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हरीश दिवेकर, BHOPAL. वंशवाद पर कांग्रेस को घेरने वाली बीजेपी अब अपने ही बनाए नियमों में उलझती नजर आ रही है। जिन नेताओं को अपने बच्चों का सियासी भविष्य तराशना है, वो दबी-छुपी जुबान में इस नियम की मुखालफत करते रहे। अब बीजेपी की सबसे ताकतवर कमेटी के सदस्य ने ही इस नियम के विरोध में बड़ा बयान दे डाला है।
बड़े नेताओं को अपने बच्चों के लिए टिकट की उम्मीद
एमपी विधानसभा चुनाव 2023 में टिकट की दावेदारी के लिए बीजेपी में नई पौध तैयार हो चुकी है। लेकिन बीजेपी का नियम ही उनके भविष्य के आड़े आ रहा है। ये नियम है, नेता पुत्र या पुत्री को टिकट न देने का। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूरी दमदारी से इस नियम की हिमायत कर चुके हैं। पीएम नरेंद्र मोदी तो यूपी चुनाव में जीत के लिए इस नियम के सख्ती से पालन को क्रेडिट भी दे चुके हैं। लेकिन एमपी में तस्वीर कुछ अलग हो सकती है। यहां ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है, जिन्हें अपने बच्चों के लिए टिकट की उम्मीद है। इस उम्मीद को और मजबूती दे दी है कोर कमेटी के एक सदस्य ने। सिर्फ नेताओं के बच्चों को ही नहीं 75 साल पार वालों को टिकट देने पर भी इस सदस्य ने सहमति जताई। एक अहम कमेटी के सदस्य का ये बयान बीजेपी की अंदरूनी सियासत में क्या रंग दिखाएगा, ये आने वाला समय ही बताएगा।
सीएम शिवराज सिंह चौहान की जगह बीजेपी कोर कमेटी का हिस्सा बने सत्यनारायण जटिया के एक बयान से पूरी पार्टी में सियासी बवंडर आ गया है। जटिया के एक बयान ने उन नेताओं की सोई उम्मीदों को जगा दिया है, जो ये आस ही छोड़ चुके थे कि उनके बच्चों को बीजेपी से टिकट मिल सकेगा। या टिकट मिला भी तो हो सकता है उन्हें अपना दावा छोड़ना पड़े। लेकिन अब जटिया के बयान के बाद ऐसे नेता भी राहत की सांस ले सकते हैं। हाल ही में कोर कमेटी की बैठक में शामिल होने आए जटिया ने साफ कहा कि नेता पुत्र होना कोई गुनाह नहीं है।
नियमों से समझौता कर सकती है बीजेपी
जटिया के इतना कहते ही सियासी अटकलें का बढ़ना लाजमी ही था। जटिया जिस कमेटी में है टिकट पर फैसला करने की अहम जिम्मेदारी उसी कमेटी के सदस्यों की है। इस लिहाज से जटिया के इस बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता है, फिर मायने तलाशने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है। इशारा क्या साफ माना जा सकता है कि एमपी के चुनाव में टिकट देने से पहले पार्टी अपने ही नियमों से समझौता कर सकती है। इन नियमों को पार्टी ने नगरीय निकाय चुनाव में भी बतौर सख्त क्राइटेरिया पेश किया था और ये ताकीद भी किया था कि निकाय चुनाव में सफलता के बाद नियम सख्ती से विधानसभा चुनाव में भी जारी रहेंगे।
नियमों के मुताबिक-
- बुजुर्ग विधायकों को टिकिट नहीं दिया जाएगा।
टिकट के ख्वाहिशमंद नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी
लेकिन अब जटिया का बयान कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहा है। अगर निकाय चुनाव में इन नियमों को परखने का मॉडल था तो कहना गलत नहीं होगा कि ये मॉडल फेल हो चुका है। क्योंकि इस बार बीजेपी को नगरीय निकाय चुनाव में बेहद बुरे नतीजे मिले हैं। क्या बीजेपी को डर है कि इस नियम को सख्ती से लागू किया तो एमपी में नेता बंट सकते हैं। अपने बच्चों की खातिर कैलाश विजयवर्गीय सरीखे नेता ने सत्ता छोड़ संगठन को चुना। गौरीशंकर शेजवार जैसे सीनियर नेता भी बेटे को टिकट दिलाने के बाद सक्रिय राजनीति से गायब हो गए। गिनती इतने पर ही खत्म नहीं होती। मध्यप्रदेश में बेटा या बेटियों के लिए टिकट के ख्वाहिशमंद नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है। क्या जटिया के इस बयान के बाद पार्टी वाकई योग्य नेतापुत्रों को बिना किसी शर्त टिकट देगी। क्या ये मान लिया जाए कि जटिया का ये बयान पार्टी लाइन बदलने का इशारा है।
जटिया के बयान के पीछे वजह जो भी हो, इससे मध्यप्रदेश के कई नेताओं को राहत जरूर मिली होगी। सीएम शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेता अपने बच्चों को सियासत में उतारने के लिए तैयार हैं। कुछ के बेटे या बेटी तो सियासत की नदी में छलांग लगा भी चुके हैं। अब पार्टी में उनका मुस्तकबिल रोशन न हुआ तो जाहिर है नया सियासी दरिया तलाशा जाएगा। अगर नेता पुत्र मैदान में उतरने की जिद पर उतर ही गए तो संभव है कि अपनी ही विरासत वाली सीटों को किसी दूसरे चुनाव चिन्ह के साथ जीतते या हारते नजर आएं। वैसे नेताओं के बच्चे दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़ते हैं तो इसका बीजेपी को ही ज्यादा नुकसान होने का अंदेशा है।
कार्तिकेय सिंह चौहान का भविष्य
जो नेता अपने बच्चों का सियासी भविष्य तराशने में जुटे हैं। उनमें पहला नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही लिया जा सकता है। सिंधिया राजघराने का ताल्लुक राजनीति से बेहत पुराना है। सिंधिया कांग्रेस में ही रहते तो दम से कह सकते थे कि उनकी विरासत उनके युवराज महाआर्यमन सिंधिया संभालेंगे। अब बीजेपी में रह कर ये दम बेदम-सा नजर आने लगा है। दूसरा नाम आता है सीएम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान का। इनसे जब भी सियासत में आने का सवाल हुआ तो जवाब यही मिला कि पार्टी जो जिम्मेदारी देगी, वो निभाने को पूरी तरह तैयार हैं। यानी टिकिट मिले या न मिले पार्टी वफादार हमेशा रहेंगे। हालांकि वो पिता के लिए चुनाव प्रचार करते नजर आते हैं। पिता की विधानसभा सीट का काम भी संभाल रहे हैं। पर खुलकर ये नहीं कह पाते कि चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
तीसरा नाम केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का है। कैबिनेट की बैठकों में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उठने बैठने वाले तोमर भी ये दावा नहीं कर सकते कि अपने बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह को पक्की तौर पर टिकट दिलवा सकेंगे। पिता तो दिल्ली के कामों में व्यस्त रहते हैं। उनकी गैरहाजिरी में बेटा ही क्षेत्र की जनता के हाल चाल जानते हैं। इसके बावजूद टिकिट नहीं मिला तो क्या तोमर परिवार को तकलीफ नहीं होगी।
पिता की विरासत कौन संभालेगा
शिवराज कैबिनेट के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव तो सियासत के मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। बेटे के लिए गोपाल भार्गव ने फील्डिंग भी जम कर की है। लेकिन अब जब खुद पिच पर उपेक्षा का शिकार हैं तो बेटे को विरासत का बल्ला कैसे सौंप पाएंगे ये बड़ा सवाल है। कांग्रेस से बीजेपी में आए गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी राम सिलावट का हाल भी कुछ यही है। राजपूत के बेटे आकाश सुरखी में उनके चुनाव प्रचार में नजर आए थे। सिलावट के बेटे नीतीश भी पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। रास्ते का रोड़ा है तो सिर्फ वो फॉर्मूला जो नेता पुत्रों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह की तरह दिखाई दे रहा है। इस लिस्ट में नाम अभी खत्म नहीं हुए हैं। प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा, नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, दीपक जोशी के बेटे जयवर्धन जोशी, अर्चना चिटनीस के बेटे समर्थ चिटनीस, नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान, पूर्व विधायक ताराचंद्र बावरिया के बेटे सौरव बावरिया भी इसी लिस्ट में शामिल हैं।
ये बात हुई उन नेता पुत्र इन वेटिंग की। कुछ नेता पुत्र या रिश्तेदार ऐसे हैं जो खुशनसीब थे क्योंकि बीजेपी इस फॉर्मूले पर बात करती उससे पहले ही उनकी लॉन्चिंग हो चुकी थी। लॉन्चिंग तो क्या कुछ तो अब अच्छे खासे तजुर्बेकार नेता हो चुके हैं और मौका पड़ने पर कांग्रेस के वंशवाद की आलोचना करने से भी नहीं चूकते। इस लिस्ट में कितने नाम हैं बस गिनते जाइए। कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश, कैलाश सारंग के बेटे विश्वास, कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी, सुंदर लाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के बेटे अशोक रोहाणा, विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा, तुकोजीराव पवार की पत्नी गायत्री राजे पवार। सत्यनारायण जटिया के बयान के बाद वाकई इन नेता पुत्रों को टिकट मिलने की गुंजाइश है या फिर दिल टूटने की आशंका बरकरार है।
मध्यप्रदेश चुनाव में दिखेगा वंशवाद
वंशवाद को हवा न देकर बीजेपी ने यूपी चुनाव में जीत हासिल की। गुजरात में भी यही फॉर्मूला लागू कर टिकट दिए गए तो क्या इनका असर मध्यप्रदेश पर नहीं पड़ेगा। हालांकि सही तो ये भी है कि नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी का कोई फॉर्मूला काम नहीं आया। अब बीजेपी क्या करेगी। कोई भी फैसला लेना बीजेपी के लिए दोधारी तलवार पर चलने की तरह ही है। अगर नेतापुत्रों को टिकट नहीं देती है तो नई पीढ़ी की बगावत झेलनी पड़ सकती है और जटिया के कहे मुताबिक जीत के दावेदार नेतापुत्रों को चुन लेती है तो बैठे बिठाए कांग्रेस को नया मुद्दा खुद ही सौंप देगी। अब देखना ये है कि बीजेपी आखिर फैसला क्या करती है।