संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर के ऐतिहासिक गांधी हॉल को निजी हाथों में नहीं दिया जाएगा। द सूत्र द्वारा शनिवार (20 मई) को यह खबर ब्रेक करने के बाद शहर भर में उठे विरोध के सुर के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने यह फैसला लिया है और कहा है कि यह शहर की धरोहर है और अब स्मार्ट सिटी इसके मेंटनेंस को लेकर कोई फैसला नहीं लेगी। द सूत्र से बात करते हुए भार्गव ने साफ कर दिया कि यह सभी ऐतिहासिक इमारतें हैं और गांधी हॉल ही नहीं कोई भी धरोहर हो उनका फैसला नगर निगम, जनप्रतिनिधि, प्रबुद्ध नागरिक मिलकर करेंगे और संचालन भी मिलकर करेंगे। भार्गव ने बीते दो दिन में दो बड़े फैसले लिए हैं, जिससे उन्होंने संदेश देने की कोशिश की है कि शहर के लिए फैसला महापौर और जनप्रतिनिधि करेंगे, ना कि कोई अधिकारी।
स्मार्ट सिटी बोर्ड में कोई भी जनप्रतिनिधि ही नहीं
जिस स्मार्ट सिटी बोर्ड ने गांधी हॉल को लीज पर देने का फैसला लिया था, हैरत की बात है कि स्मार्ट सिटी बोर्ड गठन में कोई जनप्रतिनिधि, महापौर, शहर का प्रबुद्धजन शामिल ही नहीं हैं। इसमें सिर्फ अधिकारी ही सदस्य बने हुए हैं और यह बोर्ड शहर के हितों, धरोहरों को लेकर फैसला ले रहा है। वर्तमान बोर्ड में इंदौर कलेक्टर चेयरमैन है, निगमायुक्त एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है, सेंट्रल गवर्नमेंट से अश्विन कुमार, स्टेट गवर्नमेंट से आईएएस रूचिका चौहान और प्रकाश जैन, डायरेक्टर मनोनीत है। इसके साथ ही आईडीए सीईओ, टीएंडसी के ज्वाइंट डायरेक्टर, एमपीईबी के चीफ इंजीनियर और पब्लिल हैल्थ विभाग से चीफ इंजीनियर पदेन डायरेक्टर है। साथ ही स्मार्ट सिटी सीईओ और अन्य पदाधिकारी भी बोर्ड में शामिल है।
महापौर के दो दिन में दो बड़े फैसले
महापौर ने दो दिन में दो बड़े फैसले लिए हैं, जो यह संदेश देने के लिए काफी है कि शहर में अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों से पूछकर फैसले लेने होंगे।
- पहला बड़ा कदम उनके द्वारा कलेक्टर डॉ. इलैया राजाटी को लिखा गया सख्त पत्र था। इसमें नगर निगम के काम में सीधे निर्देश देने को लेकर आपत्ति ली गई, मामला सूर्यदेव नगर में मंदिर टूटने पर था, जिस पर सवाल महापौर पर उठ रहे थे कि निगम ने मंदिर कैसे तोड़ दिया। इसके बाद महापौर ने पत्र लिखकर इस पर आपत्ति ली और साथ ही कहा कि भविष्य में निगम के काम में सीधे हस्तक्षेप नहीं करें।
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यह लिया था स्मार्ट सिटी ने फैसला
स्मार्ट सिटी ने टेंडर कर गांधी हाल को उज्जैन की एक कंपनी को 50 लाख प्रति साल राशि पर लीज पर दे दिया था। कंपनी को इसमें आयोजनों के लिए मंजूरी देने और उसके लिए किराया लेने का अधिकार दिया गया। अधिकारियों का तर्क था कि इससे गांधी हॉल का रखरखाव बेहतर हो सकेगा।
लोगों ने देखा था रविंद्र नाट्य गृह का हाल
इसके पहले यह शहर रिनोवेशन के नाम पर रविंद्र नाट्य गृह का हाल देख चुके हैं। नगर निगम और एक मीडिया समूह ने मिलकर इसका रिनोवेशन किया और 2009 में इसे फिर शुरू किया गया, लेकिन आज की तारीख में यहां एक आयोजन 40 हजार रुपए से ज्यादा का पड़ रहा है। गांधी हाल के लीज पर जाने के बाद बुद्दीजिवियों, कलाकारों को इसी बात की आशंका थी कि यहां फिर जो अभी 11 हजार रुपए किराया नगर निगम लेता है वह भी बहुत महंगा हो जाएगा और आमजन, कलाकारों से यह गांधी हॉल भी वैसा ही दूर ह जाएगा जैसे कि रविंद्र नाट्य गृह हो गया है।