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BHOPAL. टाइगर अभी जिंदा है। मध्यप्रदेश की राजनीति में ये जुमला खूब हल्ला मचा चुका है। अब ये जुमला एक नए कलेवर में दोहराया जा सकता है। टाइगर का दम अभी बाकी है। सियासी दुनिया में रहने वाले जो नेता ये मान चुके थे कि टाइगर का दम फीका पड़ चुका है। टाइगर ने उन्हें एक ही बार में ये दिखा दिया कि टाइगर को कमजोर समझने की भूल भारी पड़ेगी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ अलग नैरेटिव
सियासत की दुनिया में पिछले कुछ दिनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ अलग ही नैरेटिव खड़ा हो रहा था। अटकलें थीं कि सिंधिया को सिर्फ ग्वालियर चंबल तक सीमित कर दिया गया है। दो कदम आगे बढ़ते हुए रूमर्स यहां तक पहुंचे कि ग्वालियर में भी सिंधिया पर शिकंजा कसने वाला है। कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए भी जो इन अटकलों पर यकीन करने पर मजबूर करते नजर आए। पर सिंधिया ने एक बार क्या दहाड़ा उनके विरोधियों पर कड़ा एक्शन हो गया। सिंधिया के साथ पार्टी बदलने वाले कार्यकर्ताओं के लिए इतना इत्मीनान काफी है कि सिंधिया की दहाड़ अभी कमजोर नहीं पड़ी है। विरोधियों को पस्त करने के लिए उनका गुर्राना ही काफी है। ये बात अलग है कि फिलहाल उन्होंने खामोश रहने को तरजीह दी है।
क्या शिवराज सरकार सिंधिया पर शिकंजा कस रही
पिछले कुछ दिनों से लगातार ऐसी खबरे आ रही हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया पर बीजेपी में लगातार शिकंजा कसता जा रहा है। केंद्रीय स्तर पर तो वो बेहतरीन परफॉर्म कर रहे हैं लेकिन प्रदेश के स्तर पर उन्हें और उनके समर्थकों को घेरने की लगातार कोशिश हो रही है। पिछले दिनों एक युवती ने उनके समर्थक और कैबिनेट मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव पर गंभीर आरोप लगाए। इस मुद्दे को प्रत्यक्ष रूप से बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस ने मुद्दा बनाया। उनके दूसरे समर्थक और मंत्री गोविंद सिंह राजपूत लंबी चौड़ी जमीन के मामले पर अपनो के ही निशाने पर हैं। एकड़ों में फैली इस जमीन का मुद्दा बीजेपी के ही नेता ने उठाया। खुद सिंधिया जिस जिवाजी क्लब के संरक्षक हैं। उस पर छापा पड़ा। चंद जुआरी पकड़ाए भी। इसके बाद इन खबरों को और बल मिला कि सिंधिया पर शिवराज सिंह चौहान लगातार शिकंजा कस रहे हैं। जिससे सिंधिया को कमजोर किया जा सके या सीमित किया जा सके।
क्या सिंधिया के दबदबे को कम करना चाहते हैं तोमर
अटकलें तो ये भी हैं कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी खासतौर से ग्वालियर चंबल में सिंधिया के दबदबे को कम करना चाहते हैं। क्योंकि आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए खुद उनकी नजर ग्वालियर सीट पर है। इधर सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया भी नई और पुरानी बीजेपी में फर्क करने से बच नहीं सकीं। कुछ ही दिन पहले ग्वालियर एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने सिंधिया समर्थक पहुंचे थे। इन्हें देखकर यशोधरा पहले चौंकी और फिर पूछ ही लिया कि पुराने लोग दिख नहीं रहे, हमारे बीजेपी वाले पुराने लोग कहां हैं। जवाब में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने ये कह कर मामला खत्म किया कि हम भी तो आपको ही हैं। इससे ये अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि जब बुआ ने ही भतीजे और उसके समर्थकों को बीजेपी के रूप में एक्सेप्ट नहीं किया है तो बाकी नेताओं का क्या हाल होगा।
सिंधिया ने एक बार फिर जताई नाराजगी
सिलसिलेवार तरीके से हुए ये घटनाक्रम इस तरफ इशारा करने लगे थे कि केंद्रीय स्तर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की भले ही कद्र हो। लेकिन प्रदेश में उनकी जड़े कमजोर हो रही हैं। नगरीय निकाय चुनाव और ग्वालियर में बीजेपी जिलाध्यक्ष बनवाने के मामले में भी नरेंद्र सिंह तोमर उन पर भारी ही पड़े थे। ये बात अलग है कि निकाय चुनाव में तोमर की पसंद कोई कमाल नहीं दिखा सकी। उल्टा ग्वालियर का गढ़ कांग्रेस के नाम हो गया। इतने तक सिंधिया खामोश रहे। लेकिन जब बात हद से आगे बढ़ ही गई तब सिंधिया की एक आवाज ने ये जाहिर कर ही दिया कि उनकी दहाड़ को बेदम समझना किसी के लिए भी गलती साबित हो सकता है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक बार नाराजगी जताई और बीजेपी ने एक साथ छह नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। ये छह के छह नेता गुना जिले के हैं। जो नेता बाहर हुए हैं उनमें गुना नगर पालिका अध्यक्ष समेत 5 पार्षद भी शामिल हैं। ये पूरा मामला ही नगरीय निकाय चुनावों से जुड़ा हुआ है। इन सभी नेताओं पर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग करने का आरोप है। जिस पर कार्रवाई करते हुए पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इन नेताओं ने पार्टी की अधिकृत उम्मीदवार सुनीता रघुवंशी के बदले सविता अरविंद गुप्ता को अध्यक्ष चुनने के लिए वोटिंग की थी। इसी बात से सिंधिया नाराज हुए थे। जिसके बाद खुद बीजेपी के प्रदेश महामंत्री ने पत्र लिखकर इन नेताओं को बाहर किया।
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विधानसभा चुनाव से पहले रंग में दिखेंगे सिंधिया
इस एक घटना ने ये तो साबित कर ही दिया कि सिंधिया की नाराजगी अभी भी असरदार है। वो पार्टी में उतने भी कमजोर नहीं हुए जितने कि अटकलों में नजर आ रहे हैं। इस कार्रवाई के बाद ये तो माना ही जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में अभी 11 महीने का वक्त है और इतने वक्त में सिंधिया किसी भी रूप में दिखाई दे सकते हैं। हो सकता है कि उनके भीतर का टाइगर कभी भी दहाड़ने को तैयार हो जाए। ये तय है कि चुनाव तक अपना रूतबा और रसूख बचा कर रखना सिंधिया के लिए बहुत आसान नहीं है। खासतौर से तब जब उनके समर्थक अलग अलग कारणों से लगातार घिरते नजर आ रहे हैं।
सिंधिया का जलवा बीजेपी में कितना कायम
2023 की चुनावी बिसात ये तय करेगी कि सिंधिया का जलवा बीजेपी में कितना कायम है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने झुककर बात करने की तस्वीरें वायरल कर कांग्रेस ये तंज कस ही चुकी है कि अब महाराज का हाल यही रहने वाला है। वाकई ऐसा ही है या तस्वीर में जो दिख रहा है हकीकत उससे परे है। ये साफ होने के लिए सिर्फ चंद महीने ही इंतजार करना होगा। टिकट वितरण की प्रक्रिया शुरू होते ही ये साफ हो जाएगा कि बीजेपी के समंदर में महाराज सिंधिया कितने पानी में हैं।