Indore.ये कौन लड़की है। न हारती है। न टूटती है। लड़ती है हालात से, चुनौतियों से, विपत्तियों से... और फिर वो सब पा लेती हैं जो चाहती हैं। चाहत भी छोटी-मोटी नहीं। चाहत जज बनने की। बन गईं। इनकी सफलता और संघर्ष की कहानी सुनकर आप भी कह उठेंगे...ये लड़की किस मिट्टी की बनी है।
इंदौर के गुत्थमगुथा बने घरों की संकरी सी कॉलोनी है श्याम नगर (Shyam Nagar) । यहां भाड़े के मकान में रहती हैं, ज्योति कुवाल (Jyoti Kuwal) । इस समय वे गृहणी हैं। दो बेटियों की माँ हैं, एक अच्छी पत्नी हैं। एक महीने बाद उनकी पहचान होगी ज्योति कुवाल...सिविल जज...। बचपन, शादी, गृहणी और सिविल जज तक का सफर लाड़-प्यार, किताबों, कोचिंग के जरिए पूरा नहीं हुआ है। यह एक ऐसे पिता की बेटी की कहानी है जो मिल बंद होने के बाद सब्जी बेचता है, चाय बेचता है लेकिन बेटी को पढ़ाता रहता है। ये एक ऐसी बेटी की कहानी है जो चार भाई-बहनों और माता-पिता की मदद के लिए अगरबत्ती बनाने से लेकर छोटे-छोटे काम करती है। ये संघर्ष एक-दो नहीं करीब पंद्रह साल चलता है। कोई और हो तो शायद हार ही मान जाए लेकिन यहां मिजाज किसी और ही मिट्टी का बना है। माता-पिता के साए में चले संघर्ष से इतर एक कठिन दौर उनके जीवन में लिखा था। शादी के बाद का।
पहली शादी..जीवन और कठोर
छोटी उम्र में शादी होने के बाद जब लगा कि जज बनने का सपना पूरा हो या नहीं, संघर्षपूर्ण जीवन को विराम मिल गया है। शायद सबकुछ ठीकठाक हो जाए। हालांकि यह भ्रम था, झूठी दिलासा थी। नई गृहस्थी का संघर्ष ज्यादा पीड़ादायी, कठोर और आंसुओं से भरा रहा। इतना कि पूरा किस्सा सुनें तो रुह कांप जाए। यही वजह रही कि शादी के शुरुआती साल में ही बात अलगाव तक पहुंच गई। उसके बाद तेरह साल इतने कठिन रहे कि दिल, दिमाग और सेहत तक को तोड़ दिया। पहली बेटी भी जीवन में आ गई थी। न पति का साथ, न जमाने का। एक बारगी तो सपना तो ठीक जीवन ही बच जाए तो बहुत है।
बदली जीवन की चाल
पति से तेरह साल तक अलगाव, एकाकी जीवन और नन्हीं सी बेटी की भूख। सब दूर अंधेरा ही था। फिर कहीं से दिखी रोशनी की हल्की सी किरण। सोश्यल मीडिया के जरिए जीवन में आए जय कुवाल (Jay Kuwal)। जेब बहुत छोटी लेकिन दिल बहुत बड़ा। ईंट बनाने वाले कारखाने में छोटी सी नौकरी। न केवल ज्योति को अपनाया बल्कि बेटी एकता को भी अपना नाम दिया। ये भी संघर्ष की इति नहीं, नए संघर्ष की शुरुआत थी। नए घर में अपनाई नहीं गईं। वहां से ठुकराईं गई तो भाड़े के छोटे से मकान में रहना पड़ा। छोटी तनख्वाह के अभाव। जीवन फिर बेपटरी हो रहा था लेकिन न जय ने हार मानी न ज्योति ने। जीवन की जंग और सपना साथ-साथ चलता रहा। बेटी एकता इतनी बड़ी हो गई थी कि माँ की मदद कर सके। घर को खूब संभाला उसने।
सहेली जज बनी तो...
गृहस्थी और संघर्षों में उलझी ज्योति को लगा कि नए जीवन में जो चल रहा है वो ही ठीक है बाकी सब भूलें। तभी ऐसा कुछ हुआ कि वे फिर नए उत्साह से उठ खड़ी हुईं। दरअसल जज परीक्षा का नतीजा आया तो उन्हें पता चला कि उनकी सहेली जज बन गई है। भौंचक ज्योति देर तक सुन्न हो गईं। मैं जज क्यों नहीं बन सकती, जब सखी बन गई तो। इस बार खुद के प्रति गुस्सा भी था। क्यों थककर बैठ गई मैं। पति को बताया तो वे सहर्ष राजी हो गए। कुछ उधारी, कुछ मदद मिलाकर फिर पढ़ाई शुरू की। ये 2019 की बात है। परीक्षा दी। नतीजा हाल ही में आया तो अपना नाम देखकर देर तक चुप रह गईं। अंधेरे में रहे शख्स को जब अचानक उजाले में ला खड़ा करें तो आंखें चौंधिया जाती हैं। ऐसा ही कुछ ज्योति के साथ हो रहा था। खैर.. अगले महीने तक किराए के मकान के बाहर ये तख्ती लग जाएगी..ज्योति कुवाल...सिविल जज।