BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनाव अब दूर नहीं और इस चुनावी रण में सीएम शिवराज सिंह चौहान अकेले ही योद्धा नजर आ रहे हैं। अकेले से ज्यादा वो अपनी इमेज को लेकर कुछ कन्फ्यूज से भी नजर आते हैं। मोदी और योगी बनने के चक्कर में वो अपने पांव-पांव वाले भईया की इमेज को भुलवा चुके हैं। जनता के बीच वो सख्त बनने को कोशिश कर रहे हैं। असल आलम ये है कि मंत्री अपनी जिम्मेदारी संभाल लें। इसके लिए उन्हें दावतें देनी पड़ रही हैं।
बदले-बदले से सीएम शिवराज
पिछले कुछ दिनों से जनता के बीच जा रहे शिवराज सिंह चौहान बदले-बदले नजर आ रहे हैं। अब तक वो हमेशा मामा और पांव-पांव वाले भईया की छवि लेकर लोगों तक पहुंचते रहे। इस बार जब लोगों के बीच पहुंच रहे हैं तो अपनी पुरानी छवि से इतर सख्त बनने की कोशिश में हैं। कभी वो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तरह ऐलान करते हैं कि लव-जिहाद नहीं होने दूंगा। कभी पीएम नरेंद्र मोदी की तरह हुंकार भरते हैं कि जो जनता का पैसा खाएंगे, बख्शे नहीं जाएंगे और कभी फैसला ऑन द स्पॉट सुना रहे हैं। सीएम तो फुलऑन एनर्जी के साथ मैदान में हैं। पर सवाल ये है कि उनके मंत्री कहां हैं। क्यों, हर विभाग, हर जिले, हर कार्यक्रम में सीएम अकेले ही नजर आ रहे हैं। सीएम वाकई अकेले पड़ गए हैं या खुद सीएम की कोशिश है कि पूरे चुनावी समर में वो ही छाए रहें।
18 सालों से सीएम शिवराज के सिर पर सत्ता का ताज
बीजेपी की सरकार को मध्यप्रदेश पर काबिज हुए 20 साल पूरे होने वाले हैं। खुद सीएम शिवराज के सिर सत्ता का ताज 18 साल से सजा हुआ है। उसके बावजूद उन्हें अपना उड़नखटोला लेकर अनियमितताएं खत्म करने निकलना पड़ रहा है। इस पूरे चुनावी समर में वो सरप्राइज एलिमेंट लेकर उतरे हैं। कभी भी किसी भी जिले में औचक निरीक्षण के लिए पहुंच रहे हैं। जिस सूबे के वो डेढ़ दशक से सरकार हैं, वहां अनियमितता और लापरवाहियों का आलम ये है कि खुद वो कभी किसी अधिकारी को निलंबित करते हैं और कभी जनता के बीच सजा सुनाते हैं।
मिशन पर अकेले निकले सीएम शिवराज
स्टेज पर भी सीएम का अंदाज कुछ बदला-बदला-सा है। अब वो मंच पर एक जगह खड़े होकर भाषण नहीं देते। बल्कि किसी मैनेजमेंट गुरु की तरह घूम-घूमकर लोगों से मुखातिब हो रहे हैं। अपनी छवि को लेकर सीएम तो कन्फ्यूज हैं ही। सबसे ज्यादा चौंकाता है उनका इस पूरे मिशन पर अकेले निकलना। उनके किसी कार्यक्रम में संबंधित मंत्री या जिले का प्रभारी मंत्री साथ नजर नहीं आता। पूरी कैबिनेट इत्मीनान से अपने कमरों में बैठी है या सीएम खुद अपने ही चेहरे को हाइलाइट करना चाहते हैं।
मंत्री गायब, सीएम के सिर पर मिशन 2023 की जिम्मेदारी
मिशन 2023 में जीत की पूरी जिम्मेदारी सीएम के सिर ही नजर आ रही है। मंत्रियों का फील्ड में निकलना तो दूर वो अपने प्रभार वाले जिलों तक में नहीं जा रहे। मंत्रियों के चेहरे तो गायब हैं ही कभी कांग्रेस की जीत का पोस्टर बॉय बन चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे। उपचुनाव तक पूरे प्रदेश में सक्रिय दिखे सिंधिया का दायरा अब ग्वालियर-चंबल तक सिमटकर रह गया है। फिलहाल वहां भी उनकी मौजूदगी नदारद है। अब हालात ये हैं कि 15 दिन के अंदर ही सीएम को दो-दो बार मंत्रियों को डिनर देना पड़ा और अपने प्रभार वाले जिलों में जाने के लिए रिक्वेस्ट करनी पड़ी। पर इसकी नौबत ही क्यों आई।
डिनर पॉलिटिक्स एक आम सियासी दांव
चुनाव जितने नजदीक हैं उसे देखते हुए होना तो ये चाहिए कि न सिर्फ सीएम बल्कि पूरी कैबिनेट मैदान में डटी हुई नजर आना चाहिए। लेकिन बीजेपी का तो पूरा मैदान ही खाली नजर आ रहा है। सीएम सभाओं में जा रहे हैं, एक कलेवर में खुद को पेश कर रहे हैं। दूसरी तरफ उनके मंत्री हैं जो फील्ड में निकल ही नहीं रहे। पूरे मैदान में सीएम शिवराज अलग-थलग और अकेले दिखाई दे रहे हैं। हालात ये हैं कि कैबिनेट की बैठक के बाद सीएम को अपने मंत्रियों को डिनर देना पड़ रहा है। वैसे डिनर पॉलिटिक्स एक आम सियासी दांव है। लेकिन इस डिनर में मंत्रियों से चर्चा कर ये फैसला हुआ कि सभी मंत्री दिसंबर में 2 बार अपने प्रभार वाले जिलों में जाएंगे। ये काम तो खुद मंत्रियों को करना चाहिए इसके लिए डिनर की जरूरत ही क्यों पड़ी।
क्या सबको पीछे रखना चाहते हैं सीएम शिवराज
मंत्रियों में नाराजगी है या खुद सीएम उन्हें पीछे रखना चाहते हैं। ये एक बड़ा सवाल है। दूसरा सवाल ज्योतिरादित्य सिंधिया पर है। जिनके युवा चेहरे और ऊर्जा का कहीं कोई इस्तेमाल होता नहीं दिख रहा। सिंधिया को चुनावी मैदान से दूर रखा गया है या ये फैसला उनका खुद का है। इस पर भी मंथन जरूरी है। क्या सबको पीछे रख सीएम अपनी बदली हुई स्टाइल से ही चुनावी रण जीत लेंगे। इस बदली शैली पर कांग्रेस भी चुटकी लेने से बाज नहीं आई।
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2018 के पहले दिखा था यही हाल
यही हाल 2018 के चुनाव से पहले भी दिखा था। उस चुनावी समर में भी सीएम निहायती अकेले दिखे थे। नतीजे किसी से छुपे नहीं रहे। दुश्मन दल प्रदेश की सत्ता में सेंध लगाने में कामयाब हुए। हालात इस बार उससे भी ज्यादा बुरे नजर आते हैं। बार-बार ताकीद करने के बावजूद मंत्रियों ने मोर्चा नहीं संभाला है। क्या अकेले ही सीएम चुनावी मैदान मार सकेंगे।
आखिर क्या है बीजेपी की चुनावी रणनीति
बीजेपी की रणनीति को फिलहाल समझ पाना मुश्किल है। ये साफ हो चुका है कि जिस तरह दूसरे प्रदेशों में पीएम के फेस पर चुनाव हो रहे हैं, एमपी में भी उसी तरह होंगे लेकिन मंत्रियों की सुस्ती चौंकाने वाली है। सरकार में ऐसे कौनसे मतभेद हैं जो सीएम के साथ कोई चेहरा दिखाई नहीं दे रहा। क्या अपनी फौज के बिना मोदी का चेहरा इस चुनावी मैदान में जीत के झंडे गाड़ पाएगा।