बीजेपी को मालवा में ज्यादा खतरा नहीं, विंध्य और बुंदेलखंड में करनी होगी ज्यादा मेहनत; कांग्रेस भी कर रही नए-नए वादे

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Rajendra Kanoongo
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बीजेपी को मालवा में ज्यादा खतरा नहीं, विंध्य और बुंदेलखंड में करनी होगी ज्यादा मेहनत; कांग्रेस भी कर रही नए-नए वादे

BHOPAL. नदी की विशेषता यह है कि उसमें हर समय पानी बहता रहता है और पानी बहते रहना ही नदी के नाम को सार्थक करता है। उसी प्रकार राजनीति की विशेषता यह है कि उसमें सतत परिवर्तन होते रहते हैं। नए समीकरण बनते रहते हैं और जब तक ऐसा ना हो, तब तक यह संभव नहीं कि हम उसे राजनीति कहें। हाल ही की घटनाओं को यदि हम देखें और उन पर विचार करें तो राजनीति में क्या हो, कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी लोग एक-दूसरे के गले में हाथ डाले नजर आते हैं और कभी गलबहियां करने वाले लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी करने लगते हैं।



सीएम शिवराज की मजबूरी



अभी यदि हम देखें तो प्रदेश के मुख्यमंत्री जो कांग्रेस के धुर विरोधी हैं, उन्होंने ग्वालियर में कांग्रेस के नेता, कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे, माधवराव सिंधिया की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। क्योंकि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिताश्री थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह आवश्यक हो गया था, या कहें उनकी मजबूरी थी कि जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने पर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और हारे हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बने।



विंध्य के दमदार नेता अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण



वहीं दूसरी ओर यदि हम देखें तो विंध्य के दमदार नेता अर्जुन सिंह की प्रतिमा वर्षों तक भोपाल में न्यू मार्केट में एक चौराहे पर अनावरण की प्रतीक्षा में लगी रही। बाद में उसे उसी स्थान से हटाकर व्यापमं चौराहे पर लगाया गया। बीजेपी के ही विंध्य क्षेत्र से विधायक के इस मुद्दे को बलपूर्वक उठाने पर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जिन्हें कांग्रेस चाणक्य के रूप में पहचानती थी, उनकी प्रतिमा का अनावरण किया। इस कार्यक्रम में यदि गौर से देखा जाए और राजनीतिक दृष्टि से समझा जाए तो अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित अनेक वरिष्ठ नेता मौजूद थे। परंतु कांग्रेस के अध्यक्ष और 15 माह की कांग्रेस के शासन काल के मुख्यमंत्री कमलनाथ इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे। यह कोई संयोग मात्र नहीं है, इसके पीछे कई राजनीतिक कारण छुपे हुए हैं।



बीजेपी को विंध्य और बुंदेलखंड में करनी पड़ेगी ज्यादा मेहनत



अब यदि हम चर्चा करें कि सरकार गर्भ में किस प्रकार विकसित हो रही है तो उसके मायने सामने हैं। जिनपर विचार किया जाना उचित होगा। बीजेपी को मालवा क्षेत्र में ज्यादा खतरा नजर नहीं आ रहा है, परंतु विंध्य और बुंदेलखंड में उसे काफी मेहनत करनी पड़ेगी। बीजेपी और कांग्रेस वहां पर नए-नए वादों के साथ सामने आ रही हैं। यदि हम कहें तो बीजेपी विंध्य क्षेत्र के लोगों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। वहीं ग्वालियर संभाग की यदि हम बात करें तो वहां महाराज पर ही पूरा दारोमदार छोड़ दिया गया है। टाइगर अभी जिंदा है। इस थीम पर हाल ही में शिवपुरी के अभ्यारण में 2 टाइगर छोड़े गए हैं।



मध्यप्रदेश की आधी आबादी की बात



अब यदि हम बात करें प्रदेश की आधी आबादी की अर्थात महिलाओं की, तो उनके लिए शिवराज सिंह चौहान ने पहले से लाड़ली लक्ष्मी योजना, साइकिल देने की योजना, स्कूटी देने की योजना, चला रखी है। उसके अतिरिक्त हाल ही में एक नई योजना लॉन्च की गई है लाड़ली बहना योजना। इसके अंतर्गत पात्र बहनों को प्रतिमाह 1 हजार रुपए उनके खाते में सरकार डालेगी। ताकि वे उसका उपयोग अपनी इच्छा अनुसार अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर सकेंगी। इधर कांग्रेस भी पीछे नहीं रही और कांग्रेस के आज के सर्वमान्य नेता कमलनाथ ने वादा किया है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रत्येक महिला के खाते में 1500 रुपए डाले जाएंगे। यदि स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो सरकार और अपने आप को प्रदेश की बनने वाली सरकार के मुखिया मानने वाले नेता, सरकारी खर्चे पर, अर्थात जनता के टैक्स के पैसों पर अपनी सरकार बनाने के लिए वोट खरीदने का कूटरचित प्रयास कर रहे हैं और उसका नाम जनकल्याण रख रहे हैं।



कहां खर्च हो रहा जनता का टैक्स



यहां यह उल्लेखनीय है कि जो भी सरकार हो चाहे वह किसी भी दल की सरकार हो, यदि मुफ्त बांटने के आधार पर शासन में आती है और जनता के टैक्स के पैसे का इस प्रकार से उपयोग करती है, तो आम जनता को भी सतर्क होना पड़ेगा और यह देखना पड़ेगा कि हमारा टैक्स का पैसा किस प्रकार के कामों में खर्च हो रहा है। चाहे वह सरकारी योजनाएं हों या मंत्रियों के टैक्स के रुपयों की वापसी हो या एमएलए-एमपी की पेंशन ही क्यों ना हो। जब तक जनता जागरुक नहीं होगी, जनतंत्र तब तक जनतंत्र नहीं बन सकेगा और वह एकतंत्र में समाहित होकर कार्य करता रहेगा।


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