मध्यप्रदेश में बीजेपी को मिली सिंधिया समर्थकों के खिलाफ शिकायतें ही शिकायतें, कैसे निकलेगा हल?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में बीजेपी को मिली सिंधिया समर्थकों के खिलाफ शिकायतें ही शिकायतें, कैसे निकलेगा हल?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं बीजेपी का टेंशन लगातार बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में हालत ये है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी यहां हार के डर से हर रोज नया प्रयोग करने को तैयार है। लेकिन मुश्किल ये नजर आती है कि पार्टी के अपने बड़े चेहरे ही पार्टी की नैया किनारे लगाने में फेल होते नजर आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं की मायूसी मिटाने के जितने भी जतन किए गए हैं वो सारे भी बेअसर ही नजर आते हैं। नए और पुराने कार्यकर्ता के बीच पार्टी का हाल उस पुल जैसा हो चुका है जो बीच भंवर में तेजी से झूल रहा है। कब कौन हाथ छोड़कर गिर जाएगा ये कहना मुश्किल हो रहा है। सीएम शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता भरपूर ताकत तो लगा रहे हैं। लेकिन हालात अब इनके बस से भी बाहर ही नजर आते हैं। 14 नेताओं की रिपोर्ट और कोर ग्रुप की घंटों चली क्लोज डोर मीटिंग के बाद बीजेपी को अपना बस एक ही तारणहार नजर आ रहा है।



बीजेपी ने किया महाकुंभ करने का फैसला



अपने कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए और उनमें नई जान फूंकने के लिए बीजेपी ने महाकुंभ करने का फैसला किया है। इस महाकुंभ का महा चेहरा होंगे पीएम नरेंद्र मोदी। जिनकी लोकप्रियता और साख पर पूरी पार्टी को पूरा यकीन है। अब मोदी का नाम जप-जपकर ही बीजेपी मध्यप्रदेश का चुनावी दरिया पार करना चाहती है। जिसकी नाव में हुए हर सुराख पर फिलहाल मोदी नाम का ही पैबंद लग रहा है। कोशिश बस इतनी है कि जैसे-तैसे बिना डूबे नाव पार लग जाए।



रीवा आएंगे पीएम मोदी



पीएम मोदी की आमद पहले से ही रीवा में फिक्स है। वो यहां बड़ा सम्मेलन संबोधित करने आ रहे हैं। इस सम्मेलन को महाकुंभ में तब्दील करने की तैयारी है। मोदी मंच से जो संबोधन देंगे वो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा फूंकने वाला होगा। वैसे इस महाकुंभ का मिशन सिर्फ कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना ही नहीं होगा। विंध्य का क्षेत्र भी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है। जिस क्षेत्र से 2018 में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल की। वही क्षेत्र अब बीजेपी को अनदेखा करता नजर आ रहा है। ये डर पार्टी को खाए जा रहा है। रीवा में पीएम मोदी की सभा विंध्य को वापस अपने खेमे में लाने का एक और प्रयास होगा।



14 नेताओं की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे



14 नेताओं की रिपोर्ट में हुए खुलासे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले हैं। जिस खाई को बीजेपी 3 साल से पाटने की कोशिश कर रही है वो खाई और भी चौड़ी होती जा रही है। बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने के बाद ये उम्मीद थी कि ये गढ़ और मजबूत होगा, लेकिन इसका उल्टा होता दिखाई दे रहा है। बंद कमरों में बैठकें कर नेताओं ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें सबसे ज्यादा बुरी स्थिति ग्वालियर-चंबल की ही नजर आती है। विंध्य में एंटीइन्कंबेंसी, ग्वालियर-चंबल में नई-पुरानी बीजेपी की खाई और कार्यकर्ताओं की नाराजगी। ये तो बड़ी शिकायतें हैं, इसके अलावा भी बैठक में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का पुलिंदा पहुंचा है।



सिंधिया समर्थकों से नाराजगी



बीजेपी का हाल ये है कि नाराजगी बस गिनते जाइए। मोटी-मोटी शिकायतें तो सबके सामने आ चुकी हैं। जिसमें सिंधिया समर्थकों से नाराजगी सबसे बड़ी और मुश्किल बाधा है। इसके अलावा कार्यकर्ताओं की नाराजगी और विंध्य में एंटीइन्कंबेंसी भी जग जाहिर है। इस नाराजगी के अलावा भी कुछ समस्याएं हैं जो सिरदर्द बनी हैं।



बीजेपी की मुश्किलें




  • अलग-अलग समाज और तबकों का पार्टी से नजर फेर लेना।


  • कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि दीनदयाल समिति से लेकर एल्डरमैन जैसे 5 लाख पद भरे जा सकते थे। नौकरशाही के दबाव में सरकार ने ऐसा नहीं किया। 

  • अनुभवी और युवा नेताओं के बीच सामंजस्य की कमी और संवादहीनता

  • कार्यकर्ता में 'हमारी सरकार' जैसे भाव का अभाव



  • मोदी की आमद को मेले में तब्दील करने की प्लानिंग



    14 नेताओं की रिपोर्ट का ये सार है। पूरी रिपोर्ट राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश को सौंपी जा चुकी है। जिसके आधार पर रणनीति तैयार हो रही है। जिसका असर आने वाले पीएम मोदी के दौर से लेकर चुनावों तक नजर आएगा। मोदी की आमद को मेले में तब्दील करने की पूरी प्लानिंग है। इसके अलावा 25 सितंबर को दीन दयाल जी की जयंती के साथ हर जिले में कार्यक्रम होंगे। ये जलसा भी किसी महाकुंभ की तरह होगा। जिसके जरिए जिले से लेकर गांव तक के जमीनी कार्यकर्ता की नाराजगी को दूर करने की पूरी कोशिश होगी। विंध्य का तोड़ पीएम मोदी बनेंगे और कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकेंगे बीजेपी के दीन दयाल। समाजों की नाराजगी दूर करने के लिए फिर आयोग बनाने की भी प्लानिंग है, लेकिन ग्वालियर-चंबल से निपटना अब भी पार्टी के लिए दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। खुद पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ये कह चुके हैं कि पार्टी की खातिर कार्यकर्ताओं को नीलकंठ बनना होगा। क्योंकि नए पुराने हर तरह के कार्यकर्ता का एडजस्टमेंट संभव नहीं है। क्या ये इशारा साफ है कि ग्वालियर-चंबल का तोड़ फिलहाल बीजेपी के पास नहीं है।



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    बीजेपी के सामने 3 बड़ी परेशानियां



    कुछ ही दिन पहले इस मसले पर पूर्व संगठन महामंत्री माखन सिंह भी कार्यकर्ताओं के साथ क्लोज डोर मींटिंग कर चुके हैं। इस बैठक में सिंधिया को हराने वाले सांसद केपी यादव भी शामिल हुए। लब्बोलुआब यही रहा कि सब मिलकर काम करें। इसके बाद भी कोर कमेटी की बैठक में यही शिकायत सबसे ज्यादा सुनाई दी। जिसे छोटी समस्या मान लेना बीजेपी के लिए बड़ी गलती बन सकता है। समाज के लिए आयोग, जनआशीर्वाद यात्रा और कार्यकर्ता महाकुंभ अब बीजेपी को यही अपना आधार मजबूत करने के तरीके नजर आ रहे हैं। बीजेपी ने 3 बड़ी परेशानियों के हल तो ढूंढ लिए हैं, लेकिन ये हल सिवाय रिपिटेशन के कुछ और नहीं हैं। समस्या पहले से कहीं ज्यादा गहरी हो चुकी हैं। जिनसे पार पाने के लिए बीजेपी वही पुराने और घिसेपिटे तरीकों पर ही डिपेंड कर रही है। हालांकि एक पहलू ये भी है कि ये बीजेपी के आजमाए हुए पैतरें हैं। शायद इसलिए इन्हीं पर फिर भरोसा किया जा रहा है। सवाल वही है कि क्या इस बार फिर ये पुराने पैंतरे भरोसा कायम रख सकेंगे।


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