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योगेश राठौर, INDORE. मैं 25 साल से वेंटिलेटर का इस्तेमाल कर रहा हूं। एकेडमिक से जुड़ा हुआ हूं, बच्चों को इसके बारे में पढ़ा रहा हूं और इससे जुड़ी रिसर्च कर रहा हूं और लगातार इसके बारे में पढ़ता रहता हूं और हर बार मुझे ऐसा लगता है कि मुझे इसके बारे में और सीखने की जरूरत है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि अनुभवहीन हाथों में वेंटिलेटर एक किलर मशीन है। ये कहना है रांची से आए सीनियर फैकल्टी डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य का। वे गुरुवार को इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (आइएससीसीएम) की 29वीं वार्षिक कार्यशाला "क्रिटिकेयर-2023" के दूसरे दिन ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में मौजूद थे।
अनुभवहीन हाथों में वेंटिलेटर किलर मशीन
डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि अगर आप के किसी परिचित को वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ रही है तो उसे ऐसे किसी सेंटर पर लेकर जाएं, जहां का इसके एक्सपर्ट्स हों। हर शहर में ऐसे कई हॉस्पिटल हैं, जो इसके लिए कम एक्सपीरियंस वाले डॉक्टर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जोकि एक तरह से पेशेंट की जान के साथ खेलने जैसा है।
आईसीयू के 30 से 40 प्रतिशत पेशेंट्स का बीपी रहता है कम
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल कि प्रो. शिला मायत्रा ने वर्कशॉप में हीमोडायनेमिक मॉनिटरिंग पर ट्रेनिंग दी। उन्होंने बताया कि आईसीयू में यदि किसी पेशेंट का ब्लड प्रेशर काफी ज्यादा लो होता है और अगर इसे ट्रीट नहीं किया जाता है तो इसकी वजह से पेशेंट की जान भी जा सकती है। वर्कशॉप में इस प्रकार के पेशेंट को स्लाइन या ग्लूकोज चढ़ाना है या बीपी बढ़ाने वाली दवाई देनी है और कैसे ट्रीट करना है और रेगुलर आईसीयू में इस तरह के पेशेंट को किस प्रकार से मॉनिटर किया जाता है ये भी बताया गया।
जल्द ट्रीटमेंट करके बचाई जा सकती है जान
ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन और आइएससीसीएम के अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा ने बताया कि इस वर्कशॉप में लेक्चर कम और हैंड्स ऑन ट्रेनिंग ज्यादा है। जो डेलीगेट्स आए हैं, वे खुद मॉनिटर और टूल्स को सिम्युलेटर पर इस्तेमाल करके सीख रहे हैं जिससे कि वहां जाकर पेशेंट्स पर इस्तेमाल कर सकें। आईसीयू में आने वाले 30-40 प्रतिशत पेशेंट्स ऐसे होते हैं जिनका बीपी बेहद ही लो होता है, उन्हें इस तरह के ट्रीटमेंट की आवश्यकता रहती है। इन्फेक्शन के मामलों में बीपी लो होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है और इसका अर्ली ट्रीटमेंट करने से मृत्यु की आशंका कम हो जाती है। इस वजह से इसको जल्दी पहचानना और उसका ट्रीटमेंट शुरू करना बेहद महत्वपूर्ण होता है और इसकी ट्रेनिंग यहां दी गई।
बनी हुई है आईसीयू बेड्स की कमी
को-ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजय धानुका ने बताया कि आज के समय की बात करें तो कोविड में आईसीयू बेड्स बढ़ने के बाद भी अभी भी देश में पर्याप्त मात्रा में आईसीयू बेड्स उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अब डॉक्टर्स का प्रयास रहता फास्ट रिकवरी पर ज्यादा रहता है जिससे की पेशेंट्स को आईसीयू से वार्ड्स या घर जल्दी भेजा जा सकें। जिससे की किसी अन्य जरूरतमंदों के लिए आईसीयू में बेड उपलब्ध हो सकें। यहीं वजह है कि इन दिनों डे-केयर सर्जरी का ट्रेंड पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है। इस तरह की सर्जरी में पेशेंट्स को सर्जरी के बाद आईसीयू में रखने की जरूरत नहीं होती है और उन्हें घर भेजा जा सकता है।
आईसीयू का इन्फेक्शन हो सकता है जानलेवा
एब्स्ट्रेक्ट कमेटी के को-चेयरमैन डॉ. आनंद सांघी ने बताया कि आईसीयू में एडमिट रहने वाले पेशेंट को इलाज के दौरान मॉनिटरिंग के लिए कई तरह के पाइप, ट्यूब और डिवाइस बॉडी से कनेक्ट किए जाते हैं। ये सभी आर्टिफिशियल है पर इनका इस्तेमाल करने से बॉडी के जो नेचुरल बैरियर हैं वो टूट जाते हैं, इसलिए इनकी वजह से इन्फेक्शन स्प्रेड होने की आशंका रहती है, इसलिए सावधानी रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए इन्हें एंटीबायोटिक्स कवरेज दिया जाता है और भी कई प्रीकॉशन रखने बेहद जरूरी हैं वरना ये इन्फेक्शन ही पेशेंट की मौत का कारण बन सकता है। इसी बात को ध्यान में रखने आईसीयू में होने वाले इन्फेक्शन विषय पर भी वर्कशॉप का आयोजन किया गया जिसमें आईसीयू में किन-किन सावधानियों का ध्यान रखना है जिससे की पेशेंट को किसी प्रकार का इन्फेक्शन ना फैले इस बारे में विस्तार से बताया गया।
बेहद मददगार साबित हो रहा अल्ट्रासाउंड
गुड़गांव मेदांता के क्रिटिकल केयर वाइस चेयरमैन डॉ. दीपक गोविल ने कहा कि अल्ट्रासाउंड को पहले सिर्फ पेट से संबंधित बीमारियों जैसे पथरी, अपेंडिक्स, आदि और प्रेगनेंसी से जुड़ी हुई जांच के लिए ही उपयोग किया जाता था। अब अल्ट्रासाउंड आईसीयू का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। ये इस कदर जरूरी हो गया है कि इसके बिना आईसीयू के राउंड को पूरा नहीं माना जाता है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि इसकी मदद से कई ऐसी जानकारी मिल जाती है जो कि कई अन्य पैरामीटर से नहीं मिल पाती। इसकी मदद से बीमारी के कारण तक तुरंत पहुंचा जा सकता है, फिर वो बीपी का लो होना या फिर हार्ट या रेस्पिरेटरी सिस्टम का सही तरीके से काम ना करना हो। यहां तक कि इसकी मदद से आप जो ट्रीटमेंट या थेरेपी शुरू करते हैं आप आधे घंटे बाद अल्ट्रासाउंड के जरिए चेक कर सकते हैं कि बॉडी कैसे रिस्पॉन्ड कर रही है। इसकी मदद से अगर बॉडी में कई इन्फेक्शन हैं तो वह कहां है, ये भी पता किया जा सकता है। पहले जिस काम के लिए पेशेंट को सीटी स्कैन के लिए भेजना पड़ता था वो काम इससे अब तुरंत हो जाता है जिससे की पेशेंट केयर करना आसान हो गया है। सोसाइटी भी इसकी ट्रेनिंग दे रही है। यहां पर मशीन आई हुई हैं और उनका उपयोग फुल बॉडी सिम्युलेटर के ऊपर करके सीख रहे हैं।
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2 दिन में 550 लोगों को दी ट्रेनिंग
मैक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर विभाग एचओडी डॉ. वाइपी सिंह ने बताया कि इन 2 दिनों के दौरान हमारी टीम ने आम जनता, पुलिस, नगर निगम के कर्मचारियों को बेसिक लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग दी। इसमें हमने अचानक बेहोश होने, इलेक्ट्रिसिटी के झटके लगने, मुंह में कुछ फंस जाने पर निकालने की ट्रेनिंग दी। हम इस मामले में वेस्टर्न कंट्री की तुलना में काफी पीछे है। वहां इस तरह की अवेयरनेस पिछले 20-25 साल में इतनी दी गई है। इस तरह के मामलों में भारत की तुलना में वहां पर मृत्यु दर काफी कम है। इसलिए हम इस तरह के कार्यक्रम के जरिए भारत में भी ये अवेयरनेस लाना चाहते हैं। वर्कशॉप में 2 दिन में लगभग 550 लोगों को इस बारे में ट्रेनिंग दी जा चुकी है। इसमें सीमा पर खतरों के बीच रहने वाले बीएसएफ के जवान, नर्सिंग स्टाफ और स्कूल टीचर्स आदि शामिल थे।