BHOPAL. एक शेर आपने जरूर सुना होगा। हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था। मध्यप्रदेश बीजेपी के संदर्भ में ये शेर कुछ यूं कहा जाना चाहिए कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, हमारी कश्ती उन्होंने डुबाई जिनकी बाजुओं में दम था। कुछ सर्वे बीजेपी को यही इशारा कर रहे हैं कि उसकी कश्ती डूब भी सकती है। यही वजह है कि पार्टी चुनावी दरिया पार करने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है।
बीजेपी के तजुर्बेकार नेताओं ने पल्ला झाड़ा
बीजेपी ने चुनाव की नैया पार लगाने के लिए जिन नेताओं पर भरोसा जताया। वही नेता उसे धोखा देने की तैयारी कर चुके हैं। घर पर मुसीबत आती है तो घर के तजुर्बेकार व्यक्ति उस मुसीबत से पार लगाते हैं, लेकिन बीजेपी के साथ कुछ उल्टा ही हुआ है। यहां तजुर्बेकार नेताओं ने सबसे पहले पार्टी से पल्ला झटक लिया है।
चुनावी साल में बीजेपी के सामने ढेरों चुनौतियां
चुनावी साल में बीजेपी को ढेरों चुनौतियों का सामना करना है। कुछ ऐसे चैलेंज हैं जिनके लिए पार्टी पहले से तैयार थी। कुछ ऐसी चुनौतियां भी हैं, जो बीजेपी ने शायद ही कभी सोची होंगी कि उन्हें फेस करना होगा। इस बार बीजेपी को जो चैलेंज मिला है वो घर के अंदर से ही मिला है। मतलब अपने अपनों से ही मिला है। इन अपनों पर भरोसा कर पार्टी ने उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंप दी थी। उस जिम्मेदारी को निभाकर पार्टी को जिताने का जतन करने जगह नेताओं ने उससे मुंह मोड़ लेना बेहतर समझा।
दिग्गज नेताओं ने पार्टी का साथ देने से किया इनकार
इस चुनावी साल में बीजेपी का फोकस उन सीटों पर है जिसमें पार्टी की स्थिति पिछली बार सबसे ज्यादा खराब रही। कमजोर परफॉर्मेंस वाली 100 सीटों को मार्क किया गया है। जिन पर जीत दिलाने की जिम्मेदारी बीजेपी ने ऐसे दिग्गज नेताओं को सौंपी थी जिनका टीम मैनेजमेंट बढ़िया है। कार्यकर्ताओं के दिल जीतना वो खूब जानते हैं। इसके साथ ही चुनावी रणनीति बनाने में माहिर हैं, लेकिन अफसोस कि ऐसे नेताओं ने अपनी ही पार्टी का बुरे वक्त पर साथ देने से मना कर दिया। 100 में से अधिकांश सीटों पर जिन दिग्गज नेताओं को जीत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन नेताओं ने इस काम को करने से इनकार कर दिया है।
दिग्गजों से हारी बीजेपी कार्यकर्ताओं के भरोसे
क्या आपको दिग्गज नेताओं के इस रवैये से गुटबाजी की बू आ रही है। बीजेपी का ताजा हाल देखकर शायद आप ऐसा सोच रहे हों, लेकिन ऐसा पूरी तरह नहीं है। मामला गुटबाजी से ज्यादा तालमेल और निजी स्वार्थ का है। जिसके चलते दिग्गजों ने प्रभार वाली सीटों से हाथ खींच लिया है। इस फैसले ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं क्योंकि जबरदस्ती क्षेत्र में भेजे गए दिग्गज खास कमाल दिखाने की कोशिश करेंगे, इस पर भी संशय ही है। दिग्गजों से हारी बीजेपी अब सिर्फ कार्यकर्ताओं के भरोसे है।
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स्वार्थ की वजह से जिम्मेदारी लेने से कतरा रहे दिग्गज
अपने वरिष्ठ और तजुर्बेकार नेताओं के खजाने को खंगालने के बाद बीजेपी ने ऐसे नेता चुने थे जो पहले एक साथ कई सीटों की जिम्मेदारी संभाल भी चुके हैं और पार्टी को जीत भी दिलवा चुके हैं। इस बार वही नेता इस जवाबदारी से फारिग होना चाहते हैं। पिछले चुनाव में चंद सीटों के अंतर से हारी बीजेपी इस बार कोई चांस नहीं लेना चाहती थी। इसलिए सबसे चतुर सिपहसालारों को जीत का जिम्मा सौंपा था पर बहुत सारे कारण गिनाकर वो सिपहसालार जंग के मैदान से ही बाहर होने के ख्वाहिशमंद हैं। खबर है कि बहुत से दिग्गज नेताओं ने स्थानीय नेताओं से तालमेल नहीं जम पाने का हवाला देकर इस जिम्मेदारी से इनकार कर दिया है। कुछ दिग्गज नेता इस बार टिकट की आस लगाए बैठे हैं। इस स्वार्थ के चलते पार्टी हित में जिम्मेदारी लेने से कतरा रहे हैं।
बीजेपी के हाल पर कांग्रेस ले रही चुटकी
बीजेपी भले ही सीधे तौर पर ना माने लेकिन अनुशासित पार्टी में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। ये अब नजर आने लगा है। कुछ नेता टिकट की आस में हैं तो कुछ संगठन में बड़ा पद पाने के ख्वाहिशमंद है। सूत्रों की माने तो शैलेंद्र बरूआ अटेर, आशुतोष तिवारी सेवड़ा पुष्पेंद्र प्रताप सिंह ‘गुड्डू राजा’ छतरपुर, जसवंत सिंह हाड़ा शुजालपुर, प्रवीण शर्मा डॉली चित्रकूट, संजय नागाइच पवई, विनोद गोटिया जबलपुर, पुष्पेंद्र नाथ पाठक, गुड्डन महाराजपुर, रायसिंह सेंधव, आलोक संजर, राजेंद्र भारती, चेतन सिंह, राजो मालवीय, केशव सिंह भदौरिया, जितेंद्र लिटोरिया, जयप्रकाश चतुर्वेदी, संतोष जैन, वसंत माकोड़े और नरेंद्र शिवाजी पटेल सहित कई नेताओं को इस बार टिकट मिलने की उम्मीद है। इसलिए वो दूसरी सीटों पर ध्यान देने की जगह अपनी सीट से टिकट हासिल करने की जोड़-तोड़ और जीत के लिए मेहनत करने में जुटे हैं। बीजेपी के इस हाल पर कांग्रेस भी चुटकी ले रही है।
बीजेपी को मिल रहा चिंताजनक फीडबैक
हालात ये हैं कि विंध्य सीट से पिछले चुनाव में अच्छा रिस्पॉन्स हासिल करने वाली बीजेपी को यहां से चिंताजनक फीडबैक मिल रहा है। यही हाल ग्वालियर, चंबल और निमाड़ का भी है। यहां की कमजोर सीटों पर ही दिग्गजों को जीत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब उनके मुंह मोड़ लेने के बाद बीजेपी के पास कार्यकर्ताओं का नेटवर्क मजबूत करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है।
200 पार का मकसद कैसे होगा पूरा?
अब बीजेपी का प्लान है कि बूथ स्तर तक वोट शेयर बढ़ाने के लिए वो और भी ज्यादा कार्यकर्ताओं को तैनात करेगी। एक तरफ राजनीतिक फीडबैक बीजेपी के थिंकटैंक की चिंता बढ़ा रहा है। दूसरी तरफ दिग्गजों की जिद मुसीबत बन गई है। फिक्र की वजह केवल इतनी ही नहीं है। चुनावी साल में सिर पर सवार हुए क्षेत्रीय दल भी मुश्किलें बढ़ाने के लिए काफी हैं। करिश्माई नेता साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं और कार्यकर्ता पहले से ही उदासीन हैं। ऐसे में 200 पार का मकसद कैसे पूरा होगा। बस यही सवाल बीजेपी के चुनाव प्रबंधकों को खाए जा रहा है।