GWALIOR. शिक्षाविद डॉ. हरिसिंह गौर विधिवेत्ता के रूप में ऐसे अनेक कानूनी सुधारों के जनक हैं जिनसे भारत के वंचित समुदाय को न केवल राहत मिली बल्कि उन्हें बराबरी का दर्जा और सम्मान मिला। शिक्षा और सामाजिक सुधार में उनका योगदान अतुलनीय है। उन जैसी विभूतियों के स्मरण से सभी को प्रेरणा मिलती है। लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय संस्थान नई दिल्ली के पूर्व कुलपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी ने डॉ. हरिसिंह गौर की जयंती पर कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किए।
भेदभाव की समाप्ति डॉ. गौर के प्रयासों का फल- डॉ. त्रिपाठी
डॉ. हरिसिंह गौर के राष्ट्रीय जीवन में योगदान पर खचाखच भरे हॉल में बोलते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि देवदासी प्रथा का अंत, महिलाओं को वकालत का अधिकार, प्रवासी भारतीयों के साथ भेदभाव की समाप्ति डॉ. गौर की पहल और प्रयासों का ही फल है। लंदन की 'इंडिया ऑफिस' को उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की दुर्नीतियों का वाहक घोषित करते कहा था कि यह संस्था भारतीयों को हेय दृष्टि से देखती है। नई प्रयुक्तियों में उनकी रुचि थी जिनके पेटेंट भी उन्होंने कराए।
डॉ. हरिसिंह गौर साहसी और समाज सुधारक के रूप में जाने जाना चाहते थे- रघु ठाकुर
अध्यक्षीय उद्बोधन में रघु ठाकुर ने बताया कि डॉ. गौर केवल विश्वविद्यालयों के संस्थापक और कुलपति ही नहीं थे। अंतर्जातीय विवाह को कानूनी मान्यता, महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार उन्हीं के कारण मिला। संपत्ति के हस्तांतरण और हिन्दू विधि के वे सर्वमान्य विद्वान थे। रूढ़ि और बंधन को तोड़ने को ही वे शिक्षा का सबसे बड़ा पैमाना मानते थे। डॉ. हरिसिंह गौर के देशप्रेम का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें अपनी जन्मभूमि से प्रेम था इसलिए सागर में विश्वविद्यालय खोलने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। यदि ये विश्वविद्यालय न होता तो बुंदेलखंड हर दृष्टि से कितना पिछड़ा होता इसकी कल्पना करना भी कठिन है।
डॉ. हरिसिंह गौर को देशभर में याद किया जाना चाहिए
रघु ठाकुर ने कहा कि प्रोफेसर रामसिंह तोमर और डॉ. हरिसिंह गौर में ये समानता है कि जो समुदाय शस्त्र के लिए जाने जाते थे। उन्हें शास्त्र या विद्या से जोड़कर समय के अनुरूप ढलने के लिए प्रेरित किया। डॉ. गौर स्वयं को साहसी और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाना पसंद करते थे। रघु ठाकुर ने कहा कि डॉ. हरिसिंह गौर को देशभर में याद किया जाना चाहिए। वे चाहते थे कि जिन पीड़ाओं से वे गुजरे हैं उनसे भावी पीढ़ी का वास्ता न पड़े। नैतिकता को ही वे सबसे बड़ा धर्म मानते थे, हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल पक्षधर थे जिसे वे लिंक भाषा यानी जोड़ने वाली भाषा कहते थे। चुनावों में साम्प्रदायिकता की समाप्ति के लिए उन्होंने सुझाव दिया था कि प्रत्याशी को क्षेत्र के अल्पसंख्यकों के 25 फीसदी वोट मिलना अनिवार्य कर देना चाहिए। सहशिक्षा के प्रसार व जातिव्यवस्था उन्मूलन की दिशा में डॉ. गौर ने जो प्रयास किए उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। वे स्वदेशी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के पक्षधर थे।
'आज समाज की आत्मा का व्यवसायीकरण'
अतिथि डॉ. दौलत सिंह चौहान ने शिक्षा के प्रसार में डॉ. हरिसिंह गौर के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज समाज की आत्मा का व्यवसायीकरण हुआ है इसलिए समाज के सच्चे आदर्शों को नहीं पहचान पा रहे। अगर हम अमीरी गरीबी के बीच की खाई नहीं पाट सके और हर किस्म की गैर बराबरी नहीं दूर कर सके तो यह डॉ. गौर और देश के सभी नायकों के सपनों पर पानी फेरना होगा। डॉ. चौहान ने शिक्षा को गांव और समाज से जोड़ने की जरूरत बताई।