इंदौर की रंगपंचमी की गेर को यूनेस्को में शामिल कराने की फिर चलेगी मुहिम, कोविड के दौर में रूक गया था अभियान

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इंदौर की रंगपंचमी की गेर को यूनेस्को में शामिल कराने की फिर चलेगी मुहिम, कोविड के दौर में रूक गया था अभियान

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर और मालवा की पहचान रंगपंचमी की गेर 12 मार्च को निकलने जा रही है। इसमें पांच लाख से ज्यादा लोगों के सारोबार होने की उम्मीद की जा रही है, जिसके लिए तैयारियां शुरू हो गई है। वहीं साल 2019-20 में शुरु हुई इस गेर को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज में दर्जा दिलाने की मुहिम एक बार फिर शुरू की जाएगी। यह फैसला दो जगह लिया गया,पहला महापौर पुष्यमित्र भार्गव की अध्यक्षता में हुई मेयर इन काउंसिल की बैठक में तो दूसरा कलेक्टोरेट में अधिकारियों की हुई बैठक में। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर और वर्तमान में स्टेट जीएसटी कमिशनर लोकेश जाटव के समय इसके प्रयास हुए थे, पूरी तैयारियां थी लेकिन इसी दौरान कोविड काल आने से गेर को स्थगित करन पड़ा। इस गेर का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल होने के लिए मुख्य तौर पर शर्त रहती है कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही घटना हो और इसका ग्लोबल कनेक्ट हो। 





महापौर बैठक में यह हुआ फैसला





महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि मेयर इन काउंसिल  की बैठक में इंदौर में रंगपंचमी पर निकलने वाली गैर की परम्परा को आगे बढ़ाने के साथ ही इंदौर के पर्यटन को बढ़ावा देने के उददेश्य से गेर को वर्ल्ड हेरिटेज में दर्जा दिलाने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रयास करने पर एमआईसी सदस्यों तथा विभागीय अधिकारियों से चर्चा की गई। साथ ही निगम द्वारा स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत राजबाड़ा,गोपाल मंदिर व आसपास के क्षेत्र में किए जीर्णोंद्धार व नवीनीकरण कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए,उक्त क्षेत्र को रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर के दौरान रंगों व पानी से बचाव के लिए पर्याप्त रूप से कवर करने व सुरक्षित करने के भी संबंधित निर्देश भी दिए गए।





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अधिकारियों की बैठक में यह लिया गया फैसला





कलेक्टोरेट में हुई बैठक में फैसला लिया गया कि इंदौर में रंगों का त्यौहार रंगपंचमी 12 मार्च को मनाई जाएगी। इस दिन पूरा शहर रंगों से सराबोर होगा। परम्परागत रूप से निकाली जाने वाली इंदौर की गेर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए एक बार फिर प्रयास किए जाएंगे। इस संबंध में पूर्ण दस्तावेजों के साथ पुख्ता प्रस्ताव तैयार कर भेजा जाएगा। दस्तावेजीकरण के लिए विभिन्न माध्यमों से दस्तावेज एकत्र किए जाएंगे। गेर को लेकर फोटोग्राफी प्रतियोगिता इंदौर टूरिज्म प्रमोशनल काउंसिल के माध्यम से आयोजित होगी। 





विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए होंगे पुरजोर प्रयास





बैठक में पुलिस आयुक्त हरिनारायण चारी मिश्र, कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मनीष कपूरिया,एडीएम अजयदेव शर्मा तथा अभय बेडे़कर सहित अन्य प्रशासनिक और पुलिस के अधिकारी मौजूद थे। बताया गया कि रंगपंचमी पर टोरी कार्नर महोत्सव समिति, संगम कार्नर, मॉरल क्लब, रसिया कार्नर, राधाकृष्ण फाग यात्रा, श्री कृष्ण फाग यात्रा, संस्था संस्कार, बाणेश्वर समिति, माधव फाग यात्रा आदि द्वारा गेर/फाग यात्रा निकाली जाएगी। इसके अलावा अन्य संस्थाओं द्वारा भी शहर के विभिन्न क्षेत्रों में रंगारंग गेर निकाली जाएंगी। बैठक में कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने कहा कि इंदौर की परम्परागत गेर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के लिये एक बार फिर पुरजोर प्रयास होंगे। उन्होंने आग्रह किया कि जिनके पास भी गेर के संबंध में दस्तावेज हो, वे कलेक्टर कार्यालय में जमा करा सकतें है। उन्होंने कहा कि इस बार दस्तावेजी करण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। फोटोग्राफ, वीडियो सहित अन्य दस्तावेजों का संग्रहण होगा। पुलिस आयुक्त हरिनारायण चारी मिश्र ने सुरक्षा व्यवस्था संबंधी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गेर के दौरान सीसीटीवी और अन्य माध्यमों से निगरानी रखी जायेगी। उन्होंने कहा कि यह प्रयास होंगे कि कोई भी व्यक्ति मदिरा या अन्य मादक पदार्थ पीकर गेर में शामिल नहीं हो। महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोजन के दौरान किसी के भी साथ अभद्रता का व्यवहार नहीं हो।





रंगपचंमी की गेर का इतिहास





इंदौर की यह परंपरा 300 साल से चली आ रही है, कहा जाता है कि सौ साल पहले  सामाजिक रूप से मनाने शुरुआत हुई थी। होलकर राजघराने के लोग पंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूलों और रंग-गुलाल लेकर  सड़क पर निकल पड़ते थे। रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें रंग लगा देते। इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था। यही परंपरा साल दर साल आगे बढ़ती रही। कोरोना के कारण 2020 और 2021 में आयोजन पर रोक लग गई थी। इस साल फिर वही जोश से पंचमी मनाई जा रही है।





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शहर के प्रसिद्ध कवि सत्यनारायण सत्तन ने बताया कैसे गेर की शुरूआत हुई। उन्होंने बताया पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरु हुई थी, लेकिन इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे एक दूसरे को रंग और गुलाल लगात थे। 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केशरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग मारते थे। यहां से रंग पंचमी पर गेर खलने का चलन शुरू हुआ। रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठेक करते थे। वहां इस तरह गेर खेलने  सार्वजनिक और भव्य पैमाने पर कैसे मनाएं चर्चा हुई। तब तय हुआ कि इलाके की टोरी कार्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक दूसरे पर डालेंगे और कहते हैं वहां से इसने भव्य रूप ले लिया।



 



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