मध्यप्रदेश में पीएम मोदी के दौरे के बाद भी विंध्य को लेकर बीजेपी में बढ़ी टेंशन, इस बात से सता रहा हार का डर!

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में पीएम मोदी के दौरे के बाद भी विंध्य को लेकर बीजेपी में बढ़ी टेंशन, इस बात से सता रहा हार का डर!

BHOPAL. मध्यप्रदेश में विंध्य को लेकर बीजेपी का हार का फोबिया कम नहीं हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी जैसे दमदार चेहरे ने यहां कई घंटे बिताए। इसके बाद भी ये फोबिया से हुआ फीवर बढ़ता ही जा रहा है। पार्टी का सबसे बड़ा डॉक्टर तो यहां डोज देकर जा चुका है। अब पार्टी ने बहुत से हकीमों को विंध्य में छोड़ दिया है। जिन्हें जिम्मेदारी दी है जनता नब्ज टटोलने की। कुछ ऐसे ही हकीम बुंदेलखंड में भी भेजे गए हैं क्योंकि बुखार तो वहां भी ज्यादा ही है। मर्ज समझकर अब ये हकीम बीजेपी के लिए जीत का मंत्र तैयार करेंगे और पार्टी के ही कुछ आला दर्जे के हकीम मिलकर उस फॉर्मूले पर जीत की दवा तैयार करेंगे। ये काम किसी सक्रिय नेता या एक्टिव फेस को नहीं सौंपा गया है। बल्कि ये हकीम वो लोग हैं जो भले ही सामने कम नजर आते हैं, लेकिन लेजर के कैमरे की तरह रगों में उतरकर मर्ज को भांपते हैं।



विंध्य को लेकर बढ़ रही बीजेपी की चिंता



विंध्य और बुंदेलखंड को लेकर बीजेपी की फिक्र बढ़ती जा रही है। हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी खुद विंध्य का दौरा करके गए हैं। उन्होंने अपने हाथों से विंध्य के लिए सौगातों का पिटारा खोला है। सोमवार को रीवा में पीएम नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर आयोजित पंचायती राज सम्मेलन में शामिल हुए। वे 31 मिनट बोले। पीएम ने यहां से 2300 करोड़ रुपए के रेल प्रोजेक्ट्स और 7853 करोड़ रुपए की 5 नल-जल योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया। रीवा में मोदी का ये तीसरा दौरा था। इससे पहले वे मई 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान और दूसरी बार नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव के प्रचार में आए थे। इससे पहले फरवरी में गृहमंत्री शाह सतना दौरा कर एक बड़ी रैली कर चुके हैं।



वाजिब है बीजेपी की बेचैनी



विंध्य की 30 सीटों में 24 पर डेरा डाले बैठी बीजेपी के बेचैन होने के वाजिब कारण भी हैं। जिस विंध्य ने बीजेपी को सिरआंखों पर बिठाया। सत्ता में आते ही उसे विंध्य से मुंह मोड़ने में देर नहीं लगाई। कुछ नए दोस्त क्या बने, बीजेपी ने सत्ता के स्वार्थ में विंध्य के प्यार को ही बिसरा दिया। अब विंध्य बदला लेने के मूड में दिखाई देता है। कमोबेश यही स्थिति बुंदेलखंड की भी है। इस क्षेत्र ने भी बीजेपी को निःस्वार्थ प्यार दिया। 28 सीटों के उपचुनाव के बाद तो मोहब्बत जताने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी, लेकिन बीजेपी ने पलटकर उतना ही प्यार नहीं दिया। जिसका खामियाजा अब 2023 में भुगतना पड़ सकता है।



बीजेपी को सता रहा डर



बस यही डर बीजेपी को बार-बार सता रहा है। कहने को मालवा सत्ता की चाबी है और यहां बीजेपी खुद को मजबूत मान सकती हैं, लेकिन इस बार जंग एक-एक सीट की है। सिर्फ मालवा में जीत से सरकार नहीं बन सकती। मालवा चुनावी गाड़ी है तो इसमें पहिए हैं विंध्य, बुंदेलखंड, चंबल और महाकौशल। जिसमें से 2 पहियों में एंटीइन्कंबेंसी के नाम की कील काफी अंदर तक गड़ी हुई है। अब उस कील को निकालना है और जीत की खातिर चुनावी हवा भी भरनी है। इस काम में बीजेपी के आला दर्जे के मैकेनिकों की फौज जुटी हुई है, लेकिन मुश्किल ये है कि एक पंक्चर फिक्स करते हैं तो दूसरी जगह पंक्चर हो जाता है। इधर कांग्रेस ने भी विंध्य और कांग्रेस के लिए खास रणनीति तैयार कर रखी है।



मतदाता और कार्यकर्ता की नाराजगी



खता सरकार की है और अब उसका पश्चाताप करने के लिए संगठन को कमर तोड़नी पड़ रही है। जबरदस्त सियासी उथल-पुथल के बाद 2020 में जब बीजेपी की सरकार बनी तब उम्मीद थी कि कैबिनेट के जरिए विंध्य को वफादारी का इनाम मिलेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा। विंध्य के सबसे पुराने और दिग्गज चेहरे राजेंद्र शुक्ला को ही अनदेखा कर दिया गया। नाराजगी तो बुंदेलखंड में भी कम नहीं है। यहां जातीय समीकरण भी हावी हैं और विधायकों से मतदाता और कार्यकर्ता दोनों की नाराजगी भी पार्टी पर भारी पड़ रही है। बीजेपी के लिए जो फैक्टर नेगेटिव साबित हो रहे हैं। कांग्रेस को उन्हीं फैक्टर्स से फायदे की उम्मीद है।



बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी



बीजेपी ने भी यहां पूरी ताकत झोंक ही दी है। साम, दाम, दंड, भेद से आगे मुफ्त की रेवड़ियों से भी फायदा उठाने की पूरी कोशिश है। यूपी से सटे विंध्य और बुंदेलखंड दोनों के इलाकों में लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना योजना का लाभ मिल सकता है। बशर्ते कमलनाथ की हर महिला को प्रतिमाह 1500 रुपए देने की योजना उस पर भारी ना पड़े। यानी समीकरणों का सही-सही आकलन करना अभी दोनों दलों के लिए आसान नहीं है, लेकिन बीजेपी ने प्रीतम लोधी के नाम पर उपजी नाराजगी को जैसे-तैसे खत्म किया है। उमा फैक्टर को माइल्ड करने के भी पूरे प्रयास हो चुके हैं। सिचुएशन काफी हद तक अंडर कंट्रोल नजर आती है, लेकिन इत्मीनान दिखाई नहीं देता। क्या बीजेपी को भी लगता है कि सिर्फ योजनाओं और घोषणाओं के बूते इस बार जीत नहीं मिल सकेगी।



मैदान में उतरे बीजेपी के दिग्गज



सारे फैक्टर्स में सबसे ज्यादा डराने वाले फैक्टर तो सत्ता विरोधी लहर और कार्यकर्ताओं की बेरुखी ही है। जिसे खत्म करने के लिए बीजेपी के दिग्गजों ने मैदान में ही दिन बिताने शुरू कर दिए हैं। विंध्य की 24 सीटों के अलावा बुंदेलखंड की 26 में से 17 सीटें, उपचुनाव के बाद से बीजेपी के हाथ में हैं। दोनों जगह की मिलाकर कुल 56 सीटें होती हैं, जिनमें से ज्यादा से ज्यादा बीजेपी को हासिल करनी है। पीएम, केंद्रीय गृह मंत्री के अलावा अध्यक्ष वीडी शर्मा, राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल विंध्य का दौरा कर चुके हैं। प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव भी लगातार सक्रिय हैं। कुछ ऐसा ही हाल बुंदेलखंड का है। यहां खुद अजय जामवाल और मुरलीधर राव संगठन मजबूत करने में जुटे हुए हैं। तेजी से मैदानी फीडबैक लिए जा रहे हैं और रणनीति बदली और बनाई जा रही है। खासतौर से सागर संभाग के पांचों जिलों पर खुद हाईकमान नजर रख रहे हैं। जिनके निर्देश पर जामवाल यहां जमे हुए हैं। बीजेपी की कोशिश है कि किसी भी तरह हो नेगेटिव फीडबैक बदलना चाहिए। चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं। ये कोशिशें तेज होती जा रही हैं।



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कार्यकर्ताओं के सीने की आग किसे जलाएगी?



दुष्यंत कुमार की चंद पंक्तियां हैं सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। पंक्तियां यही हैं बस बीजेपी के लिए संदर्भ कुछ यूं बदल रहा है कि फीडबैक की सूरत नहीं बदली तो पार्टी में हंगामा होना तय है और रही बात मेरे सीने में ना सही  तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए कि तो नाराजगी की आग अधिकांश कार्यकर्ताओं के सीने में सुलग ही रही है। ये आग नहीं बुझी तो हार की आग में बीजेपी जलेगी और अगर बीजेपी दिग्गज उस आग पर काबू पा गए तो ये आग एक बार फिर कांग्रेस को ही जलाएगी।


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