BHOPAL. कंगाली में आटा गीला। यही हाल इन दिनों मध्यप्रदेश बीजेपी का हो चुका है। खासतौर से शिवराज सिंह चौहान की उस कैबिनेट का जिसका वो बीते करीब 17 सालों से सबसे प्रमुख चेहरा हैं। बाकी चेहरे जुड़ते हैं, अलग होते हैं या बदल जाते हैं। लेकिन शिवराज वहां ज्यों के त्यों हैं। उस कैबिनेट का हाल ये है कि सबसे पुराने साथी ही शिवराज सिंह चौहान पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। उससे भी गंभीर बात ये है कि मसला उस जगह से जुड़ा है जिस जिले से कैबिनेट में सबसे ज्यादा मंत्री हैं। मामला उस जिले से जुड़ा है जहां बीजेपी सबसे मजबूत है। मामला उस जगह से जुड़ा है जहां कुछ ही दिन में पीएम नरेंद्र मोदी का दौरा प्रस्तावित है। उस जगह के विधायकों ने अपने ही मुखिया खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। नाराजगी ऐसे मंत्री को लेकर है जो सीएम के करीबी बताए जाते हैं और उन्हें शह देने का ठीकरा कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ मंत्री ने शिवराज के सिर ही फोड़ा है।
सीएम शिवराज पर क्यों लगा पक्षपात का आरोप?
एक तरफ बीजेपी मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने के बहाने जबरदस्त अभियान छेड़ने के मूड में है। बमुश्किल 6 दिन बाद ये अभियान देशभर में फूंका जाने वाला है। कोशिश है कि सारे कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में जोड़ा जा सके। इस कोशिश से सप्ताहभर पहले मध्यप्रदेश में बीजेपी पार्टी तो क्या शिवराज कैबिनेट ही बिखरता हुआ नजर आ रहा है। शिवराज कैबिनेट के आला मंत्रियों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पक्षपात का आरोप लगाया है। ये आरोप शिवराज पर लगे हैं उनके सबसे करीबी माने जाने वाले मंत्री भूपेंद्र सिंह के चलते।
आपसी लड़ाई का शिकार सागर
भूपेंद्र सिंह सागर जिले के खुरई से विधायक हैं। इसी जिले की सुरखी से ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे करीबी गोविंद सिंह राजपूत भी विधायक हैं और रहली से शिवराज कैबिनेट के सबसे सीनियर मंत्री गोपाल भार्गव विधायक हैं। सागर सीट से शैलेंद्र जैन विधायक हैं। कुल मिलाकर पूरा सागर जिला कैबिनेट से लेकर सत्ता तक में दमदार धमक रखता है। यही सागर जिला बुरी तरह से आपसी लड़ाई का शिकार है और जगहों से तो बीजेपी को विधायकों की नाराजगी, कार्यकर्ताओं का गुस्सा, सीनियर नेताओं की बगावत और तालमेल की कमी की शिकायतें मिलती हैं, लेकिन सागर जिले में तो मामला कैबिनेट तक पहुंच गया है। जिले के वरिष्ठ विधायकों ने सीएम से खास मुलाकात कर शिकायत दर्ज करवाई है। आरोप लगाए हैं कि जिले के अफसर बाकी मंत्री और विधायकों की अनदेखी करते हैं। वहां सिर्फ भूपेंद्र सिंह की सुनी जा रही है। आरोप ये भी हैं कि ये सब सीएम के ही इशारे पर हो रहा है। मंत्रालय के बंद कमरे में इस चर्चा के बाद मंत्री गोपाल भार्गव, गोविंद सिंह राजपूत, विधायक शैलेंद्र जैन और विधायक प्रदीप लारिया इस मुद्दे पर संगठन के आला नेताओं से भी मुलाकात करने पहुंचे और शिकायत दर्ज करवाई। बीजेपी जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया भी इस मामले पर साथ ही नजर आए।
3 मंत्रियों के बीच गहराती खाई
कहना गलत नहीं होगा कि पानी सिर से ऊपर जा चुका है। तब ही तो वरिष्ठ मंत्री और विधायकों को यूं सीएम से अकेले में मुलाकात कर शिकायत दर्ज करवाने आना पड़ा। सागर जिले में 3 मंत्रियों के बीच अंदर ही अंदर खाई गहराती जा रही थी, लेकिन अब वो नजर आने लगी है। कुछ ही दिन पहले सागर जिले में अटल पार्क का उद्घाटन हुआ। तब दूरियां और वरिष्ठ मंत्रियों को साइडलाइन करने की कोशिश साफ दिखाई दी। वहां मौजूद लोग आज भी बताते हैं कि अटल पार्क के आसपास मंत्री भूपेंद्र सिंह के बैनर-पोस्टर के अलावा महापौर पति सुशील तिवारी तक के बैनर पोस्टर लगे दिखे, लेकिन गोपाल भार्गव का एक भी बैनर नहीं लगाया गया। भाषण के दौरान भूपेंद्र सिंह और सुशील तिवारी एक-दूसरे की पीठ थपथपाते रहे और अटलजी से अपनी मुलाकातों का जिक्र करते रहे। मंच पर जब गोपाल भार्गव आए तो उनका दर्द भी छलक ही गया। उन्होंने एक-एक कर अटलजी और अपनी मुलाकातों की फेहरिस्त गिनानी शुरू कर दी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सागर जिले की विधानसभा सीटों में जब मंत्री और विधायकों के ये हाल हैं तो वहां कार्यकर्ता किस हाल में होगा।
पीएम मोदी का दौरा
30 मई से 30 जून के बीच पीएम नरेंद्र मोदी का मध्यप्रदेश में दौरा प्रस्तावित है। वो सागर जिले की बीना विधानसभा सीट पर विजिट कर सकते हैं। जहां कई बड़े कार्यक्रमों में मौजूद होंगे। उसी सागर जिले में ये उबाल आया है। कार्यकर्ता और जिला प्रभारी आपस में लड़ रहे होते तो भी ठीक था, लेकिन सागर में तो मामला मंत्रियों के बीच का है। इत्तेफाक ये है कि तीनों मंत्रियों का ओहदा कैबिनेट में किसी से कम नहीं है। इसके बावजूद क्या मजबूरी रही होगी कि मंत्रियों को पहले बंद कमरे में सीएम से मुलाकात करनी पड़ी और फिर वीडी शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद से भी मिले। खबर ये है कि कोशिश तो आरएसएस कार्यालय समिधा जाकर क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते से मिलने की भी थी, लेकिन वो उस वक्त भोपाल में मौजूद नहीं थे। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के बाद वरिष्ठ विधायक और मंत्री गोपाल भार्गव के सुर बदले नजर आए और इसे उन्होंने एक सामान्य मुलाकात ही बताया।
गोपाल भार्गव का दर्द छलका
गोपाल भार्गव ने पार्टी लाइन पर बयान देने और सब कुछ सामान्य बताने की कोशिश तो पूरी की है, लेकिन उनका दर्द कितनी बार छलका ये उनके बयान से ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जिसमें उन्होंने बार-बार पार्टी में अपनी वरिष्ठता जताने की कोशिश की है। अपने इसी बयान में उन्होंने खुद को मध्यप्रदेश में पार्टी का संस्थापक सदस्य बताया। एक बार ये भी जताया कि वो 43 साल से पार्टी से जुड़े हैं और इसे पुष्पित और पल्लवित कर रहा हूं। एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि पार्टी में सबसे वरिष्ठ होने के नाते मैं पार्टी हित में ही काम करूंगा।
इस विवाद की अनदेखी होगी बड़ी गलती
पार्टी लाइन पर चलने की मजबूरी या वॉर्निंग, वजह जो भी हो गोपाल भार्गव ने दर्द छुपाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन जब उनके जैसे वरिष्ठ नेता को बार-बार अपनी सीनियरिटी पर सफाई देना पड़े तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात क्या होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि जब जिले के मंत्री और विधायक इस कदर परेशान हैं तो कार्यकर्ता भी इत्मिनान से कहां होगा। इसका असर 2023 के चुनावों पर भी पड़े तो हैरानी नहीं होगी। मामला सागर से होते हुए भोपाल स्थित मंत्रालय के गलियारों तक पहुंच चुका है। अब इसकी अनदेखी करना बड़ी गलती साबित हो सकता है।
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बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी और जितने दिग्गज ये नेता हैं, इनके लिए दिल्ली बहुत दूर है भी नहीं। बहुत संभावनाएं हैं कि ये बात आलाकमान के कानों तक पहुंच चुकी हो। सत्ता से लेकर संगठन के पदाधिकारी हर स्तर पर तालमेल की कमी की तरफ पहले ही इशारा कर चुके हैं। अब तो मंत्री ही मंत्री के दुश्मन बनते दिखाई दे रहे हैं। अग्नि परीक्षा से पहले ही बीजेपी किस किस मामले में कमजोर है ये साफ दिखाई दे रहा है। क्या अब 1 माह चलने वाले अभियान के तहत बीजेपी इस खाई को पाट पाने में कामयाब होगी।