GWALIOR. मप्र की ग्वालियर पूर्व वो विधानसभा सीट है जहां से संचालित होती है ग्वालियर की राजनीति। ये वीआईपी सीट है। इसी विधानसभा क्षेत्र में है सिंधिया का जयविलास पैलेस, इसी विधानसभा में है मोती महल जहां बैठते हैं प्रशासनिक अधिकारी। साथ ही यहां ग्वालियर के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बंगले हैं। यानी एक तरह से ग्वालियर की सियासत का केंद्र इस सीट को कहा जा सकता है। इस सीट को अब तक बीजेपी का गढ़ कहा जाता था लेकिन उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ने सेंध लगा दी है...
सियासी मिजाज
ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट वैसे तो 2008 में अस्तित्व में आई लेकिन इससे पहले ये मुरार विधानसभा सीट का हिस्सा थी। 1957 के चुनाव में ग्वालियर की शहरी इलाके की तीन सीटें थी। लश्कर, मुरार और ग्वालियर। 1957 के चुनाव में कांग्रेस की चंद्रकला ने मुरार सीट जीतीं थी इसके बाद कांग्रेस ने 1962, 1972. 1980 और 1993 के चुनाव में इस सीट पर कब्जा जमाया लेकिन 1985 से बीजेपी ने यहां जीत का सिलसिला शुरू किया 1990 के चुनाव में भी बीजेपी जीती इसके बाद 1998 और 2003 में मुरार सीट पर ध्यानेंद्र सिंह जीते। ध्यानेंद्र सिंह चार बार यहां से विधायक रहे। 2008 में अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा ने लश्कर ईस्ट की बजाए ग्वालियर ईस्ट से चुनाव लड़ा और 2013 में भी जीत दर्ज की लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल ने इस सीट से चुनाव जीता...
सियासी समीकरण
ग्वालियर पूर्व वो सीट है जहां दलबदल हुआ है। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मुन्नालाल गोयल सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और जब उपचुनाव हुआ तो ये सीट कांग्रेस के ही खाते में रही लेकिन यहां बड़ा उलटफेर हुआ। दरअसल 2018 में मुन्नालाल गोयल ने बतौर कांग्रेस कैंडिडेट बीजेपी के सतीश सिंह सिकरवार को हराया था। 2020 में जब उपचुनाव हुआ तो मुन्नालाल गोयल बीजेपी के कैंडिडेट थे और सतीश सिकरवार कांग्रेस के कैंडिडेट। लोगों ने कैंडिडेट की बजाए पार्टी को ही वोट दिया। अब हालात ये है कि सतीश सिकरवार फिर से इस सीट से कांग्रेस के दावेदार है अब बीजेपी में एक अनार सौ बीमार वाले हालात है। अनूप मिश्रा फिर से चुनाव लड़ने के मूड में है सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल दावेदार है ही।
जातिगत समीकरण
ग्वालियर पूर्व सीट पर वैसे तो जातिगत मुद्दे उतने कारगर नहीं है मगर सिंधिया घराने का गढ़ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में ओबीसी, ब्राह्मण और वैश्य समुदाय निर्णायक भूमिका में रहता है।
ग्वालियर की सबसे वीआईपी सीट पर बिकाऊ, टिकाऊ का मुद्दा, सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर
ग्वालियर पूर्व की सीट शहर की सबसे वीआईपी सीट मानी जाती है। यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार से लेकर नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, सतीश सिकरवार समेत सभी आईएएस,आईपीएस रहते हैं। इस सीट से ही ग्वालियर चम्बल अंचल की सियासत तय होती है। यही कारण है कि इस सीट पर सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उनके समर्थक मुन्नालाल गोयल को कांग्रेस के सतीश सिकरवार ने उपचुनाव में हराया है। यहां पर बिकाऊ और टिकाऊ का मुद्दा बना हुआ है। यह सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती थी लेकिन बीजेपी से कांग्रेस में आये सतीश सिकरवार ने इसमें सेंध लगा कांग्रेस को जिता दिया। उनकी पत्नी शोभा सिकरवार ने 57 साल बाद नगर निगम में कांग्रेस का परचम फहराया। माना जा रहा है कि ये जीत कांग्रेस की नहीं सतीश सिकरवार की जीत है। 2023 में सिकरवार के सामने कई चुनोतियां हैं।
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