मध्यप्रदेश में जीत के लिए अब पुराने नेताओं के सहारे बीजेपी, ये बुजुर्ग नेता बनेंगे कांग्रेस का तोड़?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में जीत के लिए अब पुराने नेताओं के सहारे बीजेपी, ये बुजुर्ग नेता बनेंगे कांग्रेस का तोड़?

BHOPAL. कहते हैं पेड़ कितना भी पुराना क्यों ना हो जाए छाया देना नहीं भूलता। अब जब चुनाव नजदीक है तो बीजेपी को अपने वैसे ही दरख्तों की याद आई है। जिसे वो भले ही कई सालों से सींचना भूल चुकी हो, लेकिन उनके साए में पार्टी अब भी पनप सकती है। जब जीत की उम्मीद बहुत ज्यादा धुंधली पड़ी हुई है तो बीजेपी हर हथकंडा अपनाने पर अमादा है। ताकि, भूले से भी धुंध तो छटे ही, कम से कम चुनाव तक उसके दोबारा गहरे होने के आसार भी ना रहें।



चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने उसूलों से किया समझौता



चुनावी जीत की खातिर अनुशासन के उसूलों से समझौता कर प्रीतम लोधी की वापसी करवाई गई है। क्योंकि प्रीतम लोधी बिना बागी हुए भी बीजेपी पर भारी पड़ रहे थे। बुंदेलखंड और चंबल में भारी नुकसान के मद्देनजर बीजेपी ने रणछोड़ बनना ही बेहतर समझा। वैसे भी बड़े रण को जीतना है तो छोटे रण में पीठ दिखाने में कोई बुराई भी तो नहीं है। खैर, प्रीतम लोधी का चैप्टर अब क्लोज हो चुका है। अब उन नेताओं को एक-एक कर साधना है जिनकी जड़ें गहरी हैं। पर पार्टी में जगह छोटी हो गई। उनके लिए फिर दिल बड़े किए जा रहे हैं। नड्डा की सीख की शुरुआत बीजेपी ने फोन कॉल से की है।



बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिया मंत्र



कुछ ही दिन पहले मध्यप्रदेश दौरे पर आए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ऐसा मंत्र देकर गए हैं जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। मौजूदा नेताओं को तो बिलकुल ही नहीं और वो नेता तो इस बारे में सोच भी नहीं सकते थे जिन्हें हाशिए पर पहुंचा दिया गया था। अब उन भूले-बिसरे नेताओं के फोन नंबर्स फिर खंगाले गए हैं। पार्टी की ओर से उन्हें फोन किया गया है। कई सालों तक जिन नेताओं को घास तक नहीं डाली गई अब उन्हें सम्मान देने की तैयारी है। ये सब शुरुआत हुई है जेपी नड्डा की एक सीख और एक कदम के बाद। हाल ही में नड्डा भोपाल आए थे। नए बीजेपी भवन के भूमिपूजन के लिए। इस कार्यक्रम के दौरान नड्डा ने ये भी कहा कि इस मौके पर हमें पुराने वरिष्ठ नेताओं को याद करना चाहिए। इसके बाद वो खुद पूरी कोर टीम के साथ मिलकर प्रभात झा के घर गए। प्रभात झा बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं और सांसद भी। झा के घर नड्डा आधा घंटा रुके। मैसेज लाउड एंड क्लीयर था कि अब पुराने नेताओं को दरकिनार करने का वक्त खत्म हो चुका है। उन्हें वापस मेनस्ट्रीम में लेकर आना है।



मध्यप्रदेश में बीजेपी की नींव मजबूत करने वाले नेता याद आए



बीजेपी के नए दफ्तर की नींव रखने का वक्त आया तो पार्टी को ऐसे नेताओं की याद भी आ गई जिन्होंने प्रदेश पार्टी की नींव मजबूत की है। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। ये बात अलग है कि ऐसे सभी चेहरे नए कार्यालय के भूमिपूजन कार्यक्रम में दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिए। लेकिन अब तक जिस भव्य इमारत में बैठकर बीजेपी ने रणनीतियां बनाई और प्रदेश में इतने साल राज किया। उस इमारत के निर्माण के पीछे उन भूले-बिसरे नेताओं की ही पहल थी। ये बात और है कि बीजेपी किसी इमोशनल एंगल के तहत पुराने नेताओं को याद नहीं कर रही है। ये याद भी सियासी है। पर जो भी हो एक याद के सहारे कुछ नेताओं के दिन फिर गुलाबी होने को हैं तो इसमें बुराई क्या है।



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बीजेपी के मजबूत स्तंभ रहे ये दिग्गज



प्रभात झा, सुमित्रा महाजन, रघुनंदन शर्मा, विक्रम वर्मा और कृष्ण मुरारी मोघे, ये वो नाम हैं जो कभी बीजेपी का मजबूत स्तंभ रहे हैं। अब बहुत समय बाद पार्टी ने खुद पहल करते हुए इन्हें याद किया है। ना सिर्फ याद किया बल्कि एक लंबी बैठक भी की। वो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ। जो चेहरे कार्यक्रम में नजर भी नहीं आए और कुछ मीडिया संस्थानों ने उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं होने की वजह पूछी तो पार्टी को बचाते हुए गैर मौजूदगी का दोष अपनी सेहत के सिर मढ़ दिया, लेकिन जब बैठक के लिए बुलावा आया तो पूर्व संगठन महामंत्री कृष्ण मुरारी मोघे, सांसद सुधीर गुप्ता, प्रभात झा जैसे कई नेता पहुंचे।



बीजेपी के लिए चुनावी साल बड़ा क्रूशियल



ये चुनावी साल बीजेपी के लिए बड़ा क्रूशियल है। एक तरफ 2018 की हार का जख्म है। दूसरी तरफ निचले स्तर तक जबरदस्त नाराजगी पसरी है। ना सिर्फ मतदाता बल्कि कार्यकर्ता भी पार्टी से खफा है। हर मोर्चे को साधने के लिए बीजेपी  सिर्फ ऊर्जावान युवाओं के सहारे नहीं रह सकती। पार्टी को तजुर्बे की और ऐसे नेताओं की जरूरत होगी जो प्रदेश की रग-रग से वाकिफ हों। इसी सोच के साथ अब पुरानी बहारों से बीजेपी के चमन को फिर चमकाने की कोशिश है। नड्डा की इस पहल के बाद माना जा सकता है कि अब पुराने चेहरे एक बार फिर मैदान में सक्रिय नजर आएंगे।



तजुर्बेकार नेताओं की कीमत समझ चुकी है बीजेपी



बीजेपी की नई बिल्डिंग हाईटेक होने वाली है। नए लोगों में उस तकनीक को इस्तेमाल करने की समझ हो सकती है, लेकिन नादान मतदाता के मन की बात भांपने की कोई एल्गोरिदम किसी टेकनॉलॉजी के पास नहीं है। उसे जानने का हुनर सिर्फ तजुर्बेकार नेताओं के पास है। उसी हुनर के बूते अब बीजेपी फिर सत्ता की दहलीज पर कदम रखने की कोशिश में है। सोशल मीडिया से मतदाता का नेटवर्क तो कनेक्ट हो जाएगा, लेकिन दिल और दिमाग से जुड़ने के लिए यही पुराने और जमीन से जुड़े नेता काम आएंगे। चुनाव से 7 महीने पहले ही सही, लेकिन बीजेपी उनकी कीमत समझ चुकी है।


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