BHOPAL. मध्यप्रदेश के अपकमिंग इलेक्शन का मेन एजेंडा सेट करने का जिम्मा इस बार साधु-संतों ने संभाल लिया है। पहले ये काम राजनेता किया करते थे, लेकिन धर्म का मामला सेंसेटिव होने के बाद लगता है राजनेता साधु-संतों के पीछे छुपकर एजेंडा तय करवा रहे हैं। ये तो छोड़िए, नेता अब तक चुनाव प्रचार में एक्टिव नहीं हुए, उनकी जगह साधु-संत ही शक्ति प्रदर्शन पर उतर आए हैं।
मध्यप्रदेश के नंबर-1 बाबा कौन हैं?
मध्यप्रदेश के नंबर वन बाबा कौन हैं। 2 दिन पहले तक इस सवाल का सबसे मुफीद जवाब लग रहे थे बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री। हर खबर, हर सुर्खी, हर चैनल और सोशल मीडिया पर बाबा छाए हुए थे। बाबा की रैंकिंग बढ़ी तो प्रदेश के दूसरे बाबाओं ने भी चुप्पी तोड़ी। हुआ ये कि जिस नंबर की तरफ धीरेंद्र शास्त्री तेजी से निर्विरोध पहुंचने वाले थे उसकी रफ्तार पर ब्रेक लग गया। ठीक वैसे ही जैसा ब्रेक भोपाल इंदौर हाईवे पर चलने वाली गाड़ियों में लगा रहा। आधे घंटे में पूरा होने वाला 27 किलोमीटर का सफर लोगों ने पांच या उससे ज्यादा घंटे में पूरा किया। वजह थी कुबेरेश्वर धाम का रुद्राक्ष महोत्सव। इसमें शामिल होने इतने लोग पहुंचे कि 6 लेन हाइवे भी गाड़ियों को झेल नहीं पाया। लंबा जाम फिर रुद्राक्ष के लिए मारा-मारी। भक्तों का जमावड़ा। इन सबका नतीजा ये हुआ कि कुबेरेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा उस दिन बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री से सुर्खियों में कहीं ज्यादा आगे निकल गए। चुनावी साल में ये होड़ क्या महज धार्मिक आयोजनों के लिए है। साधु-संत भी ये समझ चुके हैं कि जो बाबा नंबर वन होगा उसी के दरबार से ज्यादा सियासी पर्चियां गुजरेंगी या चुनावी साल में डबल चांदी भी उसी की होगी जो सबसे ज्यादा भीड़ जुटाने में भी अव्वल नजर आएगा।
इस साल सबसे ताकतवर धाम कौनसा होगा?
पल-पल बढ़ता भक्तों का मेला। ये महज मेला नहीं है। ये इन संतों की ताकत है जिसे ना सिर्फ जुटाना है बल्कि चुनावी साल में जमकर दिखाना भी है क्योंकि यही ताकत ये तय करेगी कि इस साल सबसे ताकतवर धाम कौनसा होगा। दिव्य दरबार को लेकर विवादों में आने के बाद से बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। चमत्कार से पर्दा उठ जाए उससे पहले बाबा ने पैंतरा बदला और अचानक सनातन धर्म का परचम बुलंद कर दिया। चुनाव सिर पर हैं और सियासी दल धार्मिक मुद्दों पर उलझे बैठे हैं।
सनातन का मुद्दा बड़ा मास्टर स्ट्रोक
ऐसे में सनातन का मुद्दा एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ और धीरेंद्र शास्त्री राष्ट्रीय स्तर के बाबा बन गए जिनका दरबार इन दिनों खूब सज रहा है। देश के नामी साधु-संत तो बागेश्वर धाम के चक्कर लगा ही रहे हैं। सियासतदानों की आस्था में भी कोई कमी नजर नहीं आती। सॉफ्ट हिंदुत्व का फेस बन चुके कांग्रेसी कमलनाथ भी बाबा के दरबार में मत्था टेक आए हैं। बीजेपी के नेताओं का आना-जाना लगा ही हुआ है। कभी धीरेंद्र शास्त्री को बहुत ज्यादा जूनियर मानने वाली उमा भारती के सुर भी बदल गए हैं। अब धीरेंद्र शास्त्री को अपना बेटा बताती हैं और उनका आदर करने का दम भी भर रही हैं। चनावी साल में उमा के ही क्षेत्र में कद्दावर हो रहे धीरेंद्र शास्त्री अब उमा को क्षेत्र का गौरव भी नजर आते हैं।
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कुबेरेश्वर धाम का रुद्राक्ष महोत्सव
धीरेंद्र शास्त्री सभी साधु-संतों से बाजी मार जाते उससे पहले ही कुबेरेश्वर धाम का रुद्राक्ष महोत्सव आड़े आ गया। भक्तों का दिनभर इतना जमावड़ा रहा कि पूरा प्रदेश सिर्फ उस सड़क पर लगे जाम की चर्चा करता ही नजर आया। प्रदेश के 2 बड़े और अहम शहरों को ब्लॉक करने वाला ट्रैफिक चर्चा का विषय बनना ही था। इसके साथ ही कुबेरेश्वर धाम के नंबर भी बढ़ गए।
पंडोखर सरकार भी इस मामले पर पीछे नहीं रहे। उनका शिविर कम समय लगा लेकिन जब तक लगा सुर्खियां बटोरता रहा।
सनातन धर्म का एजेंडा
जिस साल चुनाव सिर पर है उस साल क्या भक्तों की भीड़ जुटाना सिर्फ धार्मिक आयोजन को सफल बनाने के लिए है। या ये साबित करना है कि आयम द बेस्ट या मैं हूं नंबर वन। जो साधु नंबर वन होगा राजनेताओं की लिस्ट में वही टॉप पर भी होगा। इस होड़ से ज्यादा हैरान कर रहा है सनातन धर्म का एजेंडा। जो इस बार सिर्फ साधु संत ही तय कर रहे हैं और बड़ी डिमांड रख चुके हैं। वैसे तो राजनीति में धर्म हमेशा बड़ा मुद्दा रहा है लेकिन इस बार हवा का रुख जरा उल्टा है। इस बार हवाएं अलग-अलग धामों से उठती दिख रही हैं जो मुद्दा बनने की जगह सियासत को नया मुद्दा दे रही हैं। वैसे तो प्रदेश की राजनीति में साधु-संत या धार्मिक फिगर हमेशा से ही शामिल रहे हैं लेकिन इस बार धर्म के नुमाइंदे राजनीतिक मुद्दों पर अतिक्रमण कर साख मजबूत भी कर रहे हैं।
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने थामा सनातन का मुद्दा
उमा भारती, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, कंप्यूटर बाबा, राजनीति के धाम में ऐसे साधु-संतों के नामों की कमी नहीं है जो भक्तों के बीच जितनी पैठ रखते थे राजनीति में पकड़ भी उतनी ही मजबूत रखते थे। संतों की ये पीढ़ी पुरानी हो चली है। अब नए चुनाव में नई पीढ़ी के बाबा उनकी जगह लेते नजर आ रहे हैं। जो मुखर हैं, नई पीढ़ी की पसंद की स्टाइल में खुद को ढाल भी चुके हैं और मुद्दों को कैश कराना भी खूब जानते हैं। सनातन का राग अलाप रही बीजेपी को राष्ट्रवाद की राह पर चली तो चुनावी साल में सनातन का मुद्दा बागेश्वर धाम ने थाम लिया। क्या ये महज इत्तेफाक है या इसमें राजनीतिक ट्विस्ट शामिल है। इतने पर ही बात नहीं हुई इस बार धर्म ने राजनीति को जरिया बनाया और सनातन बोर्ड की मांग को उछाल दिया है। क्या साधु-संतों की ये डिमांड इस बार चुनाव पर असर डालेगी।
कुबेरेश्वर धाम पर शिफ्ट हुआ फोकस
क्या ये भी एक इत्तेफाक ही है कि जब बागेश्वर धाम खबरों में बना हुआ है। तब घंटों लबे जाम के चलते उनकी लाइमलाइट छिन जाती है और फोकस कुबेरेश्वर धाम पर चला जाता है। आखिर रुद्राक्ष महोत्व लिए जमा भीड़ को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वो भी राजधानी के पड़ोस में। चुनावी साल में धामों के बीच ये टक्कर यूं ही शुरू हुई है या इसके पीछे छिपी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। राजनीति में बाबाओं की अहमियत हमेशा रही है, लेकिन इस तरह का शक्ति प्रदर्शन कभी नजर नहीं आया। क्या इस बार राजनेताओं की कसौटी पर खरा उतने के लिए साधु-संतों को भीड़ जुटाने और मेला सजाने की अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। वाकई इस बार अगर धर्म से राजनीति नहीं बल्कि राजनीति से धर्म बलवान बन रहा है तो कुछ और बड़े धार्मिक आयोजनों की गूंज सुनी जा सकती है।
धर्म की रस्सी थामकर चुनावी रेस जीतना चाहते हैं नेता
धर्म की रस्सी थामकर राजनेता इस बार साधुओं के सहारे चुनावी रस्साकशी जीतने की कोशिश में नजर आ रहे हैं। पर ये चुनाव होना अभी बाकी है कि धर्म के मैदान में चल रहे पॉलिटिकल गेम का सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन है। इसी सवाल का सही जवाब बनने के लिए धामों में रेस शुरू हो चुकी है। रेस जीतने की पहली शर्त भीड़ जुटाना। जो इस शर्त पर खरा उतरेगा वही होगा नंबर वन। पहले पायदान की रेस के लिए 2 खिलाड़ी मैदान में हैं। देखना ये है कि और कितने खिलाड़ी जोर-आजमाइश के लिए इस मैदान का रुख करते हैं।