देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने प्रदेश में आयुष्मान घोटाले में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि ये व्यापमं से भी बड़ा घोटाला है और इनमें सिर्फ एक बाबू को दोषी ठहराने से शंका बढ़ जाती है। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की ताकि गरीबों का हक लूटने वाले लोग दंडित हो सकें।
'आयुष्मान योजना में गरीबों का हक लूटा'
नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि भारत सरकार ने गरीबों की रक्षा के लिए आयुष्मान योजना पूरे देश में लागू की है। इसमें 5 लाख रुपए की चिकित्सा मुफ्त कराने की व्यवस्था है। मध्यप्रदेश में चौतरफा लूट मची है। शिवराज सरकार में बैठे अधिकारी और लोग, मंत्री तक सब इस घोटाले में शामिल हैं।
'फर्जी अस्पतालों को दिए करोड़ों रुपए'
डॉ. गोविंद सिंह ने आरोप लगाया कि जो अस्पताल है ही नहीं, जिनमें न डॉक्टर हैं और न पलंग ऐसे अस्पतालों को 5-5 करोड़ का भुगतान कर दिया। जांच कमेटी की रिपोर्ट भी आ गई जिसमें पता चला कि जो अस्पताल है ही नहीं उन्हें भी करोड़ों का भुगतान कर दिया गया। वीडियो भी वायरल हो गया। महिला अधिकारी के रिश्तेदार पैसे लेते दिखे। उन्हें नोटिस दिए गए लेकिन 2 महीने हो गए। हमने भी विधानसभा में इस मामले को उठाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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'इसमें बीजेपी के नेताओं ने फिरौती ली है'
नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि क्या 250 करोड़ का घोटाला कोई बाबू कर सकता है ? दरअसल इसमें बीजेपी नेताओं तक फिरौती वसूली जा रही है इसलिए कोई कार्रवाई नहीं हो रही। मेरी मांग है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान यदि आप पाक साफ हैं तो इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपें और दोषी लोगों को जेल पहुंचाएं।
घोटाले में सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी को किया गया सस्पेंड
आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध मध्यप्रदेश के 620 निजी अस्पतालों में से 120 ने 200 करोड़ रुपए का घोटाला किया था। इस मामले में 6 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत आशीष महाजन को सस्पेंड किया गया है। महाजन पर वेंडरों से लेनदेन, निजी अस्पतालों को डराकर उनसे वसूली करने सहित कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं।
आयुष्मान योजना में ऐसे की गई थी गड़बड़ी
आयुष्मान योजना के घोटाले की जांच में कई तरह के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। कई अस्पतालों में खुद के कर्मचारियों के नाम पर आयुष्मान कार्ड बनवा लिए गए थे और उन्हें मरीज बनाकर रकम निकाल ली गई थी। इसी तरह किसी मरीज का बिल 50 हजार का बना तो उसे बढ़ाकर 2 लाख रुपए की राशि सरकार से वसूल ली जाती थी। ग्रामीण क्षेत्र के आयुष्मान कार्डधारियों को अस्पताल लाने के लिए जगह-जगह एजेंट नियुक्त किए गए थे।