मुंगावली विधानसभा सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव, यहां मुद्दों पर भारी हैं जातिगत समीकरण और दलबदल

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Rahul Garhwal
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मुंगावली विधानसभा सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव, यहां मुद्दों पर भारी हैं जातिगत समीकरण और दलबदल

ASHOK NAGAR. अशोक नगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट भी सिंधिया के प्रभाव वाली सीट है और गुना संसदीय क्षेत्र का हिस्सा। जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 से पहले तक चुनाव जीतते रहे। ये वो सीट कही जा सकती है जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा चुनाव में हार की स्क्रिप्ट लिखी गई थी। हालांकि अब सिंधिया बीजेपी में हैं और इस लिहाज से इस सीट का सियासी मिजाज बदल चुका है।



मुंगावली विधानसभा सीट का सियासी मिजाज



मुंगावली विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ और कांग्रेस के कुंदनलाल मदनलाल पहले विधायक चुने गए। इस सीट पर 1957 से 1977 तक यहां कांग्रेस का सिक्का नहीं चला बल्कि हिंदू महासभा, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीते। 1980 में कांग्रेस के गजराम सिंह यादव यहां से चुनाव जीते लेकिन कांग्रेस को अपनी जीत के लिए गजराम सिंह को तोड़ना पड़ा जो जनसंघ से पहले चुनाव जीत चुके थे। 1990 में बीजेपी के राव देशराज सिंह ने पहली बार पार्टी का खाता खोला। इसके बाद जनता ने हर 5 साल बाद पार्टी बदल दी। ये सिलसिला 2013 तक जारी रहा। 2013 में महेंद्र सिंह कालूखेड़ा ने यहां से चुनाव जीता लेकिन उनका आकस्मिक निधन हुआ, उसके बाद 2018 की शुरुआत में यहां हुए उपचुनाव और कांग्रेस के टिकट पर बृजेंद्र सिंह यादव ने चुनाव जीता। इसके बाद 2018 में जो मुख्य चुनाव हुए उसमें भी बृजेंद्र यादव ने जीत दर्ज की। 2020 में सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए तो फिर उपचुनाव हुए। इस बार भी बृजेंद्र यादव चुनाव लड़े मगर बीजेपी के टिकट पर और यहां से जीत दर्ज की।



मुंगावली विधानसभा सीट के राजनीतिक समीकरण



मुंगावली वो विधानसभा सीट है जिसके समीकरण अब बेहद बदल चुके हैं। दरअसल इसी सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने की स्क्रिप्ट लिखी गई थी। महेंद्र कालूखेड़ा के निधन के बाद जब उपचुनाव की नौबत आई तब उस समय के सांसद प्रतिनिधि केपी यादव ने सिंधिया से इस सीट पर टिकट मांगा था लेकिन बजाय केपी यादव को टिकट देने के सिंधिया ने बृजेंद्र यादव को टिकट दिया। इससे नाराज केपी यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। बीजेपी ने केपी यादव को 2018 के चुनाव में मुंगावली से टिकट दिया लेकिन यादव को जीत नहीं मिली। इसके बाद बीजेपी ने गुना लोकसभा सीट पर केपी यादव को टिकट दिया और यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मात दे दी। ये सिंधिया की राजनीति के लिए टर्निंग पॉइंट था। अब सिंधिया भी बीजेपी में हैं। केपी यादव भी और बृजेंद्र यादव भी। मुंगावली से बीजेपी किसे मैदान में उतारेगी ये तय नहीं है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं है।



मुंगावली विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण



मुंगावली सीट यादव मतदाता बाहुल्य क्षेत्र है, इसलिए यहां दोनों प्रमुख पार्टियां यादव समुदाय से आने वाले प्रत्याशियों को मैदान में उतारती हैं। 2018 के उपचुनाव में बृजेंद्र सिंह यादव के सामने राव देशराज की पत्नी बाईसाहब को मैदान में उतारा और 2018 के मुख्य चुनाव में बृजेंद्र सिंह के सामने गुना के मौजूदा सांसद केपी यादव को मैदान में उतारा था। यहां करीब 50 हजार यादव, 47 हजार एससी-एसटी वोट, 18 हजार लोधी, 9 हजार कुशवाह, 12 हजार दांगी, 6 हजार गुर्जर, 7 हजार मुस्लिम और 5 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं जो चुनाव नतीजों पर असर डालते हैं।



मुंगावली विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे



मुंगावली विधानसभा सीट पर कई सारे मुद्दे हैं। विकास सबसे बड़ा मुद्दा है। गर्मी के दिनों में पेयजल की समस्या यहां सबसे बड़ा मुद्दा बनती है। इसके साथ ही बेरोजगारी को लेकर भी जनता मुखर है। हालांकि मुंगावली में भी बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बीच मुद्दों की बजाय जातिगत समीकरण और दलबदल पर ज्यादा चर्चा होती है।



मुंगावली के लोगों, प्रबुद्धजन और पत्रकारों से बातचीत की तो कुछ और सवाल निकलकर सामने आए।



द सूत्र ने मुंगावली विधायक से पूछे सवाल




  • तीन-तीन बार चुनाव जीता, क्षेत्र के लिए क्या किया?


  • बेरोजगारी की समस्या को दूर करने क्या किया?

  • स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए क्या किया?

  • पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए क्या किया?

  • मुंगावली को स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान हुआ था क्या हुआ?



  • मुंगावली की जनता का मूड जानने के लिए क्लिक करें.. मुंगावली विधानसभा सीट पर क्या है जनता का मिजाज, आज चुनाव हुए तो कौन जीतेगा ?



    मुंगावली विधायक बृजेंद्र सिंह यादव ने क्या कहा..



    इन सब सवालों को लेकर विधायक और मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव का कहना है कि उन्होंने विकास के लिए ही पार्टी बदली थी और जो भी जनता की उम्मीदें थीं उन्हें पूरा करने की कोशिश की।



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