ग्वालियर-चंबल बना राजा और महाराजा के बीच जंग का मैदान, बीजेपी बनी सैंडविच; कांग्रेस को फायदा

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Dev Shrimali
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ग्वालियर-चंबल बना राजा और महाराजा के बीच जंग का मैदान, बीजेपी बनी सैंडविच; कांग्रेस को फायदा

GWALIOR. मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव के लिए अभी 6 महीने का समय है, लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग चुनावी मौसम अपने पूरे शबाब पर है। यही कारण है कि सिंधिया के गढ़ में धुर विरोधी दिग्विजय सिंह सेंधमारी कर रहे हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया दिग्विजय के प्रभाव वाले इलाके में ही घुसकर तोड़फोड़ में जुटे हैं। दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर के चुनावी रण में ही सिंधिया को चैलेंज देते हुए डैमेज करने के लिए प्लान प्लान बताते हुए कहा कि ग्वालियर में ही घेरने के लिए कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रहे हैं।



ग्वालियर-चम्बल में सबसे ज्यादा घमासान



देश और प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर का चंबल संभाग केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ कहा जाता है और उनके धुर विरोधी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी इसी इलाके के किलेदार हैं। यही वजह है कि महाराजा और राजा के बीच यह जंग तब भी चलती थी जब दोनों ही कांग्रेस के क्षत्रप थे। दिग्विजय 10 साल तक मध्यप्रदेश के सीएम भले ही रहे हो, लेकिन उनके खुद के जिले गुना से लेकर अंचल के सभी जिलों में सत्ता हो या संगठन में नियुक्तियों से लेकर टिकट बांटने तक में सिंधिया के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता था। सार्वजनिक रूप से तो राजा को भी महाराज के दरबार मे कोर्निस बजानी पड़ती थी।



यही एकछत्र राज ही कांग्रेस को महंगा पड़ा



इसका खामियाजा कांग्रेस को 2020 में तब भुगतना पड़ा जब लोकसभा चुनाव हारने से व्यथित ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की सरकार गिराने का फैसला किया तो अंचल के ज्यादातर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर सिंधिया के साथ चले गए, क्योंकि अंचल में कांग्रेस के ज्यादातर टिकट सिंधिया समर्थकों को ही मिलते रहे थे। 28 में से बमुश्किल 8 एमएलए ही थे जो बीजेपी में नहीं गए, लेकिन यह भी सही है कि कमलनाथ की सरकार को बनाने में और फिर गिराने में भी ग्वालियर-चम्बल अंचल का खास योगदान रहा है। लेकिन जो हालात बन रहे हैं उनसे साफ है कि 2023 में भी सरकार बनाने में इसी अंचल की महती भूमिका रहनी है और यही वजह है कि कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ने इसी क्षेत्र में ताकत झोंकना शुरू कर दिया है।



सिंधिया और दिग्विजय ने संभाली कमान



एमपी की सियासत में यह पहला मौका होगा जब दिग्विजय और सिंधिया के बीच ग्वालियर-चम्बल संभाग की विरासत पर कब्जे को लेकर आमने-सामने का मुकाबला होगा। बीजेपी ने अपने पुराने स्थापित नेताओं को फिलहाल दरकिनार कर अंचल की सियासी कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप रखी है। वे बीते एक महीने में आधा वक्त संभाग में ही गुजार चुके हैं। सिंधिया राघौगढ़ से लेकर राजगढ़ तक दिग्विजय को घेरने की फुल प्रूफ रणनीति पर काम कर चुके हैं। राघौगढ़ नगर पालिका चुनावों में सिंधिया के खास और शिवराज सरकार में मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया का लोगों को धमकाते हुए वीडियो सामने आया तो पिछले सप्ताह खुद दिग्विजय सिंह महेन्द्र सिसोदिया चेतावनी देते दिखे।



सिंधिया का दिग्विजय को तगड़ा झटका



दिग्विजय सिंह जब रविवार को ग्वालियर में एक होटल में अपने खास लोगों के साथ सिंधिया को घेरने की रणनीति बना रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली तो उनकी पेशानी पर बल पड़ गए। दरअसल, राजगढ़ में दिग्विजय का सबसे निकटतम सुस्तानी परिवार से जुड़ी मोना सुस्तानी बीजेपी में शामिल गईं। यह खबर सुनकर सिंह परेशान हो गए। वे मीडिया के सामने भी अपनी चिंता का इजहार करने से नहीं रोक पाए। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए चौंकने की बात है। मोना अमरीका गई थी, लेकिन बीजेपी में जाएंगी इसका कोई संकेत भी नहीं दिया। वे क्यों गई? समझ नहीं आ रहा। हालांकि दिग्विजय भले ही सिंधिया को सीधे कोई बड़ा झटका ना दे सकें, लेकिन वे अंचल में उनकी जड़ें उखाड़ने के काम में बीते एक पखबाड़े से जुटे हैं।



सिंधिया भी कर रहे हैं जीतोड़ मेहनत



उधर बीते 6 महीने से बीजेपी का दामन थामने के बाद सिंधिया लगातार ग्वालियर अंचल में सक्रिय हैं। माना जा रहा है लोकसभा का चुनाव केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से लड़ेंगे? लेकिन उससे पहले विधानसभा चुनाव में अपने पट्ठों के सिर पर विजयश्री का सेहरा बांधने के लिए रात-दिन एक कर रहे हैं।



लेकिन फिर भी नहीं बढ़ रहा बीजेपी का ग्राफ



लेकिन सिंधिया की जीतोड़ मेहनत के परिणाम फिलहाल बीजेपी को मिलते नहीं दिख रहे। इसकी वजह है पार्टी की आपसी कलह। बीजेपी और सिंधिया समर्थकों के बीच सामंजस्य बढ़ने की जगह दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसका नजारा सड़कों तक दिख रहा है और चुनावी वर्ष में भी बीजेपी कार्यकर्ता उदास और निराश नजर आ रहे हैं। अभी अंचल में कांग्रेस ही बढ़त बनाए हुए है।


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