इंदौर में सीएम शिवराज ने कांग्रेस को राजवाड़ा बेचने, जलाने और गिराने वाला बताया, कांग्रेस जवाब में ले आई सिंधिया घराना

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Rahul Garhwal
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इंदौर में सीएम शिवराज ने कांग्रेस को राजवाड़ा बेचने, जलाने और गिराने वाला बताया, कांग्रेस जवाब में ले आई सिंधिया घराना

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजवाड़ा के रेनोवेशन के लोकार्पण के साथ ही कांग्रेस को जमकर घेरा। उन्होंने कांग्रेस को राजवाड़ा बेचने, जलाने और गिराने वाला बताया। उधर कांग्रेस ने अब इसका पलटवार करते हुए सिंधिया घराने को आगे कर दिया है।





कांग्रेस ने सिंधिया को लेकर किया पलटवार





कांग्रेस के पदाधिकारी राकेश यादव ने इस मामले में ट्वीट करते हुए कहा कि सिंधिया जी सीएम को सच बताएं कि राजवाड़ा को सर्वप्रथम आग के हवाले करने का श्रेय सन 1801 में तत्कालीन महाराजा सिंधिया के सेनापति सरजेराव घाटगे को जाता है। तब राजवाड़ा के एक बड़े हिस्से को जलाकर राख कर दिया गया था, वैसे ही जैसे आपने लोकतांत्रिक व्यवस्था को खाक किया है।





क्या है मुख्यमंत्री का आरोप





सीएम शिवराज ने सोमवार को राजवाड़ा पर हुई सभा में कहा कि एक जमाने में जब कांग्रेस की सरकार थी तो कांग्रेस ने राजवाड़ा को बेचने का फैसला कर लिया था। इस ऐतिहासिक विरासत को कांग्रेस ने सड़ा डाला, लेकिन कांग्रेस के कानों में जूं नहीं रेंगी थी। वे इसे बेचने की कोशिश करते हैं, जलाने की कोशिश करते हैं और सड़ाने की भी कोशिश करती है और बीजेपी इसे पुराना वैभव दिलाने की कोशिश करती है। यही बीजेपी और कांग्रेस में अंतर है।





कब हुई राजवाड़ा को बेचने की कोशिश





1976 में कांग्रेस के तत्कालीन सीएम श्यामाचरण शुक्ल के समय राजवाड़ा और इसके आसपास के एरिया को कमर्शियल हब के रूप में विकसित करने का फैसला लिया। इसके एरिया और खाली जगह को बेचने का प्रस्ताव बना, लेकिन इस फैसले के खिलाफ विधायक और पूर्व महापौर सुरेश सेठ अपने ही सरकार के खिलाफ हो गए। उनके नेतृत्व में इंदौर में जन आंदोलन हुआ। सेठ ने कहा कि वहां से एक पत्थर भी नहीं हटेगा ना बिकेगा। इसके बाद ये फैसला वापस हुआ।





सिंधिया के सेनापति ने क्यों और कब जलाया राजवाड़ा







  • साल 1765 में राजवाड़ा बनकर तैयार हुआ। इतिहास में दर्ज है कि 2 जुलाई 1801 को यशवंतराव ने सिंधिया की राजधानी उज्जैन पर आक्रमण कर उसे लूट लिया। 1802 में सिंधिया के सेनापति सरजेराव घाटगे ने प्रतिशोध स्वरूप इंदौर पर आक्रमण कर दिया। राजवाड़ा के दक्षिणी ओर महानुभाव पंथ का मंदिर था और घाटगे उनका अनुयायी था। इस कारण उसने दक्षिणी भाग को छोड़कर राजवाड़ा जलाकर नष्ट कर दिया। 1811 में यशवंतराव की मृत्यु हो गई और राजवाड़ा का निर्माण फिर अधर में रह गया।



  • 1818 में हुई मंदसौर संधि की शर्त के अनुसार होलकरों ने इंदौर को राजधानी बनाया। होलकर परिवार यहां आ गया। 1818 से 1833 के बीच मल्हारराव के शासन काल में उनके प्रधानमंत्री तात्या जोग ने पुन: राजवाड़ा का निर्माण कार्य शुरू किया, जो हरिराव (1834-1843) के शासन काल में पूर्ण हुआ।






  • दूसरी बार साल 1834 में जला राजवाड़ा





    साल 1834 में राजवाड़ा में फिर अग्निकांड हुआ और लकड़ी से बनी इसकी एक मंजिल जलकर नष्ट हो गई। खांडेराव (1843-1844) की मृत्यु के बाद तुकोजीराव (द्वितीय) को गोद लिया गया और होलकर वंश का प्रथम राजतिलक राजवाड़ा में किया गया। तब इस भवन को फिर सुधारा गया।





    आजादी के बाद 1984 के दंगों में जला राजवाड़ा





    आजादी के बाद 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में राजवाड़ा फिर अग्निकांड की भेंट चढ़ गया। इसका मुख्य प्रवेश द्वार वाला सामने का भाग और गणेश हॉल के कुछ हिस्सा छोड़कर सबकुछ जल गया। तब तत्कालीन कलेक्टर अजीत जोगी जो बाद में छत्तीसगढ़ सीएम बने, उन्होंने मौके पर पहुंचकर खुद फायर ब्रिगेड को संभालते हुए आग बुझाने की कोशिश की थी। साल 2006 में इंदौर की उषादेवी होलकर ने इसका पुर्ननिर्माण करवाया और सन 2007 में ये काम पूर्ण हुआ।





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    राजवाड़ा गिराने और सड़ाने का मामला





    साल 2018 में बारिश के दौरान राजवाड़ा का एक हिस्सा धराशाई हो गया था। तब कांग्रेस की सरकार भी बनी, लेकिन उस समय राजवाड़ा को लेकर कोई बड़ा काम नहीं हुआ। इसके बाद बीजेपी सरकार जब लौटी तो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत राजवाड़ा के जीर्णोद्धार को प्राथमिकता से लेकर काम शुरू हुआ। इस दौरान पता चला कि ऊपर की 4 मंजिल जो सागौन लकड़ी से बनी है, वो पूरी तरह से सड़ चुकी है, इनकी हालत खराब है। आखिर में नए सिरे से पूरा काम करने का फैसला हुआ और ऊपरी मंजिलों को भी सुधारा गया। दीवारों को नट-बोल्ट से कसा गया। इस दौरान 30 टन लोहे की जंजीरों से राजवाड़ा बंधा रहा और सुधार का काम होता रहा। आखिर में लंबे इंतजार और काम के बाद राजवाड़ा पुराने वैभव के साथ फिर सीना तानकर खड़ा है।





    राजवाड़ा का इतिहास





    ये एक राजशाही महल है। साल 1747 में मल्हारराव प्रथम ने राजवाड़ा के निर्माण की शुरुआत की। 6174 वर्ग मीटर जमीन पर राजवाड़ा संगमरमर, लकड़ी, ईंट और मिट्टी का फ्रेंच, मुगल और मराठा आर्किटेक्ट से बनी भव्य और खूबसूरत इमारत है। 1761 में मल्हारराव प्रथम के समय राजवाड़ा का निर्माण कार्य रुका रहा। 1765 के बाद राजवाड़ा बनकर तैयार हुआ था। इस दौरान मां अहिल्याबाई ने कामकाज संभाला था। राजवाड़ा 7 मंजिला महल है। नीचे की तीन मंजिल मार्बल की बनी हैं और ऊपरी 4 मंजिलों को सागौन की लकड़ी से बनवाया गया था। राजवाड़ा का प्रवेश द्वार 6.70 मीटर ऊंचा है। ये द्वार हिंदू शैली के महलों की तर्ज पर बना है। होलकरों का दरबार हॉल जिसे गणेश हॉल कहा जाता है, वो फ्रेंच शैली का अप्रतिम नमूना है। राजवाड़ा के ठीक सामने एक सुंदर बगीचा है जिसके बीच में महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा स्थापित है।



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