मध्यप्रदेश में 2023 का चुनाव जीतने के लिए उमा भारती बनीं बीजेपी की मजबूरी, क्या इस वजह से लिया बड़ा फैसला ?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में 2023 का चुनाव जीतने के लिए उमा भारती बनीं बीजेपी की मजबूरी, क्या इस वजह से लिया बड़ा फैसला ?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में बीजेपी को हार का इस कदर डर सता रहा है कि पार्टी पूरी तरह से कंप्रोमाइज मोड पर काम करती नजर आ रही है। कोशिश बस एक है कि कहीं कोई ऐसी चूक नहीं रहनी चाहिए जो हार का सबब बन जाए। इस कोशिश में अब शिवराज सिंह चौहान समेत पार्टी ऐसे नेताओं की भी साध रही है जो कभी फूटी आंख नहीं सुहाते थे। अब जीत की खातिर उन्हें ही आंख का तारा बना लेने पर मजबूर हो रहे हैं। बीजेपी की कार्य समिति की बैठक में भी कुछ ऐसे ही संकेत नजर आए।



बीजेपी की प्रदेश कार्य समिति की बैठक कई मायनों में अहम



बीजेपी की प्रदेश कार्य समिति की बैठक कई मायनों में अहम रही। जिसे जो ताकीद करना था किया गया। जीत के लिए जो अचूक मंत्र दिए जाने थे दिए गए। हुआ वही जिसका पहले से अनुमान था। पर कुछ ऐसे नजारे भी दिखे जो इतने बरसों के बीजेपी राज में कभी नजर नहीं आए। ना सिर्फ बीजेपी बल्कि शिवराज सिंह चौहान भी ये समझ चुके हैं कि सिर्फ उनके या सरकारी योजनाओं के बूते सत्ता में वापसी करना बहुत आसान नहीं है। शोले का मशहूर गीत तो याद ही होगा आपको, होली के दिन दिल मिल जाते हैं। ये रंगों की होली न सही पर चुनावी रंगों की होली जरूर है। जहां हर रंग के वोट को अपना बनाने के लिए दुश्मन को भी गले लगाया जा रहा है। जरूरी इसलिए भी है कि 200 पार का लक्ष्य हासिल करना है तो दुश्मन की मदद लेनी ही होगी।



कभी गरजे तो कभी बैकफुट पर नजर आए सीएम शिवराज



बीजेपी की कार्य समिति की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कभी गरजे तो कभी बैकफुट पर भी नजर आए। गरज दिखी कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय नेताओं पर जिन्हें बार-बार ये ताकीद कर दिया गया कि उनके पास हर नेता की रिपोर्ट है। एक बार नहीं बार-बार उन्होंने इस रिपोर्ट का जिक्र किया। हर नेता को ये याद दिलाया कि उनके सामने हर चेहरा बेपर्दा है। वो जानते हैं कि पिछले चुनाव में किसके सबोटाज के चलते पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था। सभी नेताओं को पूरी निष्ठा के साथ चुनावी मैदान में उतरने के निर्देश दिए। इस बैठक में कुछ ऐसे नेताओं को भी शामिल करना मजबूरी बन गया जो पहले कभी कार्य समिति की बैठक में नजर नहीं आए, जिनके तीखे तेवरों के चलते सीएम बैकफुट पर हैं और पार्टी का रवैया नर्म रहा।



अबकी बार 200 पार



बैठक में बीजेपी ने नारा दिया है अबकी बार 200 पार। इस लक्ष्य को पूरा करने सभी मंत्रियों विधायकों और सांसदों को टारगेट दिए गए हैं। कार्य समिति की बैठक में प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने कहा कि 200 दिन में 200 सीट जीतने का लक्ष्य पूरा करना होगा।



कार्य समिति के बड़े फैसले




  • संगठन ने 200 दिन की कार्य योजना बनाई है। 


  • मंत्री और विधायक समेत सभी नेताओं का जाना अनिवार्य होगा। 

  • पदाधिकारी को दिए गए काम की ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज होगी। 

  • लक्ष्य को पूरा करने पर ही मंत्री, विधायक और नेताओं का भविष्य तय होगा।

  • पार्टी ने अगले 3 माह के कार्यक्रम की प्लानिंग बनाई है। 

  • 26 और 27 जनवरी को जिला बैठकें

  • 28 को मंडल कार्य समिति और शक्ति केन्द्र की बैठक और 29 जनवरी को बूथ बैठक आयोजित होगी।

  • 5 फरवरी को संत रविदास के पंचायत स्तर पर कार्यक्रम होंगे। 

  • 8 फरवरी को सागर में बड़ा कार्यक्रम आयोजित होगा।



  • इन बैठकों के अलावा दीनदयाल जयंती, अंबेडकर जयंती और मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर भी पार्टी प्रदेशभर में कार्यक्रम आयोजित करने वाली है।



    मजबूरी का नाम उमा भारती



    ये प्लानिंग हर तबके को जोड़ने की है। इसके साथ ही प्लानिंग उन तबकों को बचाने की भी है जो पार्टी से दूर जा रहे हैं या दूर किए जा सकते हैं। ऐसे तबकों को जोड़े रखने के लिए पार्टी को अब उन नेताओं की याद आ रही है जिन्हें हाशिए पर पटक दिया गया था। ऐसी ही एक मजबूरी का नाम उमा भारती है। जो कार्य समिति की बैठक में नजर आईं। ये बात अलग है कि वो 9 घंटे लंबी चली बैठक में नहीं रुकीं और कान पकड़ते हुए निकल गईं। पर उमा की मौजूदगी ये साफ करती है कि दुश्मनों से गिले-शिकवे मिटाकर उनसे चुनावी दोस्ती की जा रही है ताकि खास तबकों के वोट बच सकें। उमा भारती के अलावा कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी इसी फेहरिस्त में शामिल किया जा सकता है।



    शराबबंदी पर उमा भारती एक्टिव



    शराबबंदी को लेकर उमा भारती काफी समय से मध्यप्रदेश में एक्टिव हैं। उनकी कोशिश लगातार ये जाहिर करती रही कि वो प्रदेश की सत्ता में मुख्य धारा में वापसी के लिए बेताब हैं। हालांकि ये दांव उमा भारती के लिए कुछ खास कारगर साबित नहीं हुआ। बेहद चतुराई से शराबबंदी के मुद्दे को बीजेपी सरकार ने अपना बना लिया और उमा फिर हाशिए पर पहुंच गईं। ऐसे समय में उमा के लिए नई लाइफलाइन बनकर आए प्रीतम लोधी जिनके निष्कासन के बाद लोधी समाज में बीजेपी के प्रति नाराजगी दिखाई दी। इस नाराजगी को कैश कराने में उमा का वायरल वीडियो काम कर गया जिसमें वो लोधी समाज के एक फंक्शन में कहती सुनी गईं कि वो उन्हें फोर्स नहीं करेंगी कि लोधी वोटर्स सिर्फ बीजेपी को ही वोट दें।



    उमा के बयान से उड़ी बीजेपी की नींद



    उमा भारती का ये वीडियो बीजेपी की नींद उड़ाने के लिए काफी था। लोधी वोटर्स बुंदेलखंड की कई सीटों पर सीधा दखल रखते हैं। यही वजह है कि उस बेल्ट में लोधी प्रत्याशियों को ज्यादा टिकट भी मिलते हैं। उमा भारती उसी लोधी समाज का बड़ा चेहरा और बड़ी नेता हैं जिनके कहने से वोटर भटक सकता है। शायद यही डर अब बीजेपी को उमा भारती को तवज्जो देने पर मजबूर कर रहा है।



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    कैलाश विजयवर्गीय के लिए भी पार्टी के तेवर नर्म पड़े



    सिर्फ उमा भारती ही नहीं कुछ दिन पहले कैलाश विजयवर्गीय के लिए भी पार्टी के तेवर नर्म पड़ते देखे गए। बरसों की नाराजगी भुलाकर पीएम मोदी उनके पारिवारिक समारोह में शरीक हुए और काफी देर रुके भी। चुनावी जानकार इसे भी मालवा में बनते बिगड़ते समीकरणों को साधने की नजर से देखते हैं। मालवा में विजयवर्गीय कितने दमदार हैं ये किसी से छुपा नहीं है। जीत के लिए बीजेपी को उनकी जरूरत पड़ना तय ही है।



    चुनाव में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती बीजेपी



    पिछले चुनाव में मालवा से भी बीजेपी को पहले के मुकाबले निराशा मिली थी और बुंदेलखंड से भी। अब दूध की जली पार्टी छाछ भी फूंक-फूंककर पीना चाहती है। कोशिश ये है कि हर फैक्टर को साधकर जीत को वश में कर लिया जाए।



    आसानी से मानने वाली नहीं उमा भारती



    कार्य समिति में उमा भारती की मौजूदगी हैरान करने वाली थी। उमा भारती आईं जरूर पार्टी की मर्जी से थीं लेकिन वापसी उनकी अपनी मर्जी से हुई। ये फायर ब्रांड नेता पहले ही सत्र के बाद बैठक छोड़कर निकल गईं। उमा का ये तरीका क्या इशारा करता है। प्रदेश में बीजेपी की नींव मजबूत करने वाली उमा भारती भी सियासत की कच्ची खिलाड़ी नहीं हैं। वो जानती हैं कि उनकी पूछ-परख किस वजह से शुरू हो रही है, लेकिन बैठक को बीच में ही छोड़कर अपने तौर-तरीकों से क्या उमा ये जताने की कोशिश कर रही हैं कि वो आसानी से मानने वाली नहीं है। अगर ऐसा है तो अपनों को साधने के लिए अभी शिवराज सिंह चौहान को शायद और पापड़ बेलने होंगे।


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