जितेंद्र सिंह, GWALIOR. मध्यप्रदेश का जिला मुरैना चंबल, डकैत और रेत के लिए कुख्यात है, लेकिन प्राथमिक शिक्षक वर्ग-3 भर्ती परिणाम आने के बाद जिले के नाम दिव्यांग प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा भी जुड़ गया है। दिव्यांग कोटा के 755 पदों में से अकेले 455 अभ्यर्थी जिला मुरैना के होने का खुलासा होने के बाद द सूत्र की पड़ताल में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
अभ्यर्थियों ने खुद बनाई नकली ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट
अभ्यर्थियों ने खुद से बनाई नकली ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड से दिव्यांग प्रमाण पत्र हासिल किए हैं। बोर्ड ने भी दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी करते समय फर्जी ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट की बारीकी से जांच नहीं की और दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाकर दे दिए। अब जब मामला खुला तो जिम्मेदार दिव्यांग प्रमाण पत्र की जांच करके कार्रवाई करने का दावा कर रहे हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि मध्यप्रदेश में व्यापम की मेडिकल परीक्षा के बाद दूसरा सबसे बड़ा दिव्यांग प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा बड़ी सुनियोजित तरीके से मिलीभगत कर अंजाम दिया गया है।
ऑडियोलॉजिस्ट के किए फर्जी हस्ताक्षर
455 में से 25 फीसदी से ज्यादा के दिव्यांग प्रमाण पत्र बहरे और कम सुनने वाली श्रेणी के हैं। द सूत्र की टीम ने जब कुछ अभ्यर्थियों की ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट की बारीकी से जांच की तो पता चला कि रिपोर्ट ही फर्जी है। बोर्ड के समक्ष अभ्यर्थियों ने दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट स्वयं या गिरोह द्वारा बनाकर प्रस्तुत की है। ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट पर ऑडियोलॉजिस्ट की ना तो राइटिंग है ना उनके हस्ताक्षर हैं। रिपोर्ट पर राइटिंग और हस्ताक्षर की हूबहू कॉपी करने का पूरा प्रयास किया गया है। इतना ही नहीं, जांच करने वाले चिकित्सक द्वारा उपयोग किए जाने वाली स्याही (जैल पेन) का ही रिपोर्ट तैयार करने में उपयोग किया गया है।
असली जांच रिपोर्ट का क्लोन बनाया
द सूत्र की टीम ने जब नकली ऑडियोमेट्री और बैरा जांच की रिपोर्ट देखी तो कुछ पल तो उसे फर्जी करार देने का कोई वाजिब कारण नहीं था, लेकिन असली रिपोर्ट सामने आते ही समझ आ गया कि कितनी सफाई से फर्जी ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट तैयार की गई है। अभ्यर्थियों या गिरोह ने अस्पताल से असली जांच रिपोर्ट प्राप्त कर उसके प्रारूप का क्लोन तैयार किया। उसके बाद जांच करने वाले चिकित्सक की राइटिंग और हस्ताक्षर की कॉपी करने का प्रयास किया। असली और नकली बैरा और ऑडियोमेट्री जांच रिपोर्ट को देखकर साफ हो गया कि किस तरह सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के काम को अंजाम दिया गया है।
प्रमाणीकरण के लिए आए सिर्फ 9 आवेदन
शिक्षक भर्ती परीक्षा की चयन सूची जारी होने के बाद अभ्यर्थियों को अपने दस्तावेज का संबंधित विभाग से प्रमाणीकरण करवाना होता है। चयन सूची में नाम आने के बाद दिव्यांग प्रमाण पत्र का प्रमाणीकरण मुरैना जिला अस्पताल से होना था, जिसके लिए आवेदन करना होता है। पर फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र का खुलासा होने के बाद मात्र 9 अभ्यर्थियों ने ही प्रमाणीकरण के लिए आवेदन किया है, जिसमें से 6 का प्रमाणीकरण विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा किया जा चुका है। 1 आवेदन निरस्त किया गया है, जबकि 2 अभ्यर्थी कई बार फोन करने के बाद भी बोर्ड के समक्ष उपस्थित नहीं हो रहे हैं। बाकी दिव्यांग अभ्यर्थियों ने अपनी दिव्यांगता की जांच करवाने के लिए आवेदन ही नहीं किया। इससे साफ है कि दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने में बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ है।
बैरा और ऑडियोमेट्री टेस्ट की व्यवस्था नहीं
सागर, टीकमगढ़, छतरपुर समेत ग्वालियर चंबल संभाग के किसी जिले में बहरे या कम सुनने का दावा करने वाले व्यक्तियों की जांच करने के लिए सरकारी अस्पतालों में कोई ऑडियोलॉजिस्ट ही पदस्थ नहीं है, जिस कारण बैरा और ऑडियोमेट्री टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं। मजबूरन जिला विकलांग पुनर्वास केंद्रों पर बहरे होने का दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आने वालों को बोर्ड जांच के लिए ग्वालियर के जेएएच (जयारोग्य अस्पताल) भेजता है। इसी बात का फायदा उठाकर अधिकांश अभ्यर्थियों/गिरोह द्वारा जेएएच के प्रारूप पर जेएएच के ऑडियोलॉजिस्ट के फर्जी हस्ताक्षर कर झूठी ऑडियोमेट्री या बैरा रिपोर्ट तैयार कर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत की गई। बोर्ड ने भी जांच रिपोर्ट का प्रमाणीकरण करवाए बिना विकलांग प्रमाण पत्र जारी करने की अनुशंसा कर दी, जिसके बाद दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया।
प्रमाण पत्र बनवाने प्रशिक्षित होकर आते हैं
सामान्यत: व्यक्ति बहरे या कम सुनने का दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित होकर आता है। आमतौर पर दिव्यांगता की जांच ऑडियोमेट्री टेस्ट से ही की जाती है। एक फ्रीक्वेंसी पर उसके कान में आवाज छोड़ी जाती है। यदि वो सुनाई देने से मना कर देता है तो उसे बहरे या कम सुनने की श्रेणी का दिव्यांग मानकर बोर्ड द्वारा प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता था। बहुत विशेष या फिर शिकवे-शिकायत होने की स्थिति में ही बैरा टेस्टिंग की जाती है, जिसके सामने झूठ नहीं चलता, लेकिन बैरा टेस्टिंग की भी व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में नहीं थी। साल 2018 से जेएएच में बैरा टेस्ट करने की मशीन आई है। तब से अधिकांश जिला पुनर्वास का बोर्ड जेएएच की रिपोर्ट के आधार ही दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी कर रहा है, लेकिन अभ्यर्थियों ने जेएएच की फर्जी रिपोर्ट या रिपोर्ट में छेड़छाड़ कर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत कर दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए हैं।
उंगली कटने पर बन जाता है दिव्यांग प्रमाण पत्र
किसी भी श्रेणी में 40 प्रतिशत से अधिक अपंगता होने पर ही दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। पर मामूली अपंगता या फिर उंगली कटने पर भी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी दलाल सक्रिय हैं। प्रमाण नहीं है, लेकिन सच्चाई है कि धन, बल और जुगाड़ से भी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनता है। तभी तो मुरैना जिला अस्पताल में महज 8 अभ्यर्थियों का दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रमाणीकरण हो पाया। बाकी फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र मामले का खुलासा होने के बाद पकड़े जाने के भय से दिव्यांगता की जांच करवाने ही नहीं पहुंचे। यही कारण है कि बहरे या कम सुनने की श्रेणी से अतिरिक्त अन्य श्रेणियों में भी लोगों ने दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए हैं।
जांच हुई तो न जानें कितनों की जाएगी नौकरी
मध्यप्रदेश में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र या फिर जुगाड़ से 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी पाने वालों की संख्या कम नहीं है। प्रदेशभर के सरकारी दफ्तरों में कार्य करने वाले दिव्यांगों की विधिवत जांच कराई गई तो न सिर्फ कइयों की नौकरी जाना तय है, बल्कि व्यापम से बड़ा मामला सामने आएगा।
588 में 151 बहरे या कम सुनने वाले
प्राथमिक शिक्षक वर्ग-3 की 7 हजार 714 अभ्यर्थियों की मैरिट जारी की गई है, जिसमें विभिन्न श्रेणी के 444 दिव्यांग शामिल हैं। वहीं, अतिथि शिक्षकों की सूची में 144 दिव्यांगों के नाम हैं। कुल 587 में से अनारक्षिण वर्ग की सूची में कुल 125 दिव्यांग शामिल किए गए हैं, जिसमें से 32 बहरे और कम सुनने वाले अभ्यर्थी हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में 145 में से 60 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के कुल 277 दिव्यांग में से अकेले 57 दिव्यांग बहरे या कम सुनने वाले हैं। एससी और एसटी के कुल 41 दिव्यांग अभ्यर्थियों में इनकी संख्या मात्र 2 है।
एक ही जाति से 75 फीसदी से ज्यादा
प्राथमिक शिक्षक वर्ग-3 में चयनित दिव्यांग अभ्यर्थियों की अनारक्षिण श्रेणी की सूची में 1084 अभ्यर्थियों के नाम हैं। इनमें विभिन्न श्रेणियों के 114 दिव्यांग शामिल हैं। 114 में से 30 ईएच श्रेणी यानी बहरे या कम सुनने वाले हैं। इन 30 में से 19 अभ्यर्थी एक ही जाति (ब्राह्मण) से हैं। दुष्टिबाधित और कम दृष्टि के 40 प्रतिशत, लोकोमीटर डिसेबिलिटी के 23 में से 14 यानी 60 फीसदी और बहुविकलांगता श्रेणी में भी 38 फीसदी अभ्यर्थी एक ही जाति विशेष (ब्राह्मण) से हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की 902 अभ्यर्थियों की सूची में 100 दिव्यांग हैं। इसमें से 44 फीसदी बहरे या कम सुनते हैं। इन 44 में से भी 39 यानी 88 फीसदी अभ्यर्थी भी एक ही जाति (ब्राह्मण) से हैं। दुष्टिबाधित और कम दृष्टि के 40 प्रतिशत से अधिक, लोकोमीटर डिसेबिलिटी के 17 में से 9 यानी 52 फीसदी तथा बहुविकलांगता श्रेणी में भी 17 में से 10 मतलब 58 फीसदी अभ्यर्थी एक ही जाति विशेष (ब्राह्मण) से हैं।
केस-1
साल 2014 में कई शासकीय विभागों में भर्ती की गई थी। आबकारी विभाग की इंटरव्यू कमेटी में सामाजिक न्याय विभाग के संयुक्त संचालक आरपी सिंह को शामिल किया गया था। उस दौरान एक दिव्यांग अभ्यर्थी जो इशारों से बात करने की कोशिश कर रहा था। युवक अपने सक्षम अधिकारी से दिव्यांग प्रमाण पत्र का प्रमाणीकरण भी करवाकर लाया था। संयुक्त निदेशक मूक-बधिर विशेषज्ञ भी थे। उन्होंने कुछ ही देर में भांप लिया कि युवक झूठ बोल रहा है। उसे न सिर्फ स्पष्ट सुनाई देता है, बल्कि वो बोल भी सकता है। उनकी रिपोर्ट पर अभ्यर्थी की नियुक्ति निरस्त कर दी गई थी।
केस-2
विदिशा में वेटनरी विभाग में साक्षात्कार के माध्यम से चपरासी के लिए मूक-बधिर व्यक्तियों की विशेष भर्ती का विज्ञापन जारी किया गया था। मुकेश कुमार साकेत 100 प्रतिशत मूक-बधिर था, बल्कि नियुक्ति के मानदंड भी पूर्ण करते थे। चयन समिति में जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बेटनरी सर्विस के उपनिदेशक, सामाजिक न्याय विभाग के उप संचालक और अतिरिक्त उप संचालक बेटनरी को शामिल किया गया था। चयन समिति ने एक अन्य व्यक्ति को नियुक्ति दे दी, जिसके बाद कम सुनने का 45 प्रतिशत दिव्यांगता का प्रमाण पत्र था। मामला मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर में विचाराधीन है।
'जिसको सुनाई नहीं देता वो बोल भी नहीं सकता'
सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी नौकरी पाने के लिए दिव्यांग प्रमाण पत्र के माध्यम से आरक्षण का लाभ प्राप्त करना चाहते हैं। बहरे या कम सुनने का दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त करना सबसे आसान है। मध्यप्रदेश के लगभग किसी जिले के सरकारी अस्पताल में ऑडियोलॉजिस्ट नहीं है। जैसे-तैसे जांच की औपचारिकता कर प्रमाण पत्र दे दिया जाता है। सच्चाई ये है कि वास्तव में बहरा व्यक्ति बोल ही नहीं सकता है, लेकिन शासकीय नौकरी के लिए आवेदन करने वाले अधिकांश बहरा होने का प्रमाण पत्र लिए घूम रहे वे व्यक्ति धड़ल्ले से बोलते हैं। (आरपी सिंह, पूर्व संयुक्त संचालक सामाजिक न्याय विभाग)
ग्वालियर जेएएच भेजते हैं जांच के लिए
जिला मेडिकल बोर्ड में दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने आने वालों की विशेषज्ञों द्वारा जांच के उपरांत ही सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं। मूक-बधिर की दिव्यांगता जांचने के लिए जेएएच भेजा जाता है। जांच के उपरांत विशेषज्ञ की रिपोर्ट के आधार पर दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। रिपोर्ट अभ्यर्थी खुद लेकर आता है, लेकिन उस पर ऑडियोलॉजिस्ट के हस्ताक्षर होते हैं। (डॉ. विनोद गुप्ता, सिविल सर्जन, मुरैना)
ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट पर मेरे हस्ताक्षर नहीं
मुरैना से ऑडियोमेट्री और बैरा जांच के लिए भेजा जाता है। हम जांच करके रिपोर्ट उनको ही दे देते हैं। अब यहां से रिपोर्ट ले जाकर वो उसे बदल देते हैं या नहीं, इसकी मुझे जानकारी नहीं है। कुछ संदिग्ध ऑडियोमेट्री और बैरा जांच रिपोर्ट मेरे संज्ञान में आई हैं, जिस पर ना तो मेरी राइटिंग है और ना मेरे हस्ताक्षर हैं। हां, हूबहू नकल करने का प्रयास अवश्य किया गया है। (डॉ. रोहित गुप्ता, ऑडियोलॉजिस्ट जेएएच)