दमोह की बेटी बनी भारत की महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम की कप्तान, खेल-खेल में खराब हो गई थी सुषमा की आंख, फिर भी नहीं हारी हिम्मत

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Rajeev Upadhyay
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दमोह की बेटी बनी भारत की महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम की कप्तान, खेल-खेल में खराब हो गई थी सुषमा की आंख, फिर भी नहीं हारी हिम्मत

Damoh. देश में पहली बार महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम का गठन किया गया है। इस टीम की कप्तान दमोह जिले के जबेरा की बेटी सुषमा पटेल को बनाया गया है। गांव की बेटी अब देश का प्रतिनिधित्व करेगी जिससे पूरा जिला गौरवान्वित हो रहा है। जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर जबेरा ब्लॉक के एक छोटे से गांव घानामैली की रहने वाली सुषमा पटेल का भारतीय दृष्टिबाधित महिला क्रिकेट टीम में न सिर्फ चयन हुआ है बल्कि उन्हें टीम का कप्तान भी बनाया गया है। सुषमा की इस उपलब्धि पर गांव ही नही पूरे जिले में खुशी का माहौल है। 



1 एकड़ के किसान हैं पिता



सुषमा के पिता बाबूलाल पटेल ने बताया कि उनके परिवार में कुल 7 लोग हैं। पत्नी लक्ष्मीबाई, तीन बेटी, दो बेटे और एक भरा पूरा परिवार है। एक एकड़ भूमि पर परिवार आश्रित है और मात्र एक खपरेल की झोपड़ी में परिवार के सभी सदस्य रहते हैं। पिता ने बताया कि वह 10-10 घंटे काम करता था ताकि मैं अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा अच्छा खाना दे सकूं। भगवान की कृपा से आज मेरी मेहनत और परिश्रम की बदौलत बेटी की इस उपलब्धि से परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा है। 



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    सुषमा के पिता ने बताया कि सुषमा छोटे से ही ज्यादा मेहनती है।  बड़े बेटे को क्रिकेट खेलते देख सुषमा भी साथ खेलने के लिए निकल जाती थी। तभी से सुषमा की रुचि क्रिकेट की तरफ बढ़ गई। सुबह के 4 बजते ही दौड़ने जाना, क्रिकेट खेलना, 10 बजते ही भागते हुए स्कूल जाना, वहां से लौटते ही खेतीबाड़ी के काम में हाथ बटाना, 8 से 12 बजे रात तक मन लगाकर पढ़ना यही पूरी दिनचर्या लंबे समय तक सुषमा की रही है।



    2005 में खराब हुई थी आंख



    पिता के अनुसार साल 2005 की बात है जब रामायण सीरियल का बहुत ज्यादा प्रचलन था।  रामायण में युद्ध होते देख बच्चे भी तीर कमान कंधों में लटका कर घूमने लगे थे। ठीक उसी प्रकार मेरे बड़े बेटे ने धनुष बाण से खेलना शुरू किया। एक बार वह बाण चला रहा था जिसका कुछ हिस्सा टूट कर सुषमा की बाई आंख में जा लगा जिससे उसकी एक आंख खराब हो गई थी।




    पिता बाबूलाल पटेल ने बताया कि उसकी एक बेटी शासकीय नौकरी में भोपाल में पदस्थ है और एक बेटी प्राइवेट संस्था में कार्य करती है। छोटी बेटी सुषमा को बचपन से ही क्रिकेट खेलन का शौक था और वह भोपाल में अपनी बहन के पास जाती रहती थी। वहीं पर उसे इसके बारे में जानकारी लगी।




    दोस्त ने बताया था, अंधे भी खेलते हैं क्रिकेट




    वहीं सुषमा ने बताया कि उसका बचपन संघर्ष भरा रहा पिता के साथ खेतों पर काम करती थी और भाई को क्रिकेट खेलते देख उसके साथ क्रिकेट खेलने का शौक शुरू हो गया। भोपाल में एक दोस्त ने बताया कि अंधे लोगों का क्रिकेट भी भारत में होता है और वह तो बचपन से क्रिकेट खेलती आ रही है इसलिए भारतीय टीम में सिलेक्शन के लिए भी प्रयास करना चाहिए। वहीं से सुषमा को आगे बढ़ने का रास्ता मिला और वहां पर सोनू सर के माध्यम से कैंप ज्वाइन किया और धीरे-धीरे क्रिकेट की बारीकियां सीखीं। इसके पहले मप्र की टीम से वह खेल चुकी हैं जिसके लिए वह बैंगलौर गई थी और उसके बाद उसका चयन भारत की ब्लाइंड  क्रिकेट टीम के लिए हुआ है और उसे कैप्टन बनाया गया है।


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