग होती जा रही बीजेपी बूथ स्तर की दावतों और देशी खेलों को भी बड़ी सभाओं की तर्ज पर प्रमोट करने वाली है।
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कितना कारगर होगा बीजेपी का ये दांव?
गर्मागर्म पूड़ी, दाल-चावल और मीठे के स्वाद के साथ एंटीइनकंबेंसी का कड़वापन दूर करने की कोशिश है। सरकार के खिलाफ जो नाराजगी दिलों में घर कर चुकी है। उन मतदाताओं को देशी खेल खिला-खिलाकर डिटॉक्स किया जाएगा। ताकि रूठे मतदाता सारे गम भुलाकर बीजेपी से फिर जुड़ सकें। तो उम्मीद कीजिए कि आपके आसपास के किसी बूथ से भी दावतों की महक आना शुरू हो जाए या बीजेपी के नारों के साथ दम लगा के हईशा का जोश फूंका जाना शुरू हो सकता है। अपने ही नेताओं से भीतर ही भीतर हार रही बीजेपी का ये दांव कितना कारगर साबित होता है। इसका फैसला भी 6 माह के भीतर सबके सामने होगा।