BHOPAL. मंत्री पद की लूट है, लूट सके तो लूट, चुनाव काल आया है तू पीछे मत छूट- बस यूं समझ लीजिए कि मध्यप्रदेश में धड़ल्ले से मंत्री पद की रेवड़ी बंट रही है। जीत की खातिर जो पैंतरा बीजेपी सरकार ने 2018 में चला था, अपनों को अपना बनाए रखने के लिए वही पैंतरा फिर चल रही है। लेकिन 2018 में पार्टी का क्या हाल हुआ था ये किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी का हाल ये है कि 20 साल की सरकार में जो सत्ता सुख से छूटा है वो नाराज है। सरकार की स्थिति ये है कि एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है।
दीपक जोशी के पाला बदलने से माहौल गर्म
बीजेपी के दिग्गज नेता रहे दीपक जोशी के पाला बदलने के बाद बीजेपी का माहौल गर्मा गया है। बीजेपी लाख कोशिश कर जिस पोर्टल को बंद रखना चाहती थी। उसे दीपक जोशी के पावर शो ने खोल दिया है। जिसे देखने के बाद खुद कमलनाथ कह चुके हैं कि ये तो बस ट्रेलर है। पूरी पिक्चर की लंबाई 5 महीने की भी हो सकती है। कांग्रेस की इस फिल्म को फ्लॉप करने के लिए बीजेपी सरकार अब एड़ी*चोटी का जोर लगा रही है। रूठों को मनाने के लिए सबसे पहला दांव चला है मंत्री पद बांटने का।
मंत्री और राज्य मंत्री का पद बांटा जा रहा
कथा खत्म होने के बाद जिस तरह प्रसाद बंटता है उसी तरह मध्यप्रदेश में मंत्री और राज्य मंत्री का पद बांटा जा रहा है। हालात ये हैं कि शिवराज कैबिनेट में जितने मंत्री हैं उससे कहीं गुना ज्यादा नेता बिना कैबिनेट और जिम्मेदारी के मंत्री दर्जा लिए घूम रहे हैं। ऐसे नेताओं की संख्या 70 बताई जा रही है और अब ये अटकलें हैं कि 3 दर्जन और मंत्री पद बांटे जाने वाले हैं। अप्रैल महीने में 7 दिन के अंतराल में तकरीबन 12 मंत्री और राज्य मंत्री पद बांटे गए। उससे कुछ दिन पहले 8 लोगों को इन पदों से नवाजा गया था। ये सिलसिला आगे भी जारी रहने वाला है। फिलहाल बगावत की आग को ठंडा करने के लिए शिवराज सरकार को यही एक जुगत नजर आ रही है।
मंत्री पद मिलने पर सुविधाएं
मंत्री पद पाने वाले नेताओं को 25 हजार से 1 लाख रुपए प्रतिमाह का भत्ता मिलता है। इन्हें एक कार और प्रति माह न्यूनतम 100 लीटर डीजल मिलता है। मंत्री का दर्जा प्राप्त इन लोगों को राजधानी में आवास और कार्यालय या उसका किराया भी सरकार देती है। स्टाफ के तौर पर एक प्यून, एक क्लर्क, एक निजी सहायक तैनात रहता है। इसके अलावा इन्हें सरकारी गेस्ट हाउस में रुकने की सुविधा, टोल प्लाजा पर छूट, दौरों में मिलने वाला प्रोटोकाल भी मिलता है। सारी लड़ाई इन्हीं सुख-सुविधाओं की है जिसका फायदा चुनावी साल में हर नेता उठाने की फिराक में है। सरकार के सामने भी हालात मरता क्या न करता वाले हैं। जो जीत की गरज से हर बगावती चेहरे को खामोश रखना चाह रही है, लेकिन शिवराज सरकार को ये याद कर लेना जरूरी है कि सरकार की ये कोशिश 2018 में बुरी तरह फेल हुई थी।
इन्हें मिला कैबिनेट मंत्री का दर्जा
- मध्य प्रदेश राज्य विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्द्धघुमक्कड़ जाति अभिकरण के अध्यक्ष बाबूलाल बंजारा
2018 का फॉर्मूला दोहरा रही बीजेपी
साल 2018 में चुनाव से पहले शायद बीजेपी को ये इल्म हो चुका था कि नेताओं की नाराजगी नैया डुबा देगी। उस वक्त सत्ता में बने रहने के लिए पार्टी ने जमकर मंत्री और राज्यमंत्री पद बांटे थे। तत्कालीन सरकार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा 31 मंत्री थे, लेकिन इससे अलग 35 मंत्री, 58 राज्यमंत्री मिलाकर कुल 93 लोग शामिल थे। राज्य सरकार ने नर्मदा किनारे पौधरोपण और जल संरक्षण की जनजागरुकता के लिए गठित समिति में 5 बाबाओं को सदस्य बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा देकर उन्हें भी नवाजा था। इनमें कंप्यूटर बाबा, पंडित योगेंद्र महंत, नर्मदानंदजी, हरिहरानंदजी और भय्यूजी महाराज के नाम शामिल थे। कंप्यूटर बाबा और पंडित योगेंद्र महंत ने 'नर्मदा घोटाला रथ यात्रा' निकालने की धमकी दी थी, लेकिन राज्यमंत्री का दर्जा मिलते ही उनके सुर बदल गए थे। सुर तो बदले थे, लेकिन हार जीत में नहीं बदल सकी थी। फिर इस बार बीजेपी किस उम्मीद से यही पैंतरा दोहरा रही है।
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सरकार को भारी पड़ती है मुफ्त की रेवड़ी
ये पद जिसे मिला उसके लिए तो मुफ्त की रेवड़ी है, लेकिन सरकार को ये बहुत भारी पड़ते हैं। ऐसे नेताओं के नखरे और ऊपर से उन्हें दी जाने वाली सुख सविधाओं का बोझ कितना होता है इसका अंदाजा उन्हें मिलने वाली सहूलियतों को जानकर हो ही चुका होगा। इस बार भी ये संख्या 3 डिजिट का आंकड़ा छूती नजर आ रही है। क्या पावर वाले पदों का ये बाट बीजेपी के तराजू पर रूठे हुए नेताओं का पलड़ा हल्का कर सकेगा। फिलहाल खबर 3 दर्जन नेताओं को साधने की आ रही है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि चुनाव के करीब आने तक ये गिनती और लंबी नहीं होगी।
एक अनार और बीमारों की गिनती ही नहीं
बीजेपी के साथ दिक्कत ये है कि बीजेपी के पास अनार एक है और बीमारों की तो कोई गिनती ही नहीं है। कहीं ऐसा ना हो कि बंटते-बंटते अनार के दाने खत्म हो जाएं और बीमार, बीमार ही बने रहें। ऐसा हुआ तो तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी के लिए बगावत से निपटना आसान नहीं होगा। चुनावी साल में रेवड़ी की तरह बंट रहे पद किसी भी बागी की तलब जगा सकते हैं। कहीं ऐसा ना हो जाए कि रेवड़ियां खत्म हो जाएं, लेकिन उन्हें चाहने वालों की गिनती बढ़ती ही चली जाए और खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़े।