BHOPAL. दीपिका पादुकोण के बेशर्म रंग देखकर बिफरने वाले बीजेपी नेताओं के मुंह पर लगता है ताला लटक गया है। जो मंत्री से लेकर नेता तक दीपिका पादुकोण की बिकिनी के रंग के लिए फिक्रमंद थे। प्रदेश के वो मंत्री और नेता उस वक्त पूरी तरह से खामोश नजर आए जब कुछ लोग उनके मुखिया के लिए सरेआम बेशर्मी भरे अल्फाज कह गए। इस घटना पर शिवराज सिंह चौहान ने भी सबके सामने खुलकर अपनी व्यथा जाहिर की। क्या पता ये व्यथा उस अजनबी के लिए थी या सत्ता के शिखर पर भी यूं अकेले पड़ जाने पर थी या चुनावी हार के डर से बीजेपी ने अपनी आन-बान और शान से समझौता कर लिया है।
अकेला पड़ जाता है ताकत खो रहा राजनेता
सियासत में किसी नेता के नाम का सूरज जगमगाता है और किसी का सूरज ढलता है। ताकत खो रहे राजनेता का सियासत की दुनिया में अकेला पड़ जाना आम बात है लेकिन शिवराज सिंह चौहान उन नेताओं में से एक हैं जो मध्यप्रदेश में सत्ता के शिखर पर हैं। लगातार चौथी बार सीएम बन, प्रदेश में इतिहास रच चुके हैं। प्रदेश की पूरी पावर उनके पास है। उसके बावजूद अगर सिर घुमाते होंगे तो खुद को अकेला ही पाते होंगे।
हैरान कर रहा शिवराज कैबिनेट के मंत्रियों का रवैया
सबसे पावरफुल पोस्ट पर रहते हुए शिवराज सिंह चौहान के आसपास न उनके अपने मंत्री नजर आ रहे हैं और न ही संगठन के वो साथी जो अधिकांश मुद्दों पर मुखर रहते हैं। करणी सेना के आंदोलन में मौजूद एक शख्स ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जमकर बुरा भला कहा। सीएम को यकीनन बुरा लगा जिसका दर्द भी साफ दिखाई दिया। ये पूरा घटनाक्रम जितना चौंकाने वाला था उससे भी ज्यादा हैरान करने वाला रहा शिवराज कैबिनेट के मंत्री और संगठन के नेताओं का रवैया।
करणी सेना के आंदोलन के दौरान सीएम को कहे अपशब्द
करणी सेना के आंदोलन के बहाने कुछ लोगों ने जमकर सुर्खियां बटोरी। ये लोग शामिल तो भोपाल में हुए करणी सेना के आंदोलन में हुए थे लेकिन खबरों में रहे सीएम शिवराज सिंह चौहान को खरी-खोटी सुनाने को लेकर। ओछी और भद्दी भाषा में सीएम को बुरा भला कहकर वायरल हुए इन लोगों से करणी सेना ने भी तुरंत पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद इस पूरे घटनाक्रम पर पूरे प्रदेश में सन्नाटा ही खिंचा रहा।
सीएम को अपशब्द कहने के मामले में बीजेपी में सन्नाटा
आमतौर पर जब किसी नेता को अपशब्द कहे जाते हैं या अपमान किया जाता है तब उसके समर्थक आंदोलन का दौर शुरू कर देते हैं। कहीं पुतले जलते हैं तो कहीं धरना प्रदर्शन होता है। उस नेता के साथी भी नाराजगी जताने से नहीं चूकते लेकिन इस घटनाक्रम पर पूरी बीजेपी में ऐसा सन्नाटा पसरा है जैसे हर नेता को सांप ही सूंघ गया हो। नाराजगी जताने के नाम पर सिर्फ किरार समाज आगे आया जिसकी अध्यक्ष सीएम की पत्नी साधना सिंह चौहान हैं लेकिन कोई आंदोलन या प्रदर्शन करने की जगह किरार समाज के नुमाइंदे भी सिर्फ एफआईआर दर्ज करवाकर वापस लौट गए। इसके बाद सीएम को अश्लील गालियां देने वाले को हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया गया। बड़ा दिल दिखाते हुए सीएम शिवराज ने उस शख्स को माफ भी कर दिया है।
शिवराज का एक भी साथी कुछ नहीं बोला
4 दिन, पूरे 4 दिन खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान इस मुद्दे पर शांत रहे। शायद ये इंतजार कर रहे होंगे कि उनका कोई साथी, मंत्रीमंडल का कोई सदस्य या संगठन का कोई सहयोगी इस मसले पर कुछ कहेगा। पलटवार करने में सबसे आगे रहने वाला उनका एक भी साथी इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला। बोला भी तो एक ऐसा मंत्री जिससे प्रतिक्रिया मिलने का इंतजार खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान को नहीं होगा। करणी सेना का आंदोलन खत्म करवाने में पैरवी करने वाले राजपूत मंत्री भी इस बेइज्जती पर चुप्पी साधे रहे। मुखिया के तिरस्कार पर ये चुप्पी भला क्यों। क्या पूरी बीजेपी ने शिवराज का साथ छोड़ दिया है या राजपूत वोट्स को गंवाने का डर अब अपने मुखिया की इज्जत से ज्यादा प्यारा हो गया है।
सीएम शिवराज ने ट्वीट कर बताई व्यथा
खुद को अश्लील गालियां देने वालों की हरकत पर सीएम पूरे 4 दिन सब्र बांधे रहे। चौथे दिन उन्होंने बैक टू बैक ट्वीट किए। इन ट्वीट्स में ये तो जाहिर कर दिया कि इस घटना के बाद वो व्यथित हैं। साथ ही ये भी जताया कि कम से कम उनकी दिवंगत मां को इस तरह अपशब्द नहीं कहे जाने थे। शिवराज की ये व्यथा लाजिमी भी थी। पर थी क्यों, क्या सिर्फ वो एक अनजान शख्स की हरकत से इतने व्यथित हुए कि ट्वीट करने पर मजबूर हुए या इस व्यथा में ये दर्द भी शामिल है कि उनके अपने ही उनका साथ देने से पीछे हट रहे हैं। शिवराज कैबिनेट के सिर्फ एक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने इस मुद्दे पर खुलकर आलोचना की।
क्या ये राजपूत वोट्स गंवाने का डर ?
वीडी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया और न जाने कितने ही नाम है जो किसी भी मुद्दे पर जवाब देने, सवाल करने या पलटवार करने में पीछे नहीं रहते लेकिन जब बारी शिवराज सिंह चौहान की आई। तब इनमें से एक भी नेता ये भी नहीं कह सका कि वो इस शख्स की बात की निंदा करते हैं। क्या ये राजपूत वोट्स को गंवाने का डर है। पिछले विधानसभा चुनाव में करणी सेना जैसे राजपूत समाज के संगठनों ने ग्वालियर, चंबल और मालवा जैसे अंचलों में बीजेपी को नुकसान पहुंचाया था। आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्ण समाज के संगठनों ने विरोध किया था जिसमें राजपूत भी शामिल थे। चुनावी पंडितों का मानना है कि इस एक्ट के चलते और माई का लाल के जुमले के चलते बीजेपी और शिवराज सरकार से नाराजगी बढ़ गई थी।
मध्यप्रदेश में 7 से 8 प्रतिशत राजपूत वोटर्स
एक मोटे आंकलन के मुताबिक मध्यप्रदेश में राजपूत वोटर्स की संख्या 7 से 8 प्रतिशत है। प्रदेश की कम से कम 40 से 45 सीटों पर राजपूत वोटर्स हार-जीत का फैसला करते हैं। कहीं इसी डर के चलते बीजेपी ने अपने मुखिया को अकेला तो नहीं छोड़ दिया क्योंकि बीजेपी जानती है कि एक भी सीट का नुकसान आने वाले चुनाव में उसे हार की तरफ धकेल सकता है।
अपनी ही पार्टी में अकेले पड़े सीएम शिवराज
महज 2 ट्वीट में ही शिवराज का दर्द साफ दिखाई दे रहा है। अपनी ही सरकार और अपनी ही पार्टी में वो किस कदर अकेले पड़ चुके हैं। इसका अंदाजा इस पूरे घटनाक्रम से लगाया जा सकता है।
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मुखिया की शान से समझौता या कुछ और है अंदरूनी मामला ?
कभी डिनर पॉलिटिक्स, कभी सर्वे का डर तो कभी बैठकों पर बैठकें कर शिवराज कई बार अपने मंत्रियों से तालमेल बिठाने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन उसका कोई असर मैदान में नजर नहीं आ रहा। कभी शिवराज सदन में अकेले मोर्चा संभाले नजर आते हैं। कभी जनता के बीच अकेले खड़े नजर आते हैं। इस बार जब उन्हें अपने सहयोगियों से मॉरल सपोर्ट की जरूरत थी तब भी शिवराज अकेले ही दिखाई दिए। अपनी आन बान और शान पर मर मिटने वाले राजपूतों के वोट्स गंवा न बैठें इस डर से बीजेपी के नेताओं ने क्या अपने मुखिया की आन-बान से ही समझौता कर लिया है या बीजेपी का अंदरूनी मामला कुछ और है।