संजय गुप्ता/योगेश राठौर, INDORE. जनता की गाढ़ी कमाई पर लिए गए टैक्स की कैसे बर्बादी होती है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण सरकार ही पेश करती है और ऐसा ही एक उदाहरण है इंदौर की कान्ह-सरस्वती नदी की सफाई का। पूरे 15 साल से इसकी सफाई को लेकर योजनाएं पर योजनाएं बन रही हैं और दस-बीस करोड़ नहीं 1157 करोड़ रुपए। 1 हजार 157 करोड़ रुपए कान्ह की सफाई पर खर्च कर दिए गए हैं लेकिन नतीजा शून्य।
कान्ह को क्षिप्रा में मिलने से रोकने के लिए 598 करोड़ का प्रोजेक्ट
कान्ह की सफाई का नतीजा शून्य इसलिए क्योंकि अब मध्यप्रदेश सरकार की कैबिनेट ने ही प्रस्ताव पास कर दिया है कि कान्ह नदी का पानी उज्जैन की पवित्र क्षिप्रा में नहीं मिलने दिया जाएगा। ऐसा हुआ तो शिप्रा का पानी दूषित होगा, इसलिए कान्ह को क्षिप्रा में मिलने से रोकने के लिए 598 करोड़ का डक्ट प्रोजेक्ट पास किया गया है जो कान्ह को सिंहस्थ 2028 से पहले क्षिप्रा में मिलने से रोकेगा।
देखिए.. आखिर क्यों कान्ह नदी को लेकर मध्यप्रदेश सरकार के बड़े प्रोजेक्ट पर उठे सवाल !
आखिर क्या है नई योजना
राज्य सरकार ने माना है कि नदी का पानी दूषित है, इसलिए अब उज्जैन जिले के ग्राम गोठड़ा के पास से कान्ह को डायवर्ट किया जाएगा और फिर एक बंद नहर के रूप में कालियादोह महल के पास लाकर वहां क्षिप्रा में इसका पानी छोड़ा जाएगा। इस पूरे प्रोजेक्ट पर 598 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।
फिर 1157 करोड़ का क्या हुआ
अब सवाल उठता है कि नदी की सफाई के लिए 15 सालों में 1157 करोड़ का क्या हुआ? सवाल लाजिमी भी है, क्योंकि नई डक्ट योजना को मंजूर करने के साथ ही राज्य सरकार ने खुद ही मान लिया कि इतनी राशि खर्च करने के बाद भी नदी साफ नहीं हुई है। एक तरह से सरकार ने खुद ही इस प्रोजेक्ट पर खर्च किए 1157 करोड़ रुपए को फिजूल मान लिया है। यदि प्रोजेक्ट और खर्च सही था तो फिर कान्ह को शिप्रा में मिलने देना था, यह नहीं हुआ, इसलिए योजना बदल रहे हैं।
कहां किस तरह खर्च किए 1157 करोड़ रुपए
- केंद्र की जेएनएनयूआरएम में 534 करोड़ खर्च हुए सीवरेज लाइन डालने और एसटीपी बनाने में
दावों में 6 एसटीपी बनाकर कान्ह में छोड़ रहे साफ पानी
प्रशासन और नगर निगम के दावों के अनुसार 6 एसटीपी बनाए गए हैं जिसमें 97 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। ये सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट यानी एसटीपी बिजलपुर तालाब के पास, नहर भंडारा, राधास्वामी सत्संग के पास, आजादनगर के पास, सीपी शेखर नगर में प्रतीक सेतु पर। कागजों पर ये सभी प्लांट सक्रिय हैं और यहां से पानी ट्रीट कर कान्ह में छोड़ा जा रहा है, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं तो फिर कान्ह दूषित कैसे हैं?
नदी दूषित तो फिर वाटर प्लस का दर्जा कैसे मिला
अब बात करते हैं वाटर प्लस का दर्जे की। ये देश का पहला वॉटर प्लस वाला शहर है। यहां सभी सीवेरज पाइपलाइन के जरिए ट्रीट हो रहा है, नाला टेपिंग हो गई है और गंदा पानी कान्ह में नहीं मिल रहा है। निगम की इसी रिपोर्ट और दावे के आधार पर अक्टूबर माह में ही केंद्र ने इंदौर को देश का पहला वाटर प्लस का दर्जा दिया, उधर राज्य सरकार कह रही है कि नदी दूषित है, तो फिर सच क्या है? यानी निगम ने झूठी रिपोर्ट पेश कर यह दर्जा प्राप्त किया। यह हम नहीं कह रहे, यह तो खुद राज्य सरकार मान रही है।
800 करोड़ का प्रोजेक्ट भी है तैयार
हद तो यह है कि अमृत टू योजना के तहत नगर निगम ने 800 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट और तैयार कर लिया है। इसमें 550 करोड़ केंद्र और बाकी राज्य और निगम खर्च करेगा। इसके तहत फिर नदी सफाई, सीवरेज ट्रीटमेंट जैसे काम किए जाएंगे।
महापौर कहते हैं काफी काम हुआ है
महापौर पुष्यमित्र भार्गव कहते हैं कि कई प्रोजेक्ट के तहत काफी काम हुआ है और पानी की क्वालिटी में सुधार हुआ है। आगे और भी कई काम बाकी है। वाटर प्लस सिटी इंदौर बना है, क्योंकि ओपन ड्रेनेज और नाले बंद किए हैं। नाला टेपिंग करने से खुले ड्रेनेज में सफाई अभियान के तहत सफलता मिली है। अभी तक पूरी सफाई नहीं होने पर अधिकारियों की जिम्मेदारी पर महापौर का कहना है कि ऐसा ध्यान में आता है और जांच में सामने आता है तो कड़ी कार्रवाई करेंगे।
योजनाबद्ध तरीके से नहीं हुआ काम
समाजसेवी किशोर कोडवानी कहते हैं कि पूरी तरह से रुपए की बर्बादी की गई है लेकिन मुख्य मुद्दा नदी की सफाई का था, जिस पर कभी भी फोकस होकर सही तरह से योजनाबद्ध तरीके से काम ही नहीं हुआ है। केवल कागजी घोड़े दौड़ाए गए हैं।