मध्यप्रदेश में बड़े दांव के साथ 2023 का रण जीतने की तैयारी, रुख बदलने के पीछे क्या शिवराज का बड़ा प्लान?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में बड़े दांव के साथ 2023 का रण जीतने की तैयारी, रुख बदलने के पीछे क्या शिवराज का बड़ा प्लान?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में चौथी पारी में मध्यप्रदेश के मामा के तेवर बदले बदले से हैं। कभी अपने नरम तेवर के लिए ही पहचाने जाने वाले शिवराज अपने गरम तेवरों की वजह से सुर्खियों में रहते हैं। अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान के मिजाज अचानक बदले हैं। अपनी इस पारी में शिवराज सख्त प्रशासक के साथ हिंदूवादी छवि गढ़ रहे हैं। इसकी गवाही हाल ही में लिए गए उनके फैसले और बयान दे रहे हैं चहां वो लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश लाने का फैसला हो या फिर विरोधियों के साथ माफियाओं को कड़ा संदेश देने का उनका नया अंदाज हो। 5 मार्च को 64 साल के हुए शिवराज सिंह चौहान ने क्यों अचानक मिजाज बदला है और उनमें क्या है ऐसा खास जो उनका विकल्प अब तक बीजेपी ही नहीं तलाश सकी है। दूसरे दल तो दूर की बात है।



डाउन टू अर्थ वाली इमेज



डाउन टू अर्थ सीएम की छवि रखने वाले सीएम की इमेज की बानगी एक बार फिर नजर आई। सीएम शिवराज सिंह चौहान के जन्मदिन पर ही। जब लाड़ली बहना योजना का ऐलान करते हुए शिवराज मंच से उतरकर घुटनों के बल जाकर बैठ गए। एक बार फिर कुछ ऐसा कर गुजरे जिसने लोगों को तो चौंकाया ही। एक बार फिर पार्टी और विपक्ष दोनों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या ऐसा कोई और मुख्यमंत्री कर सकेगा।



राजनीतिक तौर पर मंजे हुए खिलाड़ी शिवराज



यही अंदाज शिवराज को दूसरे राजनेताओं की कतार से अलग खड़ा करता रहा है। शिवराज अपनी सौम्य छवि के लिए जाने जाते रहे हैं। वे व्यक्तिगत तौर पर जितने सहज सरल है, राजनीतिक तौर पर वे उतने ही मंजे हुए खिलाड़ी हैं। जिसकी कसमें खाने से आज भी उन्हें जानने वाले पीछे नहीं हटते। उनके कार्यकाल में कई दिग्गज नेता पार्टी की मुख्य धारा से बाहर किए गए। कुछ उम्र के फॉर्मूले पर बाहर हो गए तो कुछ की राजनीति ही हाशिए पर आ गई। पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी यही मानते हैं कि शिवराज का एक्शन कभी हार्ड नहीं रहा, वे अपने प्रति​द्वंदियों को हाशिए पर लाने के लिए कभी मुखर नहीं दिखे। सार्वजनिक तौर पर वो सबके साथ पूरी विनम्रता से ही पेश आए, इसे शिवराज का भाग्य ही कहेंगे कि उनके मुखर विरोध करने वाले खुद ही हाशिए पर चले गए।



वोटर्स के बीच सीएम शिवराज की सौम्य छवि कायम



मतदाताओं के बीच तो आज भी उनकी सौम्य छवि कायम है। लेकिन अफसरशाही के खिलाफ उन्होंने सख्त रुख अपना लिया है। विपक्ष का ये इल्जाम हमेशा रहा कि शिवराज सरकार पर अफसरशाही हावी है। लेकिन शिवराज ने हमेशा संयम और संतुलन बनाए रखा। शायद इसलिए वो अफसरशाही के फेवरेट भी रहे। जिनके साथ बीते डेढ़ दशक में अफसर उनसे बेझिझक बात करने लगे। लेकिन इस बार उनके सख्त तेवरों ने सबको वेट एंड वॉच की स्थिति में डाल दिया है। कामकाज को लेकर सख्ती और जरा-सी चूक पर सीधी कार्रवाई, ये उनकी शैली बन गई है। अभी तक एक दर्जन अफसर उनके निशाने पर आ चुके हैं। सोर्स-सिफारिश को दरकिनार कर सीधे फैसला, वो भी ऑन स्पॉट हो रहे हैं। विकास यात्रा में मंच से निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर को हटाने का ऐलान करना, इसका सबसे सटीक उदाहरण है। ये बदले तेवर हर किसी को चौंका रहे हैं। खुद शिवराज ये कह चुके हैं कि 

इस बार अपन खतरनाक मूड में हैं। गड़बड़ करने वालों को छोड़ेंगे नहीं, फारम में है मामा।



इस बदले मूड कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं



कांग्रेस, बीजेपी या किसी भी दल के नेता से शिवराज का नाम लेकर पूछा जाए तो वो उन्हें शांत नेता के रूप में ही याद करेंगे। लेकिन इस बार शांत सीएम की जगह एंग्री सीएम बन कर शिवराज सबको चौंका रहे हैं। अपने 3 कार्यकाल में उन्होंने कई चीजों का सामना किया। वो डंपर कांड और व्यापम कांड के दाग से उबरे। अपने ही दल के कुछ ऐसे नेताओं से घिरे रहे जो दमखम रखने के साथ उन पर आरोप भी लगाते रहे या उनकी कुर्सी पर नजर जमाए रहे। लेकिन शिवराज का रुख उनके लिए भी नर्म ही रहा। पर, इस बार उनका अंदाज ए बयां कुछ और है। राजनीति से जुड़े कुछ लोग इस बदलाव की वजह पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को भी मानते हैं। हालांकि शिवराज ने कभी किसी नेता के स्टाइल को कॉपी नहीं किया। अपनी छवि उन्होंने अपने अनुसार ढाली है। लेकिन इस बार नजर आ रहे बदलावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।



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बैकफुट पर विरोधी



माफिया सुन लो रे मध्यप्रदेश छोड़ जाना, नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा 10 फीट। टांग दिए जाएंगे, बदल दिए जाएंगे- ये सारे बयान उन्हीं शिवराज चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने चौथे कार्यकाल में दिए हैं, जो अपने पिछले 3 कार्यकाल के दौरान जालीदार गोल टोपी पहनने से लेकर इफ्तार पार्टियां आयोजित करवाने, नरम छवि और बेहद भावुक अंदाज में भाषण देने के लिए जाने जाते थे। लेकिन इस बार जनता को शायद कुछ और जताने के मूड में हैं। उनके इन तेवरों से अफसरशाही  समेत विरोधी भी बैकफुट पर हैं। वैसे मध्यप्रदेश की सियासत में शिवराज उसी दिन से चौंका रहे हैं। जब से उनका नाम सीएम पद के लिए आगे बढ़ाया गया। उमा भारती के प्रचंड प्रचार के बाद बीजेपी सत्ता में आई। उन्हें पद भी मिला लेकिन सत्ता रास नहीं आई। हुबली कांड के चलते अपनी जगह वो बाबूलाल गौर को सौंपकर चली गईं। उमा भारती जितनी तेज तर्रार, मुखर और वाचाल थीं। बाबूलाल गौर उतने ही ज्यादा शांत। मुखिया पद पर बने रहने के रंगढंग समझ पाते उससे पहले ही उन्हें बदलकर ये पद शिवराज सिंह चौहान को सौंप दिया गया। बीजेपी की ख्वाहिश थी की ये पद किसी युवा नेता को सौंपा जाए और शिवराज इस कसौटी पर परफेक्ट नजर आए। 29 नवंबर 2005 को उन्होंने प्रदेश का सीएम पद संभाल लिया। वो न उमा भारती की तरह तेज तर्रार थे न बाबू लाल गौर जितना शांत। सीएम बनने के बाद वो इन दोनों के बीच की संतुलित छवि बनते नजर आए।



शिवराज का मुफीद विकल्प नहीं देख पा रही बीजेपी



इस पद पर तो वो आ चुके थे लेकिन आसपास खुद अपनों से ही घिरे थे। शांत, विनम्र और चुपचाप पार्टी के फैसले मान लेने वाले शिवराज इस पद पर कितना टिक पाएंगे इस पर संशय ही था। पहला खतरा खुद उमा भारती थीं जो अपने पद को हासिल करने के लिए जोर लगा रही थीं। आरएसएस की चहेती होने के साथ साथ वो लालकृष्ण आडवाणी की भी प्रिय थीं। इसके बावजूद उनकी दाल नहीं गल सकी। वो खुद को जिस आरएसएस का करीबी मानकर उसके एजेंडे को जोरशोर से आगे बढ़ाती हैं। शिवराज उसी विचारधारा को चुपचाप आगे बढ़ाते हैं। ये माना जाता है कि अपनी छवि को कट्टर बनाए बगैर शिवराज जो करते चले गए वो उमा भारती और बाबूलाल गौर सोच भी नहीं सके। सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखा में जाने पर लगी पाबंदी को हटाना इसी का एक उदाहरण है। इन कामों ने उनको आरएसएस का पसंदीदा बनाया। पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी उनके संबंध मधुर रहे। ये बात अलग है कि गाहे बगाहे अपने ही उनके लिए चुनौती बनते रहे। डंपर कांड में उनका और उनके परिवार का नाम आया तो कुर्सी पर भी संकट मंडराने लगा। उस वक्त अटकलें लगीं कि सीएम फेस बदला जाएगा। इन अटकलों के बीच कैलाश विजयवर्गीय जैसे कुछ वरिष्ठ विधायक सीएम बनने की कोशिश भी करने लगे। लेकिन शिवराज खामोश रहे। उसी खामोशी के साथ उन्होंने पार्टी के भीतर पनप रहे विरोध को खत्म किया। न सिर्फ डंपर कांड बल्कि व्यापम कांड से भी वो इसी शांति के साथ बाहर आए। चुनौतियां तीसरे और चौथे कार्यकाल में भी खूब रहीं। उनकी कैबिनेट में शामिल गोपाल भार्गव और नरोत्तम मिश्रा जैसे नेता ही उनके धुरविरोधी माने जाते हैं। अब भी जब सीएम फेस बदलने  की अटकलें लगती हैं तो नरोत्तम मिश्रा और उनके अलावा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का नाम लिया जाता है। हाल ही में दिल्ली दौरा हुआ तो फिर कहा गया कि अब सीएम की छुट्टी होना तय है। लेकिन शिवराज लौटे तो कंधे गेती और आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ किसी बाहुबली की तरह नजर आए। उनके इस जैश्चर से मैसेज साफ था कि विरोधियों की तमन्ना पूरी नहीं हो सकी है। उसकी एक वजह ये भी है कि एक झटके में सीएम का चेहरा बदल देने वाली बीजेपी भी प्रदेश में शिवराज का मुफीद विकल्प नहीं देख पा रही है।



2023 में दांव पर शिवराज की मामा वाली इमेज



शिवराज सिंह अपनी पुरानी लय में नया ट्विस्ट लाकर उसी तरह आगे बढ़ते जा रहे हैं। लाडली लक्ष्मी और कन्या विवाह जैसी फ्लैगशिप योजना के जरिए मामा और भाई की जो इमेज उन्होंने गढ़ी है, लाड़ली बहना योजना से उसे फिर और भी ज्यादा मांज रहे हैं। सीएम शिवराज देश के उन चुनिंदा मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जिनकी उम्र से ज्यादा सत्ता में उनके रिकॉर्ड की गिनती होती है। एमपी में इतना लंबे चलने वाले वो पहले सीएम हैं। लाड़ली लक्ष्मी, कन्या विवाह और तीर्थ दर्शन जैसी योजनाओं को दूसरे प्रदेश भी फॉलो कर रहे हैं। बिना कैबिनेट के सबसे ज्यादा दिन अकेले सीएम रहने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है। और अब वो रोजाना एक पेड़ लगाकर नया रिकॉर्ड बना चुके हैं। मध्यप्रदेश में सत्ता की पिच पर लंबे समय तक टिके रहने के लिए शिवराज ने कई अलग अलग शॉट खेले हैं। लेकिन उनका मास्टर स्ट्रोक उनकी मामा वाली इमेज ही रही। जिसे एक बार फिर उन्होंने लाड़ली बहना के नए रंग-रोगन के साथ पेश कर दिया है। 2023 में शिवराज की यही इमेज एक बार फिर दांव पर होगी।


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