BHOPAL. चुनावी साल में मध्यप्रदेश में गाय सियासी हो गई है। बीजेपी को लगता है कि ये गाय वोट देने वाली भी साबित हो सकती है। प्रदेश में गायों के दाना-पानी और आवास के लिए आवश्यक फंड के इंतजाम के लिए नया रास्ता तलाशा जा रहा है। सरकार शराब, महंगी कारें और दस लाख से उपर की रजिस्ट्री पर काउ सेस लगा सकती है। गौ संवर्धन बोर्ड ने सरकार से इसकी सिफारिश की है। यदि सरकार बोर्ड की इस सिफारिश को मानती है तो गायों के लिए करीब 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का इंतजाम हो सकता है। हालांकि सरकार इस बात से डर रही है कि कहीं चुनावी साल में शराब पर सेस लगाने उसको भारी तो नहीं पड़ेगा।
प्रदेश में गाय सियासत का अहम हिस्सा बन गई है
गाय बीजेपी के कोर एजेंडा में शामिल है। प्रदेश सरकार गाय की चिंता तो कर रही है लेकिन उसकी माली हालत इसकी इजाजत नहीं दे रही। प्रदेश में गाय सियासत का अहम हिस्सा बन गई है। प्रदेश की गौशालाओं को निजी हाथों में सौंपने का फॉर्मूला भी ज्यादा काम नहीं आ रहा है। गायों के लिए फंड जुटाने के लिए सरकार नए फॉर्मूले पर विचार कर रही है। ये फॉर्मूला सरकार को गौ संवर्धन बोर्ड ने सुझाया है।
इसके अलावा बोर्ड ने उद्योगों से भी मदद मांगी है
सरकार शराब, महंगी कार, दस लाख से ज्यादा की रजिस्ट्री और छत्तीसगढ़ से आने वाले लोहा,सीमेंट पर काउ सेस लगाने की तैयारी कर रही है। गौ संवर्धन बोर्ड ने मुख्यमंत्री को इन सिफारिशों के साथ पूरा प्रस्ताव बनाकर भेजा है। इसके अलावा बोर्ड ने उद्योगों से भी मदद मांगी है। उद्योगों से मिलने वाले सीएसआर फंड से भी अपने लिए एक हिस्से की मांग की है। बोर्ड ने ये फॉर्मूला उत्तरप्रदेश, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लिया हे। यहां पर कुछ उत्पादों पर काउ सेस लगाया जा रहा है।
गौ संवर्धन बोर्ड को 300 करोड़ सालाना का बजट चाहिए
दरअसल गौ संवर्धन बोर्ड के पास 1757 गौशालाएं रजिस्टर्ड हैं। इन गौशालाओं में 2 लाख 78 हजार बेसहारा गायें रहती हैं। सरकार रोजाना एक गाय के दाना पानी के लिए 20 रुपए देती है। इन गायों के चारे और भूसे के लिए सालाना 200 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। सड़कों पर साढ़े पांच लाख से ज्यादा बेसहारा गायें घूम रही है। इनकी व्यवस्था के लिए गौ संवर्धन बोर्ड को 300 करोड़ सालाना का बजट चाहिए। इस बजट के इंतजाम बोर्ड काउ सेस से चाहता है। बोर्ड ने अन्य राज्यों का अध्ययन किया है जहां पर गायों के लिए इस तरह का सेस लगाया जाता है। राजस्थान में काउ सेस से सरकार 900 करोड़ रुपए कमाती है। इसके अलावा बोर्ड ने पर्यटन,संस्कृति,धर्मस्व और राजस्व विभाग को भी अपने से जोड़ा है ताकि यहां से भी कुछ राशि का इंतजाम हो सके।
काउ सेस लगाने का फॉर्मूला कमलनाथ सरकार ही लाई थी
गाय इन चुनावों में बीजेपी के साथ कांग्रेस के लिए भी अहम मुद्दा है। कांग्रेस ने गौशालाओं का विषय अपने वचन पत्र में प्रमुखता से रखा है। काउ सेस लगाने का फॉर्मूला सबसे पहले कमलनाथ सरकार ही लाई थी लेकिन इस फैसला हो पाता तब तक सरकार गिर गई। अब यही फॉर्मूला बीजेपी सरकार अपनाने जा रही है। हालांकि सरकार की मंशा शराब पर सेस लगाने की नहीं है। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कहीं चुनावी साल में शराब पर सेस लगाकर उसे महंगी करने का फैसला उस पर भारी न पड़ जाए। फिलहाल सरकार के पास ये प्रस्ताव विचाराधानी है। मुख्यमंत्री ही इस पर अंतिम फैसला लेंगे।