Indore.ताजा चुनावों में बीजेपी (BJP) अकेले इंदौर में ही करीब चालीस छोटे नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में छह साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। इनमें तीस शहरी और बाकी ग्रामीण इलाकों से हैं। अब सवाल उठ रहे हैं कि कार्रवाई केवल छोटे नेताओं पर ही क्यों होती है। इस चुनाव में और कालांतर में भी ऐसे अनेक मौके आए हैं जब बड़े नेताओं ने खुलकर पार्टी के फैसलों की मुखालफत की है, लेकिन या तो नोटिस की औपचारिकता कर मामला खत्म कर दिया गया या कुछ किया ही नहीं गया।
जिन चालीस छोटे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है उनमें कई पूर्व पार्षद, शहर स्तर के पूर्व और वर्तमान पदाधिकारियों के अलावा आम कार्यकर्ता शामिल हैं। इन पर मोटे तौर पर यही आरोप है कि ये निगम और पंचायत चुनावों में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ खड़े हुए या पार्टी के फैसलों से असहमति जताई। हालांकि पार्टी की इस कार्रवाई का कहीं असर नहीं दिखा। न तो कोई बागी चुनाव से हटा न किसी अन्य कार्यकर्ता और पदाथिकारी ने पार्टी को 'सॉरी' बोला । इस कार्रवाई के बाद पार्टी पर भेदभाव और डरने के आरोप जरूर लगने लगे हैं। इसी चुनाव में और कालांतर में ऐसे कोई मौके आए हैं जब कई नेताओं ने पार्टी की सीमा रेखा से पार जाकर अपनी राजनीति की है और उनका कुछ नहीं हुआ।
रामकिशोर शुक्ला (बागी खड़े कर दिए)
महू (Mhow) विधानसभा के कद्दावर बीजेपी नेता रामकिशोर शुक्ला (Ramkishore Shukla) महू गांव नगर पंचायत के हाल में हुए चुनाव में 15 टिकटों में से पहले तो दो तिहाई टिकट अपनी मर्जी से ले गए, बचे जो चार टिकट अन्य नेताओं के समर्थकों को मिले शुक्ला ने उनके खिलाफ भी अपने समर्थकों को खड़ा कर दिया। हालांकि ये चुनाव पार्टी आधार पर नहीं होते हैं लेकिन टिकटों का चयन पार्टी आधार पर ही किया जाता है। यह पहली बार नहीं है जब शुक्ला ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं, तकरीबन हर चुनाव में इस नगर पंचायत पर वे जिन्हें चाहते हैं, जहां से चाहते हैं, खड़ा कर देते हैं भले ही पार्टी किसी को भी खड़ा करे। शुक्ला पहले कांग्रेस में थे तब भी उनका यही रेकॉर्ड था। सालों पहले वे बीजेपी में आ गए लेकिन बगावत का रेकॉर्ड बरकरार रखा है। उन पर आज तक पार्टी की नजर नहीं पड़ी या नजर दौड़ाई नहीं गई।
उमेश शर्मा (पार्टी के फैसलों पर सवाल)
नगर अध्यक्ष और फिर इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) अध्यक्ष की दौड़ में शामिल वरिष्ठ नेता और प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा (Umesh Sharma) दोनों पदों से वंचित होने के बाद आक्रामक मुद्रा में आ गए हैं। सोश्यल मीडिया पर कई बार पार्टी के फैसलों के खिलाफ सवाल उठा रहे हैं। इंदौर की नगर इकाई में एक पूर्व कांग्रेसी को प्रवक्ता बनाए जाने पर वे अध्यक्ष गौरव रणदिवे (Gaurav Randive) पर सोश्यल मीडिया पर पिल पड़े। कुछ संकेतों में और कुछ सीधे आमने-सामने के बयानों की बयार जब ज्यादा बहने लगी तो पार्टी ने एक कारण बताओ नोटिस दिया। नोटिस का क्या हुआ इस पर किसी ने नोटिस नहीं किया न आगे कोई कार्रवाई हुई, बल्कि शर्मा तो महापौर टिकट की दौड़ में शामिल रहे।
शेख असलम ( पत्नी को बागी लड़ाया)
बीजेपी नगर अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष शेख असलम (Shekh Aslam) ने वार्ड नंबर 53 से अपनी पत्नी को पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ बावजूद बागी लड़ा दिया लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। तीस निष्कासितों की सूची के बाद पार्टी ने भी कागज-कलम रखकर कार्रवाई को विराम दे दिया है। इसी तरह कई नेता हैं जिन्होंने परदे के पीछे रहकर अपने रिश्तेदारों को पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा कर दिया है।
बड़े नेता, बड़ी बगावत, हुआ कुछ नहीं
बीते सालों में कई बड़े नेताओं ने पार्टी के फैसले के खिलाफ अपने फैसले सुनाए हैं लेकिन पार्टी ने कभी उन पर कान नहीं दिए। कई मामलों में पार्टी इन बड़े नेताओं की मनुहार करती दिखी। वर्तमान मंत्री उषा ठाकुर दो बार बगावत का झंडा बुलंद कर चुकी हैं। 2008 में पार्टी ने जब एक नंबर विधानसभा से उनका टिकट काटकर ( वे जीती हुईं विधायक थीं) सुदर्शन गुप्ता को दे दिया था तब ठाकुर ने बागी होकर निर्दलीय फार्म भर दिया था जिसका शोर भोपाल तक गया था। बाद में कैलाश विजयवर्गीय के आग्रह और समझाने के बाद उन्होंने फार्म वापस लिया। इससे पहले 2005 में जब पार्टी ने उमाशशि शर्मा को महापौर का टिकट दे दिया था तब पार्टी के फैसले के विरोध में ठाकुर सहित विधायक द्वय लक्ष्मणसिंह गौड़ (अब स्वर्गीय) और महेंद्र हार्डिया ने इस्तीफा दे दिया था। कार्रवाई तो छोड़िए, भोपाल बुलाकर समझाइश को दौर चलता रहा। आखिर में इस्तीफे वापस हुए।
मेंदोला चाहे जब हो जाते है बगावती
विधायक रमेश मेंदोला (Ramesh Mendola) चाहे जब पार्टी या किसी भी नेता के फैसलों के खिलाफ बगावती तेवर अपना लेते हैं। कुछ साल पहले उनका पार्टी संगठन में पद को लेकर विवाद हो गया। उसके बाद वे तब की नगर की टीम के पूरे कार्यकाल में पार्टी कार्यालय नहीं गए। पिछली परिषद में उनकी एक समर्थक पार्षद सरोज चौहान और उनके पति पर आरोप लगा था कि उन्होंने अपर आयुक्त रोहन सक्सेना (Rohan Saxena) को चांटा मार दिया। तब की मेयर मालिनी गौड़ (Malini Gaud) के कहने पर चौहान और पति पर केस दर्ज हुआ और दोनों जेल गए। मालिनी के इस फैसले से नाराज मेंदोला ने अपने समर्थक एमआईसी मेंबर और पार्षदों ( सब मिलाकर 15 से ज्यादा) को मेयर का बहिष्कार करने का फऱमान सुना दिया। उसके बाद मालिनी के पूरे कार्यकाल में ये 15 लोग किसी बैठक में शामिल नहीं हुए। बड़े नेताओं के ऐसे कई बगावती फैसलों को पार्टी ने हलके में लेकर निपटा दिया, जबकि छोटे नेताओं की हर बगावत को भारी नुकसान मानकर पार्टी से चलता कर दिया।