BHOPAL. मध्यप्रदेश के चुनावी साल में गाय सियासत के केंद्र में है। इसके बाद भी गाय दाने-दाने को मोहताज है। गौ भक्त होने का दावा करने वाली सरकार के पास बजट की कमी है तो कांग्रेस के पास कोरे वचन ही हैं। गायों की चिंता करने के लिए बने गौ संवर्धन बोर्ड ने पैसे की कमी की वजह से 600 से ज्यादा गौशालाएं निजी हाथों में सौंप दी हैं। बोर्ड के पास गायों के लिए चंदा भी नहीं आ रहा है। हालत ये है कि लोगों की आस्था का केंद्र गौमाता सड़कों पर भटक रही है। साढ़े पांच लाख गायें बेसहारा होकर सड़कों पर घूम रही हैं।
प्रदेश में साढ़े आठ लाख बेसहारा गायें
प्रदेश में 1 करोड़ 87 लाख गौवंश हैं। प्रदेश में कुल निराश्रित गौवंश की संख्या 8 लाख 54 हजार है। निराश्रित गौ-वंश के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा 627 गौशालाओं का संचालन किया जा रहा है। इसमें लगभग 1 लाख 85 हजार गौवंश हैं। मनरेगा में निर्मित 1 हजार 135 गौ-शालाओं में 93 हजार गौवंश हैं। बाकी 5 लाख 60 हजार गौवंश की व्यवस्था की जाना है। ये बेसहारा गायें सड़कों पर भटक रही हैं। 1995 गौ-शालाएँ निर्माणाधीन हैं जिनकी क्षमता 2 लाख गौ-वंश की है।
गायों के लिए न चंदा न पर्याप्त बजट
गौ संवर्धन बोर्ड के पास 1757 गौशालाएं रजिस्टर्ड हैं। इन गौशालाओं में 2 लाख 78 हजार बेसहारा गायें रहती हैं। सरकार रोजाना एक गाय के दाना पानी के लिए 20 रुपए देती है। इन गायों के चारे और भूसे के लिए सालाना 200 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। गौसंवर्धन बोर्ड को सरकार 200 करोड़ का बजट ही देती है। सड़कों पर साढ़े पांच लाख से ज्यादा बेसहारा गायें घूम रही है। इनकी व्यवस्था के लिए गौ संवर्धन बोर्ड को 300 करोड़ सालाना का बजट चाहिए। यानी बोर्ड को गायों के लिए सरकार से 100 करोड़ रुपए कम मिल रहे हैं। इसके अलावा गौ संवर्धन बोर्ड को चंदे के नाम पर भी कुछ नहीं मिल रहा है। बोर्ड को एक साल में करीब तीन लाख का चंदा ही मिला है। यही कारण है कि बोर्ड असहाय नजर आता है।
निजी हाथों के हवाले होंगी गौशालाएं
खराब माली हालत से जूझ रहीं गौशालाएं अब सरकार निजी हाथों में सौंपने जा रही है। 627 गौशालाएं एनजीओ के हवाले कर दी गई हैं। इसके अलावा आगर मालवा जिले में बना देश का पहला गौ अभ्यारण्य भी प्रायवेट हाथों में दिया जा चुका है। बोर्ड ने एनजीओ,सामाजिक संस्थाओं समेत सभी बड़े मंदिरों को गौशालाएं लेने के लिए आमंत्रित किया है। ये गौशालाएं पहले ग्राम पंचायतों को सौंपी गई थीं लेकिन सरकार का ये मॉडल फेल हो गया और ग्राम पंचायतें इनका संचालन नहीं कर पाईं। इसके बाद महिलाओं के स्वसहायता समूहों को इन गौशालाओं का संचालन दिया गया लेकिन वे भी इनको नहीं चला पाईं। आखिरकार बोर्ड ने गौशालाओं को निजी हाथों में देने का फैसला किया है।
गाय के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश
बीजेपी और कांग्रेस सभी गाय के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती हैं। कांग्रेस के वचन पत्र में गाय और गौशालाएं प्रमुख मुद्दा है तो बीजेपी भी खुद को गौभक्त बताते हुए गाय की चिंता करने वाली पार्टी बताती है। लेकिन गायों की बदहाली की चिंता करते हुए कोई नजर नहीं आता।