CHHATARPUR. मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में 26 विधानसभा सीटें आती हैं। 2018 के चुनाव में यहां से 14 सीटों पर बीजेपी और 10 पर कांग्रेस, सपा और बसपा एक-एक सीट पर चुनाव जीती थी। अगर इन समीकरणो को ही देखें तो बुंदेलखंड ही वह इलाका था, जिसने कांग्रेस के हाथों सत्ता की बागडोर सौंपी थी। सालभर बाद ही कांग्रेस के
दल-बदल के कारण सत्ता बदल गई और सरकार बीजेपी की बन गई, इसका बड़ा असर बुंदेलखंड में भी देखने को मिला। वर्तमान के सियासी हालात देखें तो इस बार सीएम के तमाम प्रयासों के बावजूद बीजेपी के हालातों में बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है।
बुंदेलखंड इलाके के सागर संभाग में सागर जिले की 8 विधानसभा सीट में से 5 पर बीजेपी और 3 पर कांग्रेस ने चुनाव जीता था। सुरखी विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे गोविन्द राजपूत ने सिंधिया समर्थकों के साथ दलबदल किया। इसके चलते सागर में अब कांग्रेस 2 विधायक रह गए और बीजेपी के 5 से बढ़कर 6 विधायक हो गए। बुंदेलखंड में सत्ता परिवर्तन के बाद बड़ा असर सियासी समीकरणों में देखने को मिला। सागर के बाद सबसे ज्यादा विधानसभा सीट वाले छतरपुर जिले में 2018 के चुनाव में कांग्रेस के 4, बीजेपी और सपा का एक-एक विधायक चुनाव जीता था।
बड़ा मलहरा के कांग्रेस विधायक प्रदुम्न लोधी ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी की सदस्यता ले ली थी। उपचुनाव उन्होंने बड़े अंतर से जीता था। बिजावर से सपा के राजेश शुक्ला ने भी सपा का दामन छोड़ बीजेपी की सदस्यता ले ली थी। दमोह में कांग्रेस के राहुल लोधी जो प्रदुम्न लोधी के रिश्तेदार लगते हैं उन्होंने भी बीजेपी का दमन थाम लिया था, लेकिन उपचुनाव में जब उन्हें प्रत्याशी बनाया गया तो वे कांग्रेस के अजय टंडन से बुरी तरह से हार गए। निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर विधानसभा सीट कांग्रेस के दबंग नेता ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह के निधन से रिक्त हुई और यहां हुए उपचुनाव में बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर सपा से 2018 का चुनाव लड़ चुके शिशुपाल यादव को कैंडिडेट बनाया और चुनाव जीता |
2022 के अंत तक बुंदेलखंड में बीजेपी विधायकों की संख्या 14 से बढ़कर 18 हो गई, कांग्रेस की 10 से घटकर 7 हो गई। सत्ता के सबलीकरण का ये असर 2023 के चुनाव में कितना रहता है, यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो जाएगा। 24 घंटे चुनावी मोड में रहने वाली बीजेपी के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव वर्तमान में बहुत ज्यादा उम्मीदों वाले नहीं कहे जा सकते। एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर के अलावा बुंदेलखंड में लोग ये कहने लगे हैं कि काठ की हांडी बार बार चूल्हे पर नहीं चढ़ती। इन सबके मूल में अगर देखा जाए तो एक समस्या ऐसी है जो बुंदेलखंडभर में देखने को मिल रही है, वह है- कानून और व्यवस्था की स्थिति। अपराधी तत्व बेलगाम हैं। आम आदमी की कोई सुनने वाला नहीं है। बगैर दाम के काम नहीं होता। ज्यादातर विधायकों के काम काज के तरीके को लेकर लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है।
वर्तमान में सरकार विकास यात्रा निकाल रही है, जगह-जगह शिलान्यास और लोकार्पण हो रहे हैं। विकास यात्रा को लेकर पन्ना कलेक्टर का बयान भले ही अलग हो, पर सरपंच और पंचायत सचिवों में नाराजगी देखने को मिल रही है। सचिवों का कहना है कि चार -चार महीने से हम लोगों को वेतन नहीं मिल रहा, पंचायत के लिए कोई बजट नहीं मिला, उस पर से विकास यात्रा के लिए इंतजाम हम लोगों को करना पड़ रहा है। वे इसे विनाश यात्रा कहने से भी नहीं चूकते। चुनावी साल में बिजली कम्पनी के अधिकारियों द्वारा चलाया जा रहा वसूली अभियान भी लोगों को ही नहीं, बीजेपी विधायकों को भी बेचैन किए है। छतरपुर जिले की राजनगर विधानसभा सीट के हरद्वार गांव पहुंची विकास यात्रा में गांव वालों ने बीजेपी नेता अरविंद पटेरिया को जमकर खरी खोटी सुनाई और कहा- आज यात्रा लेकर आ गए हमारे गांव में, लाइट नहीं है कभी पूछने तक नहीं आए। सागर के नरयावली विधायक प्रदीप लारिया ने तो बिजली अधिकारियों पर कांग्रेस के एजेंट होने का ही आरोप लगा दिया था।
हालंकि चुनावी वर्ष में बीजेपी की शिवराज सरकार ने खजाना खोल दिया है, लाड़ली लक्ष्मी के बाद लाड़ली बहना योजना। इस तरह की योजना उत्तर प्रदेश में चलती हैं, जिसका बड़ा लाभ बीजेपी को मिला है। उसी नक़्शेकदम पर मध्य प्रदेश में यह योजना शुरू की गई है, आप के जवाब में सीएम राइज स्कूल। चुनावी वर्ष में दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए सागर में बड़ा आयोजन रविदास महाकुंभ के नाम पर किया गया। यहां 100 करोड़ की लागत से संत रविदास का मंदिर बनेगा। एससी/एसटी के लिए औद्योगिक क्षेत्र में 20 फीसदी भूखंड आरक्षित होंगे। स्कॉलरशिप की आय सीमा भी 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख की गई है। जातीय और मतदात समीकरण को देखें तो बुंदेलखंड में अनुसूचित जाति के करीब 22 फीसदी मतदाता हैं। इनमे अधिकांश संत रविदास के अनुयायी हैं। बीजेपी की निगाह इन वोटों पर काफी पहले से है। 2013 में 22 सीट जीतने वाली बीजेपी 2018 के चुनाव में 14 सीट पर सिमट गई थी। 4 सीट जितने वाली कांग्रेस 2018 में बढ़कर 10 पर पहुंच गई थी, परिणामतः बीजेपी की सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। अब वह किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती।
बुंदेलखंड में उमा भारती के प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता है। शराब और अपने लोधी समाज के वोटरों को लेकर भी वे सरकार पर हमलावर थीं। इस माह के शुरुआत में उन्होंने ओरछा के रामराजा सरकार के मंदिर के पास से शराब दुकान को लेकर शिवराज सरकार को सीधी चेतावनी दे डाली थी, जिसका असर सरकार की नई शराब नीति में देखने को मिला। दरअसल, बुंदेलखंड इलाके में लोधी वोटरों पर पकड़ रखने वाली उमा भारती से बड़ा कोई नेता बीजेपी के पास नहीं है। बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद उमा भारती के ही इशारे पर प्रदुम्न और राहुल लोधी बीजेपी में आए थे। सियासी समीकरणों के बीच बुंदेलखंड में भी मतदातओं को मुफ्त की योजना और जातीय समीकरण ज्यादा प्रभावित करते हैं।