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भोपाल से चुनाव लड़ने के बिल्कुल इच्छुक नहीं थे दिग्विजय सिंह, कमलनाथ की इच्छा के चलते उतरे थे मैदान में

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Rajeev Upadhyay
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भोपाल से चुनाव लड़ने के बिल्कुल इच्छुक नहीं थे दिग्विजय सिंह, कमलनाथ की इच्छा के चलते उतरे थे मैदान में

Bhopal. हम बात कर रहे हैं साल 2019 में हुए आम चुनावों की। जब विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इन तीनों राज्यों में कमाल करने कमर कस चुकी थी। हालांकि अंदरखाने में यह सबको पता था कि किसी तरह मोदी मैजिक के सामने कांग्रेस ठीकठाक प्रदर्शन भी करती है तो बहुत है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ऐलान कर चुके थे कि दिग्गज नेताओं को कठिन सीट पर मैदान में उतारा जाएगा। उनके इस विचार से राहुल गांधी भी सहमत हो गए। सरकार के सारे मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दी गई थी कि अपने-अपने इलाके में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेवारी उनकी होगी। इसके बाद बात आई कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की तो उनके लिए भोपाल की सीट का प्रस्ताव लाया गया, जिसे 30 साल से कांग्रेस कभी जीत नहीं पाई थी। 





चुनाव लड़ने के इच्छुक ही नहीं थे दिग्विजय





दरअसल आम चुनावों से कुछ माह पहले दिग्विजय सिंह बिल्कुल भी इच्छुक नहीं थे कि वे लोकसभा चुनाव लड़ें। वे अपनी भीष्म प्रतिज्ञा की अवधि पूरी कर चुके थे। जिसके तहत उन्होंने 15 साल तक कोई भी चुनाव न लड़ने का प्रण लिया था। लिहाजा आलाकमान की इच्छा के आगे उन्हें मन मसोसकर चुनाव मैदान में जाना पड़ा। बीजेपी ने उनके खिलाफ फायर ब्रांड साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतार था। जो कि मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में जेल में रहकर बाहर आई थीं। जिसके बाद इन दोनों के बीच हुए मुकाबले के चलते भोपाल की सीट एकाएक हाईप्रोफाइल हो गई। 







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  • प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे बताते हैं कि कमलनाथ लगातार आम चुनाव में भोपाल से दिग्विजय सिंह के लड़ने का ऐलान किए जा रहे थे, लेकिन एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह दिग्गी इस चाल को भांपते हुए इस बात को टाल देते थे। माना तो यही जा रहा था कि यह सीट निकाल लेने पर केंद्रीय राजनीति में दिग्विजय सिंह का रुतबा और बढ़ जाएगा। इससे कमलनाथ के दोनों हाथों में लड्डू होता। क्योंकि दिग्विजय सिंह जीतते तो दिल्ली चले जाते और यदि हारते तो चुपचाप घर में बैठ जाते। इस तरह दिग्विजय सिंह कमलनाथ की बिछाई बिसात में मोहरे की तरह फंस गए जो आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं हो पाता। 

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    इससे पहले साल 2003 में दिग्विजय सिंह ने विधानसभा का चुनाव लड़ा था। जहां उनके खिलाफ वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उतारा गया था। दिग्विजय सिंह बार-बार यही कह रहे थे कि मेरा राज्यसभा का कार्यकाल 2020 तक का है, फिर भी पार्टी चाहती है कि मैं चुनाव लडूं तो मेरी प्राथमिकता राजगढ़ की सीट है। हालांकि मैने बता दिया है कि पार्टी जहां से कहेगी वहां से लड़ूंगा। 





    आरएसएस और बीजेपी ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया। उन्होंने दिग्विजय सिंह को हिंदू विरोधी बताकर अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया। जैसे जैसे प्रचार आगे बढ़ा साध्वी प्रज्ञा ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए खुद को हिंदुत्व का प्रतीक बताया। आरएसस और बीजेपी के इस प्रचार अभियान से दिग्विजय सिंह चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह फंस गए और अंत में उन्हें साढे तीन लाख से भी ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा, हालांकि दिग्विजय सिंह को हराने के कुछ ही दिन बाद महात्मा गांधी और गोडसे को लेकर एक बयान दे दिया जिससे उनके पूरे किए कराए पर पानी फिर गया और वो इतनी बड़ी शख्सियत को हराने के बाद भी लूपलाइन में ही हैं। 



     



    कमलनाथ Kamal Nath दिग्विजय सिंह Digvijay Singh Congress leader Digvijay Singh कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह fought the election of Bhopal with impunity बेमन से लड़ा था भोपाल का चुनाव
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