NEW DELHI. कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत के बाद मचे राजनीतिक कोहराम का पटाक्षेप होने जा रहा है। 75 साल के सिद्धरमैया कर्नाटक के नए सीएम बनने वाले हैं। 4 दिन से चली आ रही इस उथल पुथल का आखिर कैसे बुधवार रात हल निकला और क्या-क्या हुआ इसकी पूरी कहानी आपको सिलेसिलेलार बताएंगे। आखिर कैसे डीके शिवकुमार को मनाने में सुप्रीम अथॉरिटी को करना पड़ी चर्चा और किन बिंदु्ओं पर बनी सहमति जानिए इनसाइड स्टोरी...
नतीजों के बाद से जारी थी खींचतान
13 मई को कर्नाटक के चुनाव नतीजे जारी होने के बाद से लगातार इस बात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज थी कि सीएम कौन बनेगा? कोई सिद्धारमैया तो कोई डीके शिवकुमार को लेकर अपने-अपने दावे कर रहा था। 4 दिन तक बेंगुलुरु और दिल्ली में सियासी पारा चढ़ा रहा, कभी चर्चा का केंद्र 10 जनपथ रहता तो कभी अकबर रोड। चर्चा का बिंदु कर्नाटक का राजनीतिक नाटक सुलझाना, लेकिन मामला दिन ब दिन उलझता ही नजर आया। कभी ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तो कभी 2 और 3 साल का फॉर्मूला चर्चा में आया। कभी डीके पर दर्ज आपराधिक मामले उनकी राह रोकते नजर आए तो कभी सिद्धारमैया के मुकाबले डीके की सक्रियता ने उनका सियासी वजन बढ़ाया। लेकिन आखिर में सिद्धारमैया ने सभी संभावनाओं को थामते हुए सीएम की कुर्सी अपने नाम कर ली। लेकिन डीके के साथ जो समझौता हुआ उसमें केंद्रीय नेतृत्व को अहम भूमिका निभानी पड़ी। खड़गे जब डीके को मनाने में सफल नहीं हुए तो मोर्चा संभाला सोनिया गांधी ने, आखिर सोनिया से कैसे माने डीके आइए आपको बताते हैं।
सोनिया ने कॉल किया तब जाकर माने डीके!
बुधवार (17 मई) रात के 10 बज रहे थे। सिद्धरमैया कर्नाटक कांग्रेस के इंचार्ज रणदीप सुरजेवाला के साथ मीटिंग कर रहे थे। उनके साथ कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी केसी वेणुगोपाल भी थे। रात 10.30 पर कांग्रेस नेता अजय सिंह ने कहा कि 'आज ही रात आखिरी निर्णय ले लिया जाएगा। कोई खास दिक्कत नहीं है।' इधर रणदीप सिंह सुरजेवाला केसी वेणुगोपाल के घर पहुंचते हैं और फिर बातचीत शुरू होती है। यही वो मीटिंग थी जिसमें डीके शिवकुमार को डिप्टी CM के लिए मना लिया गया। मीटिंग देर रात करीब 1 बजे तक चलीही। जिसमें सबसे पहले खड़गे ने डीके को मनाया लेकिन डीके नहीं माने, डीके ने खड़गे के तमाम तर्कों और दलीलों को खारिज कर दिया। जिसके बाद प्रियंका-राहुल ने डीके से बात की लेकिन डीके कहा मानने वाले थे। जब बात नहीं बन रही थी तो फिर डीके की सोनिया गांधी से बात करवाई गई। सोनिया शाम को डीके से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बात कर चुकी थीं, लेकिन उसमें बात नहीं बन पाई थी। रात में उन्होंने फोन कॉल पर डीके से बात की। डीके को साफ बताया गया, 'कर्नाटक में कोई भी डिसीजन उनकी सहमति के बिना नहीं लिया जाएगा। सिद्धारमैया को भले ही सीएम बनाया जा रहा है, लेकिन उन्हें हर निर्णय में डिप्टी सीएम की सहमति आवश्यक ही होगी। साथ ही डीके को यह भी कहा गया कि, आपकी पसंद के विधायकों को वो पोर्टफोलियो दिए जाएंगे, जो वो चाहते हैं। ढाई साल बाद सिद्धारमैया को हटाकर आपको CM बना दिया जाएगा।'
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डोड्डालाहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार के बिना नहीं होंगे फैसले
जब यह सब बातें हो रहीं थीं तब डीके के साथ उनके आठ से दस समर्थक और भाई डीके सुरेश भी मौजूद थे, जो कर्नाटक में कांग्रेस के एकमात्र सांसद हैं। सोनिया गांधी से बातचीत के बाद डीके नरम पड़े और रात में करीब 2 बजे तक वो नए फार्मूले पर पूरी तरह से राजी हो गए थे। इसके बाद तय हुआ कि 18 मई को शाम 7 बजे कांग्रेस विधायकों की मीटिंग बुलाई जाएगी और सिद्धारमैया को विधायक दल का नेता चुना जाएगा। कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने आज शाम को विधायक दल की बैठक बुलाई है। सुबह 10.30 बजे के करीब डीके ने खुद नए फार्मूले पर सहमति होने की बात कही। पिछले तीन दिनों से जो उठापटक चल रही है, उससे गलत मैसेज जा रहा है। सभी नेताओं को एकजुट होकर देश को मैसेज देना है कि कांग्रेस में कोई गुट नहीं है। पूरी पार्टी एक है। इसी प्लानिंग के तहत आज सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार एक ही गाड़ी से निकले। कर्नाटक का राजनीति को करीब से जानने वालों का मानना है कि 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया जब CM थे तब वो हाईकमान के कंट्रोल में नहीं थे। वो सारे डिसीजन अपने हिसाब से कर थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा। अब हर डिसीजन में डीके शिवकुमार को शामिल करना ही होगा।
सोनिया को मां की तरह मानते हैं डीके
डीके शिवकुमार गांधी परिवार के लिए पूरी तरह से वफादार हैं। वे सोनिया गांधी को मां की तरह मानते हैं। CM पद के लिए मची खींचतान तब और उलझ गई जब राहुल गांधी सिद्धारमैया को CM बनाने की वकालत कर रहे थे, लेकिन सोनिया और प्रियंका गांधी डीके शिवकुमार के नाम पर सहमत थीं। कांग्रेस लीडरशिप ने इस पूरी स्थिति को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए देखा। फिर यह तय हुआ कि डीके को अभी CM बनाया तो लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। सिद्धारमैया के मामले में ऐसा नहीं होगा। राहुल के साथ ही सोनिया गांधी ने भी डीके शिवकुमार से तमाम पॉइंट़्स पर बात की। इसके बाद उनकी बात सोनिया से करवाई गई तब जाकर डीके ने सहमति दी।
CBI और ED ने रोकी डीके की राह
डीके ने विधानसभा चुनाव में जिस तरह से मोर्चा संभाला था उससे उन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस बार CM उन्हें ही बनाया जाएगा। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी रुकावट बने वो केस जो हाल ही में सेंट्रल एजेंसियों ने उन के खिलाफ दर्ज किए थे। सूत्र बताते हैं कि पहले सोनिया गांधी डीके के नाम पर सहमत थीं, पर वो दो-तीन वजहों (डीके पर दर्ज केस) से पिछड़ गए। पहली बड़ी वजह रही उनके ऊपर चल रही CBI और ED की जांच। कांग्रेस को डर था कि उन्हें CM बनाया तो BJP हमलावर हो सकती है। कांग्रेस को इससे नुकसान होगा। हाल में कर्नाटक के DGP प्रवीण सूद को CBI का डायरेक्टर भी बनाया गया है। आपको बता दें कि डीके और प्रवीण सूद की बिल्कुल नहीं पटती। कहा जा रहा था कि सूद को जानबूझकर ऐनवक्त पर CBI की कमान सौंपी गई है, क्योंकि डीके ने सरकार आने के बाद उन पर एक्शन लेने की बात कही थी।
सिद्धारमैया की छवि का फायदा उठाएगी कांग्रेस
दूसरी वजह ये रही कि वे वोक्कालिग्गा कम्युनिटी से आते हैं। इस कम्युनिटी की कर्नाटक में करीब 11% आबादी है। ओल्ड मैसूरु में इसका असर है। डीके की ओल्ड मैसूरु में अच्छी पकड़ है, लेकिन पूरे कर्नाटक के नजरिए से देखा जाए तो सिद्धारमैया डीके पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं। वे कुरुबा कम्युनिटी से आते हैं और उनकी दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों में भी पकड़ है। उनकी सेकुलर छवि है। कांग्रेस सिद्धारमैया की साफ छवि का फायदा लोकसभा चुनाव में उठाना चाहती है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। इनमें सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस का सांसद है। वे भी डीके शिवकुमार के छोटे भाई डीके सुरेश हैं। इस बार पार्टी चाहती है कि 28 में से कम से कम 20 सीटें अपने पाले में की जाएं। इसके जरिए जरूरी है कि सिद्धारमैया की छवि, जमीनी पकड़ डीके की संगठन क्षमता का फायदा उठाया जाए।