देव श्रीमाली,GWALIOR. ग्वालियर चम्बल इलाके में बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच मची कलह के चलते जहां राजनीतिक नियुक्तियां तो लटकी पड़ी हैं। वहीं प्रशासनिक पदस्थापनाएं भी नहीं हो पा रही है। हालात ये है कि यहां के अनेक संस्थान संचालक मंडल और नगर निगम वरिष्ठ पार्षदों की नियुक्ति की बाट जोह रहे है। कार्यकर्ता भी प्रतीक्षा कर अब थक चुके हैं, लेकिन कलह के गहरे गड्ढे से नाम ऊपर ही नही आ पा रहे। इसी कलह का असर प्रशासनिक पदस्थापनाओं पर भी पड़ रहा है। अंचल में तीन डीआईजी और एक कमिश्नर की कुर्सी खाली पड़ी है।
सिंधिया की पसंदीदा कलेक्टर - एसपी ग्वालियर पोस्टेड
जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में आए हैं, ग्वालियर की पूरी तरह प्रशासनिक बनावट भी उनके आधार पर हो रही है । यहां बीजेपी के बड़े नेता कहे जाने वाले लोग और उनके समर्थक हाशिए पर हैं। ग्वालियर के सभी महत्वपूर्ण पदों पर सिंधिया के पसंद के अफसर पदस्थ है। पहले उनकी पसंद के नगर निगम आयुक्त किशोर कान्याल की पदस्थापना हुई फिर आईजी पद पर डी श्रीनिवास राव की। इसके बाद बीजेपी से संतुलन बिठाकर चलने वाले कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह और एसपी अमित सांघी की भी ग्वालियर से विदाई कर दी गई। हालत ये है कि सिंह को हटाकर कही कलेक्टर न बनाकर भोपाल पदस्थ किया गया और एसपी आमित सांघी को संभागीय मुख्यालय के जिले से हटाकर छतरपुर जैसे छोटे जिले की पदस्थापना दी गई। सबसे खास बात यह कि ग्वालियर में साफ संदेश जाए कि यहां सिर्फ उनकी पसंद का ही ख्याल रखा जा रहा है, इसका ध्यान पदस्थापना में रखा गया। यहां कलेक्टर बनाए गए अक्षय सिंह और एसपी बनाए गए राजेश सिंह चंदेल दोनों इससे पहले शिवपुरी में पदस्थ थे और वहां सिंधिया के नजदीकी माने जाते थे।
राजनीतिक पद पड़े हैं खाली
बीजेपी बनाम सिंधिया की कलह में यहां होने वाली राजनीतिक नियुक्तियां भी अटकी पड़ीं है। जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार वापस आई तो स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने भी पुनर्वास की उम्मीद थी। लेकिन धीरे-धीरे पूरा समय निकल गया और अब बमुश्किल छह सात महीने शेष रह गए हैं, लेकिन यहां एक भी बीजेपी नेता की नियुक्ति नही हो सकी । यहां जीडीए यानी ग्वालियर विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष,उपाध्यक्ष और पांच संचालकों, ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण में अध्यक्ष,उपाध्यक्ष और पांच से साथ संचालक बनना थे । इनके अलावा नगर निगम में 12 वरिष्ठ पार्षद का मनोनयन होना है। साथ ही जिला और ब्लॉक स्तर पर दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय समितियां गठित होनी है जिनमें उपाध्यक्ष के अलावा दर्जनों सदस्य बनना है । इसके अलावा साडा, जिला योजना समिति,जिला सड़क और यातायात समिति और जिला स्वास्थ्य समितियों में भी नॉमिनेशन नहीं हुए हैं। प्राधिकरणों में भोपाल और इंदौर में पद स्थापनाएं हो चुकी है। लेकिन ग्वालियर में आपसी कलह के कारण नाम ही तय नही हो सका और मामला अटका पड़ा है और कार्यकर्ताओं में बेचैनी, निराशा और कुंठा बैठ गई है।
उच्च प्रशासकीय पद भी खाली
इतना ही नहीं इसी आपसी कलह का नतीजा है कि उच्च प्रशासकीय पदों पर भी कोई पद स्थापना नही हो पा रही है। सिंधिया संभाग भर में अपने अफसर चाहते हैं। लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता ऐसा होने नहीं दे रहे। यही वजह है कि ग्वालियर और चम्बल डीआईजी के पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। इसके साथ ही यहां एक और डीआईजी पदस्थ रहते हैं। वह भी खाली पड़ा है। लंबा अरसा हो गया चम्बल जैसे महत्वपूर्ण संभाग में आयुक्त का पद खाली पड़ा है, और ग्वालियर के कमिश्नर को ही वहां का अतिरिक्त काम देखना पड़ रहा है। इसके चलते लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । जबकि मुरैना के सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर है जो बीजेपी के बड़े नेता और मोदी सरकार में कृषिमंत्री भी।
नही हो पा रही कोर कमेटी की बैठक
बताया जा रहा है कि नामों को सभी नेताओं की रजामंदी से कोर कमेटी को तय करके लिस्ट भोपाल भेजनी है। इस कमेटी में ज्यादातर पदेन सदस्य सिंधिया समर्थक ही है। यानी अध्यक्ष को छोड़ दें तो प्रभारी मंत्री तुलसी राम सिलावट और ऊर्जामंत्री प्रद्युमन सिंह दोनों सिंधिया खेमे के हैं। इनके अलावा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं जिनमें भी सिंधिया समर्थकों की बहुतायत है। इस समिति के लंबे अरसे से कोई बैठक हो नहीं हुई। इस कमेटी के सदस्य पूर्व जिला अध्यक्ष कमल माखीजानी इस पर सवाल भी उठा चुके हैं। माखीजानी कहते है कि चुनाव नजदीक है और कोर कमेटी की बैठक ही नहीं हुई है जबकि वरिष्ठ संगठन कह भी चुका है। वही जिला अध्यक्ष अभय चौधरी का कहना है कि वे अप्रैल में बैठक बुलाकर नाम तय कर लेंगे।
गुपचुप भेज दिए बीस नाम
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के अध्यक्ष ने कोर कमेटी को दरकिनार करके नगर निगम में 12 वरिष्ठ पार्षद बनाने के लिए गुपचुप तरीके से 20 नाम भेज दिए। जैसे ही यह खबर लगी पार्टी नेताओं ने इस बात की शिकायत पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं को कर दी और वह नाम खारिज हो गए। बताया गया कि इस सूची में सिंधिया समर्थकों के नाम ही नदारद थे। मनोनयन और नियुक्तियां न होने और सिंधिया समर्थक इमरती देवी और मुन्नालाल गोयल,रणवीर जाटव, गिरराज कंसाना और एदल सिंह जैसे कांग्रेसियों के लाल बत्ती की गाड़ियों में घूमते देख बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ता दुखी हो जाते हैं। उनकी विडम्बना है कि कोई उनकी बात सुन भी नही रहा।