भोपाल. एमपी अजब है, सबसे गजब है। इस कहावत को मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्राद्यौगिकी संस्थान यानि मैनिट (MANIT) ने सच कर दिखाया है। यहां एक रोचक वाक्या सामने आया है, मैनिट प्रबंधन ने बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर (Builder) को भुगतान करने की जगह उससे 11 करोड़ रुपए देशहित में दान (Charity For Nation) करने का पत्र जारी किया है। यानी बिल्डर अपने 11 करोड़ रुपए दान कर दे। इसके एवज में मैनिट प्रबंधन उस बिल्डिंग को बिल्डर के दिवंगत परिजन के नाम पर रखने के लिए तैयार है।
कोर्ट ने 11 करोड़ पेमेंट का आदेश जारी किया
मैनिट प्रबंधन (MANIT Management) ने 3 बिल्डिंग के निर्माण का ठेका (Manit Building Tender) नवंबर 2013 में 48 करोड़ रुपए से दिया था। टेंडर साहेब इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड (Saheb Infrastructure Private Limited) को मिला। साहेब इंफास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के बिल्डर हर्ष मल्होत्रा ने यह काम पूरा किया। इस काम का पेमेंट भी हुआ लेकिन आखिर में करीब 7.50 करोड़ रुपए का भुगतान अटक गया। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने मैनिट प्रबंधन को ब्याज समेत करीब 11 करोड़ रुपए का भुगतान का आदेश जारी किया है। इसी मामले में मैनिट प्रबंधन ने बिल्डर को पत्र लिखकर पैसा दान करने का प्रस्ताव दिया है।
मामले में कब क्या हुआ
1. तीनों बिल्डिंग 2016 तक बन गई। मैनिट के पूर्व डायरेक्टर अप्पू कुट्टन ने भुगतान भी करवाया, लेकिन 7.50 करोड़ रुपए अटक गए।
2. कुट्टन के बाद डायरेक्टर बने नरेंद्र रघुवंशी। बिल्डर ने पेमेंट के लिए कई बार पत्राचार किया, भुगतान नहीं हुआ तो बिल्डर हाईकोर्ट पहुंचे।
3. हाईकोर्ट ने आर्बिटेटर नियुक्त किया। आर्बिटेटर ने मैनिट प्रबंधन को ब्याज समेत करीब 11 करोड़ का भुगतान बिल्डर को करने के आदेश दिए।
4. इसके बाद मैनिट ने जिला न्यायालय में केस लगाया। वहां भी आर्बिटेटर के आदेश को यथावत रखा।
5. जिला न्यायालय के इस आदेश के विरूद्ध मैनिट ने हाईकोर्ट में याचिका लगा दी, जिस पर अभी फैसला आना बाकी है, इसी बीच मैनिट ने यह पत्र जारी कर दिया।
मैनिट कानूनी प्रक्रिया में ही खर्च कर चुका है एक करोड़
इस मामले में मैनिट कानूनी प्रक्रिया में ही अब तक करीब एक करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। वैसे तो आर्बिटेटर की नियुक्ति पर 20-20 लाख रुपए दोनों पक्ष को देना थे, लेकिन फैसला बिल्डर के पक्ष में आने से पूरे 40 लाख का भुगतान मैनिट को करना पड़ा है। इसके अलावा मैनिट ने जांच समिति में एक रिटायर्ड अधिकारी को कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्त किया था। इसमें भी करीब 40 लाख रुपए खर्च हुए। अब तक करीब 20 लाख वकील समेत अन्य कानूनी प्रक्रिया में खर्च हो गए हैं।
डायरेक्टर ने परिचय सुनते ही काट दिया फोन
इस पूरे मामले में द सूत्र ने मैनिट के डायरेक्टर नरेंद्र रघुवंशी से संपर्क करने कोशिश की, लेकिन पहले तो उन्होंने फोन नहीं उठाया, लेकिन जब उन्हें वॉट्सऐप पर मैसेज किया तो नरेंद्र रघुवंशी ने कॉल बैक किया, पर द सूत्र का परिचय देते ही उन्होंने फोन काट दिया और उसके बाद रिसीव ही नहीं किया। इस दौरान मैनिट के गार्ड ने द सूत्र की टीम को वीडियो बनाने से भी रोका।
हमने कोई प्रस्ताव नहीं दिया- बिल्डर
साहेब इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नकुल मल्होत्रा ने बताया कि हमारे पास 11 अक्टूबर को मैनिट डायरेक्टर की ओर से इस तरह का पत्र आया है। हमारी ओर से कभी कोई इस तरह का प्रस्ताव नहीं दिया गया है। 5 साल से हम पैसे लेने के लिए लड़ रहे हैं। हाईकोर्ट में केस है, कोर्ट का जो भी फैसला होगा, हमें मंजूर होगा।