संजय गुप्ता, INDORE. विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे पर हमले करने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। महाकाल लोक मामले में जिस तरह कांग्रेस ने बीजेपी पर भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोला है। इसके जवाब में अब बीजेपी ने पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह पर हमला करने की तैयारी कर ली है। प्रदेशाध्यक्ष बीजेपी वीडी शर्मा ने इंदौर में बुधवार (31 मई) को मीडिया को बयान दिया है कि ट्रेजर आईलैंड मॉल की फाइल फिर से खुलेगी। इसमें कई पहलू देखे जाएंगे कि आखिर किस तरह से पूर्व सीएम को क्लीन चिट मिल गई थी। इस बयान ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है और प्रदेशाध्यक्ष का बयान बता रहा है कि बीजेपी, कांग्रेस के भ्रष्टाचार मुद्दे और 50 फीसदी कमीशन वाली सरकार के नारे को दबाने के लिए आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई अहम नेताओं के पुराने मुद्दों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
ईओडब्ल्यू दे चुकी खात्मा रिपोर्ट, सीबीआई की भी क्लीन चिट
ईओडब्ल्यू ने साल 2008 में महेश गर्ग की शिकायत पर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह सहित 12 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में मुकदमा किया था। लेकिन अगस्त 2019 में विधायकों और सांसदों के मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेश सिंह ने इंदौर के ट्रेजर आईलैंड मॉल मामले में ईओडब्ल्यू की ओर से पेश की गई खात्मा रिपोर्ट मंजूर कर ली है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व मुख्य सचिव एवी सिंह, पूर्व पर्यावरण मंत्री चौधरी राकेश सिंह, वीपी कुलश्रेष्ठ एवं पद्मा कालानी को धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त कर दिया। अदालत ने मामले के फरियादी महेश गर्ग की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ पेश किए गए आवेदन को भी खारिज कर दिया है। सीबीआई भी साल 2014 में इस मामले में जांच कर पूर्व सीएम सिंह, तत्कालीन मुख्य सचिव और पूर्व मंत्री तीनों को क्लीन चिट दे चुकी थी।
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यह है मामला
मामले के अनुसार इंदौर के एमजी रोड पलासिया स्थित बेशकीमती एक लाख वर्गफीट आवासीय भूमि का उपयोग बदलकर व्यावसायिक कर दिया गया था। मई 2003 में जमीन पर आमोद-प्रमोद, परिवारिक मनोरंजन केंद्र एवं मल्टीप्लेक्स शॉपिंग मॉल बनाने के लिए भूमि स्वामी कालानी ब्रदर्स की मेसर्स इंटरटेनमेंट और हाउसिंग बोर्ड के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे। एमओयू के अनुसार हाउसिंग बोर्ड के 51 प्रतिशत शेयर थे। इस योजना से हाउसिंग बोर्ड को 2 करोड़ 25 लाख रुपए मिलना थे। नवंबर 2003 में विधानसभा चुनाव के बाद भूमि स्वामी को लाभ पहुंचाने के लिए एमओयू निरस्त कर दिया गया। एमओयू निरस्त होने के बावजूद दिसंबर 2003 में तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत से राजपत्र में अधिसूचना जारी की गई थी। इसमें सीएम सिंह, तत्कालीन मुख्य सचिव, आवास व पर्यावरण मंत्री व अन्य पर आरोप लगे कि नियमों को दरकिनार कर मॉल को मंजूरी दी गई है।