देव श्रीमाली , GWALIOR. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा कांग्रेस की विचारधारा को गद्दार विचारधारा कहे जाने के बाद से कांग्रेस ने सिंधिया के खिलाफ विरोध का मोर्चा खोल दिया है। जहां ट्वीटर पर जयराम रमेश और सिंधिया के बीच वाद-प्रतिवाद चल रहा है> वहीं मीडिया में भी दोनों के बीच जंग छिड़ी हुई है। इस बीच ग्वालियर में एनएसयूआई ने सराफा बाजार स्थित शहीद अमरचंद बांठिया की प्रतिमा स्थल पर पहुंचकर उनकी प्रतिमा को शुद्धिकरण करने का कार्य किया। अमरचंद बांठिया को सिंधिया रियासत काल में अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था। तभी से उन्हें शहीद का दर्जा मिला है। उनकी मौत के लिए सिंधिया रियासत काल को जिम्मेदार ठहराया जाता है। ऐसे में एनएसयूआई द्वारा सिंधिया को जवाब देने के लिए शहीद की प्रतिमा पर पहुंचकर प्रदर्शन किया गया।
कौन थे अमरचंद बांठिया
1857 में जब वीरांगना लक्ष्मी बाई के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का पहला बिगुल बजाया गया था और रानी झांसी से लड़ते हुए ग्वालियर पहुंची थी तब सिंधिया राज के खजांची अमरचंद बांठिया थे। हालांकि> रानी झांसी के आने के बाद सिंधिया परिवार और उनके परिवार से जुड़े कारिंदे ग्वालियर छोड़कर आगरा चले गए थे, लेकिन खजांची अमरचंद बांठिया उनके साथ नहीं गए। सिंधिया परिवार वीरांगना के बलिदान के बाद ही तब वापस लौटा, जब अंग्रेजों ने पुनः ग्वालियर का राज्य सौंपा। लेकिन इसके बाद अंग्रेजों ने अमर चंद बांठिया को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें शहर के मुख्य सराफा बाजार में एक पेड़ पर लटकाकर फांसी की सजा दी गई। उन पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अपना खजाना खोल दिया। वे लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे आदि विद्रोहियों से मिल गए। बांठिया की लाश को कई दिनों तक बीच बाजार में पेड़ से लटकाकर रखा गया, ताकि लोगों में दहशत फैल जाए । स्वतंत्रता के बाद बांठिया को स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों में शामिल किया गया। आज भी सराफा बाजार में फांसी वाले स्थल पर उनका छोटा सा स्मारक है और वहां उनकी मूर्ति भी लगी है।
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यह बोली- एनएसयूआई
एनएसयूआई ने विवाद के बीच अचानक बांठिया के प्रतिमास्थल पहुंचकर वहां सफाई और धुलाई की । इसके नेता सचिन दुबे का कहना है कि 1857 में क्या हुआ था ? किसने गद्दारी की थी इसकी गवाह यह समाधि है। वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि है और आज वे ही गद्दार कांग्रेस को गद्दारों की विचारधारा कह रहे हैं। आज अमर चंद बांठिया के बलिदान को गद्दारी बताया जा रहा है।