कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस में उत्साह जरूर, लेकिन सरकार विरोधी लहर और बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी पर ज्यादा भरोसा

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Jayant Singh Tomar
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कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस में उत्साह जरूर, लेकिन सरकार विरोधी लहर और बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी पर ज्यादा भरोसा

BHOPAL. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के 6 महीने और बचे हैं। इन 6 महीनों में सभी राजनीतिक दल अपने अपने ढंग से बेहतर से बेहतर प्रदर्शन के लिए कवायद और कसरत करेंगे। बहुत से बिंदुओं के आधार पर विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन 2 बातें सभी समीकरणों में उलटफेर करेंगी। पहली बात तो यह कि कौन पार्टी किसे कहां से टिकट देती है। दूसरी बात कौन सी पार्टी प्रत्याशियों की सूची पहले जारी करती है।



मुकाबला सिर्फ बीजेपी-कांग्रेस के बीच नहीं



अगर 230 विधानसभा सीटों पर मुकाबला केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच हो तब आकलन करना कुछ हद तक सहज हो जाता है। चुनावों की दशा और दिशा इस बात पर भी निर्भर करती है, बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कौन से दल कितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने जा रहे हैं। ऐसे दलों में जयस, आप, बसपा, सपा, भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी, समाजवादी नेता रघु ठाकुर की लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, सहित निर्दलीय उम्मीदवार भी सम्मिलित हैं। कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस उत्साह में जरूर है, लेकिन वह अब भी सरकार विरोधी लहर और बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी के भरोसे पर ही ज्यादा है। कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की जोड़ी प्रदेशभर के दौरे कर रही है, लेकिन यह कह पाना कठिन है कि अजय सिंह राहुल, कमलेश्वर पटेल, डॉ. गोविंद सिंह, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया, जयवर्धन सिंह और नकुलनाथ आदि अपने-अपने क्षेत्रों में कितना असर छोड़ पाते हैं।



बीजेपी के चुनाव अभियान का आगाज



बीजेपी का जून में 1 माह का देशव्यापी महासंपर्क अभियान मध्यप्रदेश में बीजेपी के चुनाव अभियान का आगाज है। इसका लाभ पार्टी को मध्यप्रदेश में मिलने की संभावना है। समूची बीजेपी और उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी आनुषंगिक संगठनों को यह महाअभियान एकजुट करेगा और जहां-जहां असंतोष है उसे दूर करने का प्रयास करेगा। बीजेपी ने अपने वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की भी पूछ परख शुरू कर दी है, जिनकी लंबे समय से कोई खोज-खबर नहीं ली गई थी। कांग्रेस ने भी अपने राष्ट्रीय नेताओं के कार्यक्रम बनाना शुरू कर दिए हैं और प्रदेश के नेताओं को अलग-अलग क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंप दी है।



मध्यप्रदेश में चुनावी वादे



चुनावी वादों की अगर बात करें तो कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने, जातिगत जनगणना कराने, नारी सम्मान योजना के तहत हर माह महिलाओं को 1200 रुपए, 500 रुपए में घरेलू गैस सिलेंडर, 100 यूनिट बिजली माफ और 200 यूनिट हाफ के साथ विधानसभावार वचन पत्र बनाने की घोषणा की है। बीजेपी लाड़ली बहना योजना में ही सबसे ज्यादा चमत्कार की उम्मीद कर रही है।



बीजेपी के सामने 2 बड़ी चुनौतियां



बीजेपी के सामने 2 बड़ी चुनौतियां हैं। पहली है 'महाराज भाजपा ' से पार पाना। दूसरी है 'नाराज भाजपा' को मनाना। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के लिए ज्यादा से ज्यादा टिकट मांग रहे हैं। अगर सिंधिया के हिसाब से ग्वालियर, चंबल, मालवा और सागर में टिकट देते हैं तो बीजेपी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ता घर बैठ सकते हैं। यह भी बिलकुल जरूरी नहीं कि सिंधिया जिन्हें टिकट देने पर अड़ेंगे वे चुनाव जीत ही जाएं। दूसरी ओर महाकौशल, विंध्य, बुन्देलखंड, मालवा, निमाड़, और ग्वालियर-चंबल में भी बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रदेश के मौजूदा नेतृत्व से भारी नाराज हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी का कांग्रेस में जाने का एक कारण हाटपीपल्या में सिंधिया समर्थकों को आगे बढ़ाना रहा है। महाकौशल में अजय विश्नोई तो शुरू से नाराज थे, इधर विजयराघवगढ़ के ध्रुव नारायण सिंह ने कहा है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कभी कोई काम नहीं दिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के भांजे ने ऐलान कर दिया है कि वे ग्वालियर दक्षिण से चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी अगर टिकट नहीं देगी तो वे किसी और पार्टी से या निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं। विंध्य में असंतोष इस बात का है कि बीजेपी की जितनी सीटें यहां से आईं, उस अनुपात में मंत्रिमंडल में नुमाइंदगी नाम मात्र की रही। विंध्य क्षेत्र में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो सभा हुई हैं वे कितना असर छोड़ेंगी यह कह पाना कठिन है।



बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ पार्टी में असंतोष



पिछले दिनों मुख्यमंत्री और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ पार्टी में असंतोष देखा गया है। सागर अंचल से 3 मंत्री हैं भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव और गोविंद राजपूत। भूपेंद्र सिंह की ही अंचल में चलती है। इसके खिलाफ बाकी दोनों मंत्री और कुछ विधायक मुखर हुए। नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय की प्रह्लाद पटेल से भेंट अचानक सुर्खियों में आई। कयास लगाए गए कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विकल्प तलाशने की कोशिश हो रही है, लेकिन बिना सम्मानजनक स्थान दिए चुनाव के ऐन पहले ऐसा कोई निर्णय शायद ही करे। फिलहाल इस बात की संभावना जरूर है कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बीजेपी चुनाव संचालन समिति की बागडोर सौंप सकती हैं। शिवराज सिंह के साथ उनका बेहतर तालमेल और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र सिंह तोमर के अनुभव और स्वीकार्यता का लाभ पार्टी ले सकती है। जयस जिस तरह से कांग्रेस के साथ जाती हुई दिख रही है उसे ध्यान में रखते हुए बीजेपी राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी को आदिवासियों में सक्रिय करने के लिए कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दे सकती है। राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह भी बीजेपी की राजनीति में अचानक प्रासंगिक हो सकते हैं।


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