मध्यप्रदेश में 3 हिस्सों में बंटी बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले क्या हो पाएगी एकजुट, कांग्रेस-जयस का तालमेल रहा तो होगी मुश्किल

author-image
Jayant Singh Tomar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में 3 हिस्सों में बंटी बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले क्या हो पाएगी एकजुट, कांग्रेस-जयस का तालमेल रहा तो होगी मुश्किल

BHOPAL. मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर ग्वालियर चंबल संभाग में राजनीतिक हलचल तेज है। कांग्रेस इस अंचल की 34 विधानसभा सीटों पर इस तरह की जमावट में लगी है जिससे ज्योतिरादित्य सिंधिया से हिसाब बराबर किया जा सके जो कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी में आ गए थे।



बीजेपी 3 हिस्सों में बंटी



कांग्रेस तब से कुछ ज्यादा ही उत्साहित है जब उसने ग्वालियर और मुरैना नगर निगम चुनाव में जीत हासिल की। नगर निगम चुनावों में साबित हो गया था कि बीजेपी नेताओं में आपसी तालमेल की भारी कमी है। केंद्रीय मंत्रियों से लेकर बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व और मंत्रियों के बीच दखल और वर्चस्व को लेकर खींचतान सतह पर आ गई। बीजेपी 3 हिस्सों में बंटी है- महाराज भाजपा, नाराज भाजपा और शिवराज भाजपा।



ग्वालियर-चंबल में किसकी चलेगी?



ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के नेताओं के साथ अब तक समरस नहीं हो पाए हैं। आगामी चुनावों तक अगर यह स्थिति नहीं सुधरी तो बहुत से नाराज भाजपाई या तो दूसरे दलों का रुख करेंगे या निष्क्रिय रहेंगे या बीजेपी के ही उम्मीदवार को हराने की कोशिश करेंगे। ग्वालियर चंबल में नरेंद्र सिंह तोमर की चलेगी या ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह टिकटों के बंटवारे पर और उसके बाद उन उम्मीदवारों की जीत पर निर्भर करेगा। सत्ता विरोधी लहर अपना असर दिखाएगी, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के अलावा मुख्यमंत्री का कोई दूसरा चेहरा केन्द्रीय नेतृत्व को नहीं सूझ रहा।



मध्यप्रदेश सरकार ने शुरू की लाड़ली बहना योजना



प्रदेश सरकार ने जो लाड़ली बहना शुरू की है, वह बीजेपी को महिलाओं का वोट बड़े पैमाने पर दिला पाएगी या नहीं यह चुनाव से पहले के कुछ ही महीनों में उसके तेज क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। नौकरशाही ने अगर सरकार की मंशा के अनुरूप तेजी से महत्वाकांक्षी योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया तो बीजेपी के प्रति मतदाताओं में असंतोष कम होने की बजाय बढ़ेगा।



ग्वालियर-चंबल को किसी ने ना समझा



ग्वालियर-चंबल अंचल की समस्याओं को बीजेपी या कांग्रेस में से किसी ने भी ना ठीक से समझने की कोशिश की ना कोई मुहिम चलाई। सबसे बड़ी समस्या है रोजगार के लिए पलायन। जो लोग पंचायतों में जनता के नुमाइंदे हैं वे भी गुजरात और राजस्थान में दीवार पोत रहे हैं। लाखों की तादाद में नौजवान कामकाज ढूंढने घरबार छोड़ने को मजबूर हैं। वे देशभर में रेलगाड़ियों की खानपान सेवा संभाल रहे हैं, सूरत में हीरा घिस रहे हैं, दिल्ली में हलवाई की दुकान में काम कर रहे हैं, लुधियाना में जुर्राब-बनियान की पैकिंग कर रहे हैं, डंडा या बंदूक लेकर चौकीदारी कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर रोजगार होते तो ये घर छोड़कर क्यों सैकड़ों हजारों मील दूर जाते। जो लोग खेती कर रहे हैं वे सिंचाई के पानी, खाद की किल्लत, बिजली के भारी-भरकम बिल और खेती की लागत बढ़ने से परेशान हैं। किसान की आमदनी 10 साल में दोगुनी नहीं हो पाई। सभी राजनीतिक दल लोगों की समस्याओं पर बात करने की बजाय जाति, धर्म और समुदायों की अस्मिता उभारकर चुनावी लाभ लेना बेहतर समझते हैं। कांग्रेस इस समय एकजुट है। ग्वालियर चम्बल में ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव उसका सबसे बड़ा लक्ष्य है। बीजेपी का भी एक वर्ग इसमें साथ देगा। सरकार विरोधी लहर, पिछड़े और वंचित समुदाय के वोटर का एकजुट होना तो बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बन ही रहा है।



जयस की वजह से कठिन हो सकती है बीजेपी की राह



कांग्रेस को यह भी तय करना है कि वंचित और पिछड़े समुदाय की एकजुटता कहीं उसी के वोट बैंक में सेंध ना लगा दे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सरकार बनने पर जातिगत जनगणना कराने की बात की है। ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के वादे के साथ कांग्रेस ने कर्मचारी वर्ग को भी लुभाने का काम किया है। डॉ. हीरालाल अलावा के जय आदिवासी संगठन को अगर सफलता मिली, उसका कांग्रेस के साथ तालमेल रहा तो बीजेपी की राह बहुत कठिन दिखाई देती है।


MP Assembly Election 2023 एमपी में किसकी बनेगी सरकार एमपी विधानसभा चुनाव 2023 Scindia-Chambal and JYAS will decide the results in MP Assembly Election MP-2023 गर्भ में सरकार-किसकी होगी जय-जयकार एमपी में सिंधिया-चंबल और जयस तय करेंगे नतीजे एमपी में बीजेपी की चुनौती एमपी में कांग्रेस की चुनौती Whose government will be formed in MP